अंतरिक्ष यात्रा करना था कल्पना चावला का सपना, अंतिम पल में भी जिया अपना सपना
अंतरिक्ष यात्रा करना था कल्पना चावला का सपना, अंतिम पल में भी जिया अपना सपना
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17 मार्च भारत देश के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है। इसी दिन देश की एक महान पुत्री कल्पना चावला का जन्म हुआ था। उन्होंने विश्व स्तर पर अपने परिवार तथा प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे भारत का नाम रोशन किया। अंतरिक्ष यात्री बनकर अंतरिक्ष की ऊंचाइयां नापने वाली कल्पना चावला ने अपनी कामयाबियों से विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई। 1 फरवरी को दुर्भाग्यपूर्ण दिन था जब हमने देश की इस महान बेटी को खो दिया। उनका अंतरिक्षयान लैंडिंग से पूर्व एक घटना का शिकार हो गया था। उनके इस अंतरिक्ष की यात्रा में 16 का एक अजीब संयोग था। आइए आज उनके बारे में कुछ विशेष बातें तथा 16 के अजीब संयोग के बारे में जानते हैं।

उनका जन्म वैसे तो 17 मार्च, 1962 को हुआ था किन्तु आधिकारिक जन्म दिनांक 1 जुलाई, 1961 दर्ज करवाई गई थी जिससे उनके दाखिले में सरलता हो। करनाल में बनारसी लाल चावला तथा मां संजयोती के घर 17 मार्च 1962 को जन्मीं कल्पना अपने चार भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं। घर में सब उन्हें प्यार से मोंटू बोलते थे। आरभिंक शिक्षा करनाल के टैगोर बाल निकेतन में हुई। जब वह आठवीं क्लास में पहुंचीं तो उन्होंने अपने पिता से इंजीनियर बनने की इच्छा व्यक्त की। पिता उन्हें डॉक्टर अथवा टीचर बनाना चाहते थे। 

वही परिजनों का कहना है कि बचपन से ही कल्पना की दिलचस्पी अंतरिक्ष तथा खगोलीय बदलाव में थी। वह अकसर अपने पिता से कहा करती थीं कि ये अंतरिक्षयान आकाश में कैसे उड़ते हैं? क्या मैं भी उड़ सकती हूं? पिता बनारसी लाल उनकी इस बात को हंसकर टाल दिया करते थे। उन्होंने अपने कॉलेज के समय में कराटे सीखे। उन्होंने बैडमिंटन भी खेला तथा दौड़ों में हिस्सा लिया। अपने सपनों की उड़ान भरने के लिए वह 1982 में अमेरिका गईं तथा यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस से एयरोस्पेस इंजिनियरिंग में मास्टर्स डिग्री हासिल की। उनके पास सीप्लेन, मल्टि इंजन एयर प्लेन तथा ग्लाइडर के लिए कमर्शल पायलट लाइसेंस था। वह ग्लाइडर तथा एयरप्लेंस के लिए भी वैद्य फ्लाइट इंस्ट्रक्टर भी थे।

1995 में कल्पना नासा में अंतरिक्ष यात्री के रूप में सम्मिलित हुई तथा 1998 में उन्हें अपनी पहली उड़ान के लिए चुना गया। विशेष बात यह थी कि अंतरिक्ष में उड़ने वाली वह पहली भारतीय महिला थीं। इससे पूर्व राकेश शर्मा ने 1984 में सोवियत अंतरिक्ष यान से उड़ान भरी थी। कल्पना ने अपने प्रथम मिशन में 1.04 करोड़ मील यात्रा तय कर पृथ्वी की 252 परिक्रमाएं तथा 360 घंटे अंतरिक्ष में गुजारें। उड़नपरी ने 41 वर्ष की आयु में अपनी प्रथम अंतरिक्ष यात्रा की जो अंतिम साबित हुई। उनके वे शब्द सच हो गए जिसमें उन्होंने कहा था कि मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हूं। प्रत्येक पल अंतरिक्ष के लिए ही गुजारा है तथा इसी के लिए मरूंगी। 

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