कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता -निदा फ़ाज़ली
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता -निदा फ़ाज़ली
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कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता...

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता
 
बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिसमें धुआँ नहीं मिलता

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