नई दिल्लीः देश में अदालतें मुकदमों के बोझ तले दबी हुई है। इस कारण अदालतें किसी भी मामले पर त्वरित सुनवाई नहीं कर पाती। जिससे न्याय मिलने पर असर पड़ता है। इसी कारण लोग अदलतों में जाने से बचते हैं। वह अदालतों की लंबी, थकाऊ और खर्चीली व्यव्सथा से दूर रहना चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एसए बोबडे ने एक राष्ट्रीय समागम में बोलते हुए कहा कि न्याय की प्रक्रिया पर समुचित तरीके से विचार होना चाहिए। न्याय देने की प्रक्रिया में कोई जल्दबाजी या देरी नहीं की जानी चाहिए। बोबडे ने बताया कि विश्व के सबसे खराब शासनों में 'त्वरित न्याय' की अवधारणा अपना ली गई है। लेकिन न्याय देने में भी देरी नहीं होनी चाहिए।
कोई भी न्याय करने में देरी नहीं करना चाहता, मगर न्याय करने में समय लगता है। इस बात को सही संदर्भो में समझा जाना चाहिए। भारतीय न्यायपालिका की चुनौतियों पर आयोजित इस सम्मेलन में कानून जगत के कई नामी हस्तियों ने शिरकत की। जिसमें मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, गुवाहाटी हाईकोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश अरुप कुमार गोस्वामी समेत विभिन्न हाईकोर्टो को मुख्य न्यायाधीश और पूर्व न्यायाधीश शामिल हैं। न्यायमूर्ति बोबडे ने बताया कि देश की आबादी के हिसाब से प्रति दस लाख की आबादी पर बीस जज हैं।
जबकि अधिकांश देशों में दस लाख लोगों पर 50 से 80 जज होते हैं। उन्होंने कहा कि यह भी देखा जाना चाहिए मुकदमे कितने दायर होते हैं। उक्त सम्मेलन में न्यायपालिका पर सोशल मीडिया के प्रभाव पर भी चर्चा हुई। इस पर न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा कि जजों को भी सोशल मीडिया से जुड़ना चाहिए।
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