जिउतिया व्रत के दिन जरूर सुने चील-सियार की कथा
जिउतिया व्रत के दिन जरूर सुने चील-सियार की कथा
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हर साल आने वाला जीवित्पुत्रिका' या जिउतिया व्रत इस बात कल यानी 21 सितंबर को है. जी हाँ और यह कल से नहाय-खाय के साथ शुरू हो जाएगा. ऐसे में पुत्र के अच्छे स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए किया जाने वाला यह व्रत मुख्यतौर पर बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में किया जाता है. जी दरअसल कई जगहों पर इसे जितिया व्रत के नाम से पुकारते हैं और पड़ोसी देश नेपाल के भी कई इलाकों में यह व्रत काफी लोकप्रिय है. वैसे तो यह व्रत आमतौर पर महिलाएं करती हैं और इस दौरान माताएं 24 घंटे या कई बार उससे भी ज्यादा समय तक निर्जला उपवास रखती हैं. वहीं जितिया व्रत हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को करते हैं और इस व्रत की शुरुआत सप्तमी से नहाय-खाय के साथ ही हो जाती है और नवमी को पारण के साथ इसका समापन हो जाता है. ऐसे में आज हम आपको सुनाने जा रहे हैं इस व्रत की चील-सियार की कथा.

चील-सियार की कथा- मिथिलांचन सहित कई इलाकों में प्रचलित इस कथा के अनुसार एक समय एक वन में सेमर के पेड़ पर एक चील रहती थी. पास में वहीं झाड़ी में एक सियारिन भी रहती थी. दोनों में खूब दोस्ती थी. चील जो कुछ भी खाने को लेकर आती उसमें से सियारिन के लिए जरूर हिस्सा रखती. सियारिन भी चिल्हो का ऐसा ही ध्यान रखती. एक बार की बात है. वन के पास एक गांव में औरतें जिउतिया के पूजा की तैयारी कर रही थी. चिल्हो ने उसे बड़े ध्यान से देखा और इस बारे में अपनी सखी सियारिन को बताई. दोनों ने इसके बाद जिउतिया का व्रत रखा. दोनों दिनभर भूखे-प्यासे रहे मंगल कामना करते हुए व्रत किया लेकिन रात में सियारिन को तेज भूख-प्यास सताने लगी.

सियारिन को जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो जंगल में जाकर उसने मांस और हड्डी पेट भरकर खाया. चिल्हो ने हड्डी चबाने की आवाज सुनी तो इस बारे में पूछा. सियारिन ने सारी बात बता दी. चिल्हो ने इस पर सियारिन को खूब डांटा और कहा कि जब व्रत नहीं हो सकता था तो संकल्प क्यों लिया था! सियारिन का व्रत भंग हो गया लेकिन चिल्हो ने भूखे-प्यासे रहकर व्रत पूरा किया. कथा के अनुसार अगले जन्म में दोनों मनुष्य रूप में राजकुमारी बनकर सगी बहनें हुईं. सियारिन बड़ी बहन हुई और उसकी शादी एक राजकुमार से हुई. वहीं, चिल्हो छोटी बहन हुई उसकी शादी उसी राज्य के मंत्रीपुत्र से हुई.

बाद में दोनों राजा और मंत्री बने. सियारिन रानी के जो भी बच्चे होते वे मर जाते जबकि चिल्हो के बच्चे स्वस्थ और हट्टे-कट्टे रहते. इससे उसे जलन होती. ईर्ष्या के कारण सियारिन रानी बार बार उसने अपनी बहन के बच्चों और उसके पति को मारने का प्रयास करने लगी लेकिन सफल नहीं हो सकी. बाद में उसे अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने क्षमा मांगी. बहन के बताने पर उसने फिर से जिउतिया व्रत किया तो उसके भी पुत्र जीवित रहे.

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