सुंदर ही नहीं बल्कि बहुत ही बुद्धिमान थी जीजाबाई, उनकी पुण्यतिथि पर जानिए कुछ खास बातें
सुंदर ही नहीं बल्कि बहुत ही बुद्धिमान थी जीजाबाई, उनकी पुण्यतिथि पर जानिए कुछ खास बातें
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आज के समय में मराठा सम्राज्य की जब भी चर्चा होती है, तो लोगों की जुबान छत्रपति शिवाजी महाराज की शौर्यता की कहानियां आ ही जाती हैं लेकिन क्या आप उस महिला को जानते हैं, जिन्होंने पहले शिवाजी को अंगुलियां पकड़कर चलना सिखाया फिर उन्हें एक महान योद्धा बनाया। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं छत्रपति शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई की, जिनकी आज के दिन ही मृत्यु हुई थी। आप सभी को बता दें कि जीजाबाई की मौत 17 जून को हुई थी लेकिन वह आज भी सभी के दिलों में जिन्दा है।

कहा जाता है वह शिवाजी की सिर्फ माता ही नहीं बल्कि उनकी मित्र और मार्गदर्शक भी थीं और उनका सारा जीवन साहस और त्याग से भरा रहा। इसी के साथ उन्होंने जीवन भर कठिनाइयों और विपरीत परिस्थितियों का सामना किया, किन्तु धैर्य नहीं खोया और अपने ‘पुत्र ‘शिवाजी’ को समाज कल्याण के प्रति समर्पित रहने की सीख दी। आप सभी को बता दें कि जीजाबाई का जन्म 12 जनवरी 1598 में बुलढाणा के जिले सिंदखेद के निकट ‘लखुजी जाधव’ की बेटी के रूप हुआ। उनकी मां का नाम महालसाबाई था। वह बहुत कम उम्र की थीं, जब उनका विवाह ‘शहाजी भोसले’ के साथ कर दिया गया। जिस समय जीजाबाई की शहाजी के साथ शादी हुई, उस समय वह आदिल शाही सुल्तान की सेना में सैन्य कमांडर हुआ करते थे। वहीं शादी के बाद जीजाबाई आठ बच्चों की मां बनीं, जिनमें से 6 बेटियां और 2 बेटे थे और उनमें से ही एक शिवाजी महाराज भी थे।

वैसे तो जीजीबाई देखने में बहुत सुंदर थीं… साथ ही बुद्धिमान भी लेकिन फिर भी ऐसा कहा जाता है कि शिवजी के जन्म लेते ही उनके पति ने उन्हें त्याग दिया था क्योंकि असल में वह अपनी दूसरी पत्नी तुकाबाई पर ज्यादा मोहित थे, जिस कारण जीजाबाई से उनका मोह भंग हो गया था और शिवाजी के जन्म के बाद से ही वह अपने पति के प्यार के लिए तरसते रहीं। आप सभी को बता दें कि शिवाजी को शौर्यता का पाठ पढ़ाते वक्त जीजाबाई का एक किस्सा खासा मशहूर है। इसके तहत'' जब शिवाजी एक योद्धा के रुप में आकार ले रहे थे, तब जीजाबाई ने एक दिन उन्हें अपने पास बुलाया और कहा, बेटा तुम्हें सिंहगढ़ के ऊपर फहराते हुए विदेशी झंडे को किसी भी तरह से उतार फेंकना होगा। वह यहीं नहीं रूकीं… आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि अगर तुम ऐसा करने में सफल नहीं रहे, तो आपको मैं अपना बेटा नहीं समझूंगीं।

इस पर शिवाजी ने उनको टोकते हुए कहा, मां मुगलों की सेना काफी बड़ी है। दूसरा हम अभी मजबूत स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में उन पर विजय पाना कठिन होगा। इस समय इन पर विजय पाना अत्यंत कठिन कार्य है। शिवाजी के यह शब्द उनके लिए बाण समान लगे! उनका नाराज होना लाजमी था। उन्होंने क्रोध भरे सुर में कहा तुम अपने हाथों में चूडियां पहनकर घर पर ही रहो। मैं खुद ही सिंहगढ पर आक्रमण करूंगी और उस विदेशी झंडे को उतार कर फेंक दूंगी। मां का यह जवाब शिवाजी को हैरान कर देने वाला था। फिर भी उन्होंने मां की भावनाओं का सम्मान किया और तत्काल नानाजी को बुलवाया और आक्रमण की तैयारी करने को कहा। बाद में उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से सिंहगढ़ पर आक्रमण कर दिया और बड़ी जीत भी दर्ज की।''

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