झलकारी बाई की 187वीं जयंती मनाई गई
झलकारी बाई की 187वीं जयंती मनाई गई
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झांसी. उत्तर प्रदेश के झांसी में महारानी लक्ष्मीबाई की विश्वासपात्र और उनकी महिला शाखा ‘दुर्गा दल’ की सेनापति झलकारी बाई की जयंती बुधवार को हर्षोल्लास के साथ मनाई गई. इस अवसर पर वीरांगना झलकारी बाई विकास समिति की ओर से कार्यक्रम का आयोजन किया गया.

अखिल भारतीय कोली-कोली महासभा भी इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुई, इसके अलावा समाज के लगभग हर वर्ग से आए लोगों ने किला रोड पर स्थित झलकारी बाई की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया. लोगों ने वीरांगना झलकारी बाई की 187वीं जयंती पर कृतज्ञता के साथ उन्हें याद किया गया.

 इस अवसर पर कोली महासभा के प्रदेशाध्यक्ष मोहनलाल सिंगरया ने उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए झलकारी बाई के आदर्शों को अपने जीवन में उतारने और हर घर में दीप जलाकर महान वीरांगना को याद करने की बात कही. झलकारी बाई का जन्म 22 नवंबर 1830 में भोजला गांव में गरीब कोली परिवार में हुआ था. झलकारी बाई की वीरता के किस्से बुंदेलखंड के लोकगीतों और लोककथाओं में आज भी सुने जा सकते हैं. 

महारानी लक्ष्मीबाई की हमशक्ल झलकारी बाई वीरता की एक मिसाल थीं. अंग्रेज जब झांसी के किले में प्रवेश कर गए तब झलकारी बाई ने रानी से मिलती वेशभूषा धारण कर अंग्रेजों से मोर्चा लिया. इस बीच रानी लक्ष्मीबाई को अंग्रेजों के हाथ न लगने का अवसर मिला और वह सुरक्षित किले से बाहर निकल पाईं.

झलकारी बाई ने अपनी वीरता से अंग्रेजों को इतना चकित किया कि वह मान बैठे थे कि युद्ध में उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई को मार डाला है लेकिन बाद में उन्हें पता चला कि उनका डटकर मुकाबला कर वीरगति को प्राप्त हुई वीरांगना लक्ष्मीबाई नहीं बल्कि उनकी हमशक्ल झलकारी बाई थीं.

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