जीने की कुछ उमंग देखता हूँ
जीने की कुछ उमंग देखता हूँ
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मै हैरान हो के सियासतदा के रंग देखता हूँ,
अक्सर जब बंद कमरों में इन्हें संग देखता हूँ,

कल कोई सियासी गया था मंदिरों-मस्जिदों में,
आज मै मजहब से मजहब की जंग देखता हूँ,

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