आज है जया एकदशी, जरूर पढ़े यह व्रत कथा
आज है जया एकदशी, जरूर पढ़े यह व्रत कथा
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आप सभी को बता दें कि हिंदू धर्म में प्रचलित कुल 24 एकादशियों में से एक है जया एकादशी. ऐसे में आज के दिन यानी 16 फरवरी को जया एकादशी है. कहते हैं हर महीने दो एकादशी आती हैं, एक कृष्ण पक्ष की एकादशी और दूसरी शुक्ल पक्ष की एकादशी. वहीं इस साल यानी 2019 में माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी यानि जया एकादशी व्रत 16 फरवरी, शनिवार को यानि आज है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं इसकी व्रत कथा जो बहुत कम लोग जानते हैं.

व्रत कथा: शास्त्रों में जया एकादशी के बारे में जो कथा प्रचलित है उसके अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से निवेदन करते हैं कि माघ शुक्ल एकादशी को किनकी पूजा करनी चाहिए और इस एकादशी का क्या महात्मय है। जिसके उत्तर में श्रीकृष्ण कहते हैं कि माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है, इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति नीच योनि जैसे कि भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है। जो भी सच्चे मन से इस दिन भगवान का पूजन करके व्रत करता है, उसे भूत-पिशाच की योनि से मुक्ति मिल जाती है।

श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को जया एकादशी के बारे में एक कथा भी सुनाई, जिसमें उन्होंने कहा कि एक बार नंदन वन में उत्सव चल रहा था। इस उत्सव में सभी देवता, जाने-माने संत और दिव्य पुरूष भी शामिल हुए थे। उस समय गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य प्रस्तुत कर रही थीं। सभा में माल्यवान नामक एक गंधर्व और पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या का नृत्य चल रहा था। इसी बीच पुष्यवती की नजर जैसे ही माल्यवान पर पड़ी वह उस पर मोहित हो गई।पुष्यवती सभा की मर्यादा को भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो जाए। माल्यवान गंधर्व कन्या की भंगिमा को देखकर सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादा से भटक गया जिससे सुर ताल उसका साथ छोड़ गए।

दोनों ही अपनी धुन में एक-दूसरे की भावनाओं को प्रकट कर रहे थे, किंतु वे इस बात से अनजान थे कि देवराज इन्द्र उनकी इस यथा को समझ चुके हैं। देवराज को पुष्पवती और माल्यवान दोनों पर ही बेहद क्रोध आ रहा था। तभी उन्होंने दोनों को श्राप दे दिया कि आप स्वर्ग से वंचित हो जाएं और पृथ्वी पर निवास करें। देवराज ने दोनों को नीच पिशाच योनि प्राप्त होने का श्राप दिया। इस श्राप से तत्काल दोनों पिशाच बन गए और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों का निवास बन गया। यहां पिशाच योनि में इन्हें अत्यंत कष्ट भोगना पड़ रहा था। वे दोनों जब श्राप को भुगत रहे थे तो इसी बीच माघ का महीना आया और माघ के शुक्ल पक्ष की एकादशी भी आई। इस दिन सौभाग्य से दोनों ने केवल फलाहार ग्रहण किया।

उस रात ठंड काफी थी तो वे दोनों पूरी रात्रि जागते रहे, ठंड के कारण दोनों की मृत्यु हो गई। परंतु उनकी मृत्यु जया एकादशी का व्रत करके हुई, जिसके बाद उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति मिली और वे स्वर्ग लोक में पहुंच गए। यहां देवराज ने जब दोनों को देखा तो चकित रह गए और पिशाच योनि से मुक्ति कैसी मिली यह पूछा। माल्यवान ने कहा यह भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है। हम इस एकादशी के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हुए हैं। इंद्र इससे अति प्रसन्न हुए और कहा कि आप जगदीश्वर के भक्त हैं इसलिए आप अब से मेरे लिए आदरणीय है, आप स्वर्ग में आनंद से रहें।

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