इस बलिदानी ने किया 63 दिनों तक संघर्ष
इस बलिदानी ने किया 63 दिनों तक संघर्ष
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भारत बलिदानों की धरती है। प्रारंभ से ही मातृभूमि के चरणों में महान विभूतियों ने अपने आपको अर्पित कर दिया है। भारत का स्वाधीनता संग्राम भी कई बलिदानियों की गाथाओं से वर्णित है। इन बलिदानियों में एक थे जतीन्द्रनाथ दास। जतीन्द्रनाथ दास को जतीन दास के नाम से जाना जाता है। जतीन दास को उनके सहयोगी, क्रांतिकारी जतीन दा के नाम से भी संबोधित करते थे। जतीन दा, शहीदे आजम भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों के साथ जेल में बंद रहे। इन क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश राजव्यवस्था की दमनकारी नीतियों को लेकर विरोध किया।

विरोधस्वरूप इन क्रांतिकारियों ने 63 दिनों तक भूखहड़ताल की। जतीन्द्रनाथ का जन्म 27 अक्टूबर 1904 को कोलकाता में हुआ था। वे बंगाली परिवार में जन्मे थे। उनके पिता का नाम बंकिम बिहारी दास और माता का नाम सुहासिनी देवी था। जतीन दा ने वर्ष 1920 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। वे महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रेरित थे। उन्होंने विदेशी परिधानों की दुकान पर धरना दिया था।

हालांकि वे पकड़े गए थे और 6 माह के लिए जेल गए थे बाद में जब चौरी चौरा की घटना हुई और असहयोग आंदोलन वापस लिया गया तो जतीन दा को दुख हुआ। इसके बाद उन्होंने महाविद्यालयीन स्तर पर अपनी पढ़ाई को जारी रखने का निर्णय लिया। इसके बाद वे लोकप्रिय क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल से मिले। जतीन दा हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य बने और इस संस्था के माध्यम से शहीद चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरू आदि क्रांतिकारियों से उनका मिलना हुआ।

वर्ष 1925 में जतीन्द्रनाथ को अंग्रेजों ने पकड़ लिया। उन पर दक्षिणेश्वर बम कांड और काकोरी कांड को लेकर कार्रवाई की गई। वे जब जेल में बंद थे तो उन्होंने जेल में ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा किए जाने वाले व्यवहार का विरोध किया। विरोधस्वरूप उन्होंने 21 दिन तक भूखहड़ताल की। विरोध के चलते उन्हें छोड़ना पड़ा। बाद में 1928 में जतीन्द्रनाथ दास को लाहौर षडयंत्र प्रकरण में पकड़ लिया गया। उन पर मुकदमा चला। राजबन्दियों की तरह व्यवहार न होने के चलते क्रान्तिकारियों ने 13 जुलाई 1929 को सत्याग्रह प्रारंभ किया।

इस दौरान क्रान्तिकारियों ने अन्न त्याग दिया। मगर अंग्रेज उनका यह अनशन तोड़ना चाहते थे। ऐसे में जतीन्द्रनाथ के नाक में नली डालकर ब्रिटिश जेलर और अन्य अधिकारियों ने उन्हें दूध पिलाने का प्रयास किया। मगर नली उनके फेफड़ों में फंस गई। ब्रिटिशर्स ने उनकी घुटती सांस की परवाह नहीं की। जतीन्द्रनाथ को निमोनिया हो गया और 63 दिन के अनशन में आखिरकार 63 वें दिन जतीन्द्रनाथ दास ने अंतिम सांस ली। 13 सितंबर 1929 को वे भारत माता की स्वाधीनता के लिए संघर्ष करते हुए अमरता को प्राप्त हुए।

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