मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को लेकर SC ने किया महत्वपूर्ण निर्णय
मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को लेकर SC ने किया महत्वपूर्ण निर्णय
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नई दिल्ली : मुस्लिम महिलाओं को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। जिसमें उन्होंने कहा है कि जमीयत उलेमा - ए - हिंद को पक्ष बनाने की स्वीकृति भी उन्होंने दी है। जमायत द्वारा कहा गया था कि न्यायालय पर्सनल लाॅ की वैधता की जांच नहीं कर सकता है। मगर न्यायालय ने इस मामले में सुनवाई करने की बात कही। दरअसल सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर ऐतराज जताया है कि मुस्लिम महिलाओं के साथ किए जा रहे भेदभाव से जुड़े मामलों का परीक्षण जमीयत-उलेमा-ए-हिंद द्वारा किया जा सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय की इस पहल पर जमीय - उलेमा - ए - हिंद ने याचिका दायर की। उन्होंने कहा कि न्यायिक परीक्षण के दायरे में उन्हें नहीं लाना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता में 3 सदस्यीय पीठ ने जमीयत - उलेमा- ए - हिंद को हस्तक्षेप की अनुमति दी। अटाॅर्नी जनरल नेशनल लीगल सर्विस अथाॅरिटी को नोटिस जारी कर दिया गया है।

इस संस्था के पदाधिकारियों द्वारा यह कहा गया है कि संस्था इस्लाम की परंपराओं और संस्कृतियों का संरक्षण करने का कार्य करता है। ऐसे में यदि न्यायालय में इस तरह के मसले उठाए जाते हैं तो उनका विचार लिया जाना बेहद आवश्यक है। याचिका में कहा गया है कि अहमदाबाद के वूमन एक्शन ग्रुप मसले में मुस्लिमों में बहुविवाह को योग्य ठहराया गया है।

मुस्लिम पर्सनल लाॅ के अंतर्गत मुस्लिम पुरूष को उनकी पत्नी की सहमति के बिना तलाक लेेने अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 13,14 और 15 के अंतर्गत उसकी वैधता से जुड़े प्रश्न जुड़े हुए थे। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि संविधान के अनुच्छेद 13 के दायरे में यह बात नहीं आती है।

हालांकि कई पत्नियों को गलत कहने के मामले सर्वोच्च न्यायालय में आए थे। याचिका में यह कहा गया कि मुस्लिम पर्सनल लाॅ कुरान पर ही आधारित है और इस तरह की व्यवस्था देने का कार्य विधायिका है। जिसके चलते न्यायालय ने इन मामलों में अपना निर्णय नहीं दिया। 

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