समय के भँवर में फस गया जैन-धर्म का संथारा
समय के भँवर में फस गया जैन-धर्म का संथारा
Share:

संथारे को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट व उच्चतम न्यायालय के आदेशो के मध्य झूला जैन-समुदाय का मौन जुलुस समय - समय होता है उसे समझने के लिए भूत, वर्तमान व भविष्य में बात सकते है परन्तु जीवन के बढ़ते क्रम में सूर्य के प्रकाश से बनते दिन - रात के चक्र में एक स्थान पर रुक एक ग्रन्थ / धर्म / मान्यता / विचार / सभ्यता / व्यवस्था / जीने-मरने के तरीको को निर्धारित कर उसे आधार मानकर खीचते चले जायेगे तो परिणाम यही होगा की समय तो नहीं रुकेगा परन्तु वह बढ़ते वैचारिक, सामाजिक, व्यवस्था के विकास में उलझाकर आगे निकल जायेगा | सामान्तया: सभी धर्मो के सामान ही जैन-धर्म का "संथारा" भी इसी भँवर में उलझ गया |

धर्म, व्यवस्थाये, मान्यताये इन समय के भँवरो में न उलझे इसके लिए एक स्थान पर रुक कर जो रचनाये करी जाती है उसमे आगे समावेश का मार्ग हों जरुरी होता है वह भी स्वतंत्रता, नैतिकता, मौलिकता एवं तार्किकता के साथ | "संथारा" यानि जैन अनुयायी द्वारा इस जन्म को छोड़ दूसरी योनि या मोक्ष में जाने का मार्ग जहा अन्न, जल सभी त्याग के सांसारिक मोह-माया से मुक्त होने का आत्मिक व बौद्धिक आत्मविश्वाश प्रकट करा जाता है | 

हज़ारो वर्षो पूर्व सामाजिक व क़ानूनी व्यवस्थाये धर्म आधारित चला करती थी | धर्म कोई भी हो वह भगवान, मोक्ष, मुक्ति, पुनर्जन्म, पूर्व की महान आत्माओ से मील जाना इत्यादि के आधार पर उद्भव हुआ करते थे | इसलिए जल-समाधी, भूमि-समाधी, धार्मिक स्थलों पर जीवन त्याग, श्वाश रोक आत्मीय मिलन, अकल्पनीय प्राकृतिक घटनाओ से देह त्याग सार्थक माने जाते रहे है | समय आगे बढ़ गया और व्यवस्थाएँ धार्मिकता से आगे निकल राजाओ के दौर से गुजर, लोकतान्त्रिक परिपेक्ष में आ गई व कानूनो, अदालतों, सविधानो, वैचारिक संयोजनों व सिरो की संख्याओ की गिनती पर चल रही है |

दिन-प्रतिदिन बढ़ते विज्ञान के दायरे में जहा पुनर्जन्म, मोक्ष को कानून वैध नहीं माना जाता वह इन्शान द्वारा अन्न-जल त्याग जीवन से मुक्त होना आत्महत्या कहलाता है | इसी परिस्थिति में "संथारा" तो फसना ही था | जैन-समाज के लोगो ने लाखो की संख्या में निकल कर एकता व वर्षो पूर्व निर्धारित आदर्शो में अपना विश्वाश जताया वो पूर्णतया सही है परन्तु फिर "समय" को नजरअंदाज करते हुये भविष्य के टकराव व अन्य धर्म के वैचारिक विषमता के अंधे कुँए की दहलीज पर आ गए | जहाँ घिनोनी व वोट वाली राजनीती में पीस जाने की सम्भावनाये ज्यादा है| 

जैन अनुयाईयों को अपने तीर्थंकरो की सोच को नमन करना चाहिए क्यों कि उनके बाद "संथारे" के मार्ग को कोई समझ नहीं पाया अन्यथा "पर्युषण-पर्व" की भाति इस पर भी पूरा समाज एकजुट न होकर श्वेताम्बर, दिगंबर, बाइसपंथी, तेरापंथी, मन्दिरमार्गी, स्थानकवासी, मूर्तिपूजक न मालूम कौन-कौन से संत-साध्वी के प्रधानो में बट जाता | अदालत में क्या आधार रखे वो प्रकट नहीं हुये सिर्फ हमारे धर्म में ऐसा है वो ही कट्टरता ज्यादा प्रदर्शित हुई | यह स्पष्ट नहीं करा की पहले जीवन को उम्र के आधार पर चार भागो में बांटते थे और "संथारा" अन्तिम सन्यास आश्रम के लोगो हेतु है जो 75 से 100 वर्ष की उम्र के लिए है इसलिए "आत्महत्या" के दायरे से भिन्न है |

धन-लोलुपता के दौर में संथारे के समय व्यक्तिगत सम्पति के वितरण को न बता शंकाओ की जड़ को खत्म नहीं करा | संथारा जीवन जीने के बाद प्रसन्नता से देह त्याग है या आत्महत्या की तरह व्यवस्था, अपराध, शोषण, दमन एवं समर्पित कार्य के बाद भी शुन्य से निराशा में डुबो देने का परिणाम और बीमारी के ईलाज न होने से तड़प-तड़प कर जीने का नहीं | सिरो की गिनती से एकता में प्रक्रिया की एकता का अभाव लगा जहाँ संथारे के इच्छुक लोगो का तंत्र अभी की व्यवस्था में आधार बन सके | 

नए तंत्र का आत्महत्या के नोट से भिन्नता के मापदंडो की गोपनीयता विज्ञान के युग में रिश्ते, परिवार, धन-सम्पदा व देह-मोह छोड़ने के बाद शेष रहे आँख, नाक, किडनी, ह्रदय आदि अंगो के बारे में मौन की कुंडली बना बैठ जाना व इसी मौन के पीछे भविष्य के मार्ग पर अँधेरा बता देने का संकेत कहा तक उचित है | इन्शान की अपनी जिंदगी जीने व खत्म करने के अधिकार पर बहस का दौर जारी है उसके आधार पर उच्चतम न्यायालय से पूर्व के आदर्शो को सत्यापित कर लोकतंत्र के मजबूर-तंत्र में बदलते दौर में संख्या बल की राजनीती से जय संभव है क्या या सरकार द्वारा ऐसी प्रक्रिया में आदमी की व्यक्तिगत वाली हताशा दर्ज करने के प्लेटफार्म वाली मांग सर्वोच्चय अदालत के माध्यम से, जहाँ पर भी कुछ न हो तो उसे आत्महत्या का आधार माना जाये | 

इस खेल में भी खेल है क्योंकि आत्महत्या करने के लिए उकसाना और मजबूर करना भी अपराध है | यदि सरकार ने लेटलतीफी नौकरशाही व अपने न झुकने के घमण्ड के तले कुछ नहीं किया तो वो खुद आत्महत्याओं की दोषी बन जायेगी परन्तु "संथारा" मुक्त हो जायेगा क्योकि उसे सरकार और व्यवस्था से कोई नाराजगी नहीं है|

Disclaimer : The views, opinions, positions or strategies expressed by the authors and those providing comments are theirs alone, and do not necessarily reflect the views, opinions, positions or strategies of NTIPL, www.newstracklive.com or any employee thereof. NTIPL makes no representations as to accuracy, completeness, correctness, suitability, or validity of any information on this site and will not be liable for any errors, omissions, or delays in this information or any losses, injuries, or damages arising from its display or use.
NTIPL reserves the right to delete, edit, or alter in any manner it sees fit comments that it, in its sole discretion, deems to be obscene, offensive, defamatory, threatening, in violation of trademark, copyright or other laws, or is otherwise unacceptable.
रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
Most Popular
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -