जादू का कालीन
जादू का कालीन
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रविवार का दिन था। रोहित सुबह उठ कर अपने बगीचे में गया। वहाँ लॉन में उसे एक सुंदर कालीन दिखा। उसे यह जादू का कालीन है। उडऩे वाला कालीन। आकाश की परियों से नीचे गिर गया होगा। उसने अपनी बहन सोनाली को बुला कर कालीन दिखाया। जादू का सुंदर कालीन देख कर सोनाली भी बहुत खुश हुई। वह बोलीए भैया! इस पर बैठकर हम आकाश की सैर करें। बहुत मजा आएगा। रोहित की भी आकाश में उडऩे की बहुत इच्छा थी। दोनों भाई-बहन कालीन पर बैठ गए। एक चिडिय़ा तो पहले से ही कालीन पर बैठी थी। सोनाली ने ऐसे कालीन की एक कहानी सुन रखी थी। 

वह बोली, श्चल कालीनए छोड़ ज़मीन! उसके इतना कहते ही कालीन ऊपर उठने लगा। कालीन को ऊपर उठता देख उनका कुत्ता मोती भी छलांग लगा कर उस पर चढ़ गया। वृक्ष की डाल पर बैठे रोमी बंदर ने कालीन को आकाश की ओर जाते देखा। उसकी इच्छा भी आकाश में जाने की हुई। वह भी तुरंत कालीन पर चढऩे के लिए कूदा। परंतु तब तक देर हो चुकी थी। वह मुश्किल से कालीन का छोर पकड़ कर उसके साथ लटक सका। धीरे-धीरे कालीन ऊपर को उड़ता गया। पर्वत, पक्षी सब नीचे छूट गए। कालीन बादलों से भी ऊपर चला गया।

रोहित ने झुक कर नीचे की ओर देखा। उसे पहाड़ छोटे-छोटे लगे। खेत यूँ लगे मानो किसी ने धरती को हरे रंग में रंग दिया हो। सभी को ठंडी-ठंडी हवा में इतना ऊँचा उडऩा बहुत अच्छा लग रहा था। थोड़ी देर में सूरज निकल आया। गरमी बढऩे लगी तो सभी परेशान हो गए। सभी ने नीचे उतरना चाहा। तब सोनाली बोली, श्चल मेरे कालीन, जल्दी छू ले ज़मीन! कुछ ही क्षणों में कालीन जमीन पर उतर आया। सभी आकाश की सैर कर बहुत खुश थे।

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