एक ऐसा मुस्लिम देश जहाँ आज भी है मां दुर्गा का मंदिर
एक ऐसा मुस्लिम देश जहाँ आज भी है मां दुर्गा का मंदिर
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भारत, नेपाल और मॉरिशस में तो दुर्गा मां के हज़ारो-लाखों मंदिर हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा मुस्लिम देश भी है जहां मां भगवती का एक बेहद प्राचीन मंदिर स्थित है। हिंदू धर्म में अग्नि को बहुत पवित्र माना जाता है। विभिन्न धार्मिक संस्काराें के लिए पवित्र अग्नि प्रज्वलित की जाती है। आपने हिमाचल प्रदेश में स्थित मां ज्वाला देवी के मंदिर के बारे में पढ़ा होगा जहां बहुत प्राचीन काल से ही माता की पवित्र ज्योति स्वतः जल रही है। मां भगवती का ऐसा ही एक और पवित्र मंदिर है जहां कभी श्रद्धालुओं की भारी तादाद मां को नमन करती थी, लेकिन आज यहां सन्नाटा पसरा है। वास्तव में यह मंदिर भारत में नहीं है। जी हां, यह हमारी सरदहद से बहुत दूर 98% से भी ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश

अजरबैजान में सुराखानी में ये प्राचीन मंदिर आज भी स्थित है।
गौरतलब है कि अब इस मंदिर में पूजा तो नहीं होती क्योंकि इस देश में हिंदू आबादी न के बराबर है। इस मंदिर को यहां 'टेम्पल ऑफ़ फायर या आतिशगाह के नाम से भी जाना जाता है। सर्दियों में यहां काफी ठंड पड़ती है और यह इलाका तेज हवाओं के लिए मशहूर है। यह मंदिर अग्नि को समर्पित है। इसकी इमारत किसी प्राचीन काल के किले जैसी है। इसकी छत हिंदू मंदिरों जैसी है और पास ही मां भगवती का त्रिशूल स्थापित किया गया है। मंदिर के अंदर एक अग्निकुंड भी है। इसमें से आग की लपटें निकलती रहती हैं। यहां उस जमाने के कुछ लेख भी दीवारों पर अंकित हैं। इनके लेखन में गुरुमुखी लिपि का इस्तेमाल किया गया है।

अजरबैजान एक मुस्लिम बहुल देश है। कभी यह सोवियत संघ का हिस्सा था। यहां एक म्यूजियम भी बनाया गया है जो बीते दौर की यादाें को सुरक्षित रखता है। इसमें व्यापारियों, धर्मगुरु, कर्मों के फल आदि को बताने वाली आकृतियां बनी हुई हैं। आज भी कुछ लोग जिज्ञासावश यहां आते हैं और मंदिर से जुड़ी परंपरा और इतिहास को जानने की कोशिश करते हैं। वीरान हो चुका ये मंदिर शायद खामोशी के साथ उस दौर को याद करता है जब यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते थे। तब यहां काफी रौनक होती थी लेकिन आज यहां सन्नाटा पसरा हुआ है।

जानें मंदिर का इतिहास
माना जाता है कि कई सौ साल पहले जब भारत के व्यापारी इस रास्ते से गुजरे थे तो उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार मंदिर के निर्माता का नाम बुद्धदेव है जो कुरुक्षेत्र के निकट मादजा गांव के निवासी थे। मंदिर पर संवत 1783 भी लिखा हुआ है। हालंकि मंदिर में ही स्थापित एक और शिलालेख पर मंदिर का द्वार बनाने वालों के नाम- उत्तमचंद और शोभराज लिखे हुए हैं।

इतिहास से जुड़े कुछ प्रमाण बताते हैं कि मंदिर के पुजारी भारतीय होते थे और यहां अनेक लोग मां को नमन करने आते थे। हालांकि इनमें भारतीयों की तादाद ही ज्यादा होती थी लेकिन स्थानीय लोग भी यहां आकर मनौती मांगते थे। बताया जाता है कि साल 1860 में यहां से भारतीय पुजारी चले गए थे। तब से फिर कोई पुजारी यहां नहीं आया।

कुछ अन्य ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार पहले यहां ईरान से भी लोग पूजा करने आते थे और यह कई शताब्दियों पुराना है। यहां तक कि 5वीं शताब्दी में भी इसका जिक्र आता है। बाद में यह हिंदुओं का एक प्रमुख पूजन स्थल बन गया। मंदिर में मुख्यतः व्यापारी आते थे और वे यहां निर्मित कोठरियों में विश्राम भी करते थे।

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