'जो देश के प्रति वफादार नहीं, उनकी नागरिकता छीन लो..', सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मचा बवाल
'जो देश के प्रति वफादार नहीं, उनकी नागरिकता छीन लो..', सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मचा बवाल
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जेरूसलम:  यहूदी देश इजरायल का जन्म फिलिस्तीन से हुआ है। दोनों देशों की सरहदें भी मिलती हैं। इजरायल और फिलिस्तीन के बीच सीमा को लेकर विवाद आज का नहीं है। इजराइल के अस्तित्व में आने के बाद से ही दोनों देशों में आए दिन युद्ध होते रहते हैं। इस बीच इजरायल की शीर्ष अदालत ने देश की सुरक्षा को देखते हुए 21 जुलाई 2022 को एक फैसला सुनाया है, जिसमे अदालत ने कहा है कि देश के प्रति वफादार नहीं रहने वाले फिलिस्तीनी नागरिकों की नागरिकता को छीन लिया जाएगा। इसमें ऐसे लोग शामिल हैं, जो कि इजरायल के विरुद्ध जासूसी और आतंक जैसी वारदातों को अंजाम देते हैं।

इजरायल की शीर्ष अदालत के फैसले के मुताबिक, देश में आतंकवाद, जासूसी या राजद्रोह समेत देश के प्रति ‘वफादारी का उल्लंघन’ करने वाले व्यक्तियों की नागरिकता को निरस्त किया जा सकता है। हालाँकि, मानवाधिकार संगठनों को इस बात का डर सता रहा है कि अदालत के इस फैसले को सिर्फ गैर यहूदी नागरिकों पर थोपा जाएगा। बता दें कि, यह फैसला इजरायल में 2008 के नागरिकता कानून को संबोधित करते हुए दिया गया है। इसमें राज्य को ‘वफादारी का उल्लंघन’ करने वाले कार्यों के आधार पर नागरिकता निरस्त करने की शक्ति दी गई है। सर्वोच्च न्यायालय का ये फैसला इजरायल के दो फिलिस्तीनी नागरिकों के मामलों में अलग-अलग अपीलों के बाद आया था, जिन्हें इजरायली नागरिकों पर हमलों को अंजाम देने का दोषी पाया गया था। दोनों को लंबी सजा सुनाई गई, किन्तु राज्य ने उनकी नागरिकता छीनने का प्रयास किया।

इजरायल की शीर्ष अदालत के इस फैसले से मुस्लिमों के लिए कार्य करने वाले संगठनों में नाराजगी है। इसी कड़ी में इजरायल में नागरिक अधिकारों के लिए एसोसिएशन और एक अरब अधिकार संगठन अदलाह ने इसकी आलोचना की। संगठन ने अदालत के फैसले को भेदभावपूर्ण बताते हुए आशंका जताई है कि इसका इस्तेमाल विशेष रूप से इजरायल के फिलिस्तीनी नागरिकों खिलाफ किया जाएगा। रिपोर्ट के अनुसार, इजरायल के करीब 20 फीसद नागरिक फिलिस्तीनी हैं।

बता दें कि विश्व के कई देशों में ऐसे कानून हैं, जिनके माध्यम से किसी विशेष मामले में दोषी पाए जाने पर व्यक्ति की नागरिकता को खत्म करने की अनुमति है। बीते दो दशक से आतंकवाद के खिलाफ जंग के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है। हालाँकि, सरकारों की इस नीति को बहुत विवादित भी माना जाता है। अंतरराष्ट्रीय कानून किसी देश की सरकार को उसके नागरिकों की नागरिकता निरस्त करने से रोकता है।

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