हाइफा युद्ध: इजराइल ने भारतीय सैनकों को दी श्रद्धांजलि, जब हिंदुस्तान के रणबांकुरों से हारी थी ओट्टोमन फ़ौज
हाइफा युद्ध: इजराइल ने भारतीय सैनकों को दी श्रद्धांजलि, जब हिंदुस्तान के रणबांकुरों से हारी थी ओट्टोमन फ़ौज
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यरुशलम: इजरायल के शहर हाइफा (Haifa) में आज गुरुवार को भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई. ये वो बहादुर भारतीय जवान थे, जिन्‍होंने प्रथम विश्‍व युद्ध (World War I) के दौरान इस इलाके की रक्षा में अपना बलिदान दिया था. भारतीय सैनिकों की बहादुरी का ही परिणाम था कि हाइफा को ओट्टोमन शासन से आजादी मिल पाई थी. प्रति वर्ष भारतीय सेना 23 सितंबर को हाइफा दिवस (Haifa Day) के रूप में मनाती है. इस दिन पर सेना हाइफा की जंग में शहीद हुए भारतीय जवानों को याद करती है. भारतीय सैनिकों के कारण आज हाइफा एक एतिहासिक शहर बन चुका है. आज भी हाइफा के स्‍कूलों में बच्‍चे भारतीय सैनिकों की वीरगाथा पढ़ाई जाती है.

बता दें कि हाइफा, यरुशलम से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है. यह वह अंतिम स्थान है, जहां पर 44 भारतीय सैनिकों ने प्रथम विश्‍व युद्ध में शहर को आजाद कराने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया था. वर्ष 1922 में देश की राजधानी दिल्‍ली में तीन मूर्ति स्‍मारक का निर्माण उन भारतीय जवानों की शहादत की याद में किया गया, जिन्‍होंने प्रथम विश्‍व युद्ध के दौरान ब्रिटिश भारतीय सेना के तहत इजरायल और फिलीस्‍तीन के बीच अपनी सेवाएं दीं थीं, जिसे अब गाजा पट्टी के नाम से जाना जाता है. उस वक़्त ब्रिटिश शासन के दौरान जोधपुर, हैदराबाद और मैसूर रियासत से जवान यहां युद्ध में भेजे गए थे. दो अगस्‍त 1914 को टर्की की ओट्टोमन रियासत प्रथम विश्‍व युद्ध में शामिल हुई थी. यह रियासत ब्रिटिश शासन, फ्रांस और रूस के खिलाफ जर्मनी के समर्थन में थी. इस गठबंधन के कारण ओट्टोमन की सेना की शिकस्त हुई.

23 सितंबर 1918 को 15वीं कैवेलरी ब्रिगेड जिसमें घुड़सवार भी शामिल थे, जोधपुर, हैदराबाद और मैसूर रियासत से हाइफा के लिए रवाना हुए थे. भारतीय सैनिकों के पास केवल तलवार और भाले थे. किन्तु इसके बाद भी सैनिकों ने हमला किया और इस शहर को बन्दूक और तोप जैसे हथियारों से लड़ रही ओट्टोमन फ़ौज के चंगुल से आजाद करा दिया. भारत की ब्रिगेड की अगुवाई जनरल एडमुंड एलेनबाइ कर रह थे. भारतीय सैनिकों को हाइफा में बड़ी बहादुरी से जंग लड़ी और इस शहर की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. भारतीय सैनिकों ने कुल 1,350 जर्मन और ओट्टोमन सैनिकों को कैद किया था.

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