जानिए कौन थे सर आइज़ैक न्यूटन जिन्होंने 1704 में की थी हैरान कर देने वाली भविष्‍यवाणी
जानिए कौन थे सर आइज़ैक न्यूटन जिन्होंने 1704 में की थी हैरान कर देने वाली भविष्‍यवाणी
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सर आइज़ैक न्यूटन इंग्लैंड के एक वैज्ञानिक के नाम से पहचाने जाते थे। जिन्होंने गुरुत्वाकर्षण का नियम और गति के सिद्धान्त को खोजै था। वे एक महान गणितज्ञ, भौतिक वैज्ञानिक, ज्योतिष एवं दार्शनिक रहे। इनका शोध प्रपत्र ‘प्राकृतिक दर्शन के गणितीय सिद्धांतों ’ सन् 1687 में प्रकाशित हुआ, इसमें सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण एवं गति के नियमों की व्याख्या  कर दी थी और इस प्रकार चिरसम्मत भौतिकी (क्लासिकल भौतिकी) की नींव को भी रखा था। उनकी फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका, 1687 में प्रकाशित हुई, यह विज्ञान के इतिहास में अपने आप में सबसे प्रभावशाली पुस्तक है, जो अधिकांश साहित्यिक यांत्रिकी के लिए आधारभूत कार्य की भूमिका को निभाती है।

1704 में की भविष्‍यवाणी:- सर आइज़ैक न्यूटन ने अपने कई नोट्स तथा चिट्ठियों में विश्व के समाप्त होने का जिक्र किया था। उन्‍होंने साफ़ रूप से कहा था कि यदि वर्ष 2060 तक दुनिया बची रह गई तो ये विनाश के आरम्भ का वर्ष होगा। न्यूटन ने दुनिया के समाप्त होने का एक फार्मूला भी दिया था। न्यूटन ने ये भविष्‍यवाणी सन् 1704 में की थी। भविष्‍यवाणी के साथ न्यूटन का यह नोट उनकी लिखी चिट्ठियों के साथ प्राप्त हुआ था। सन् 1727 में उनका देहांत हो गया था तथा इसके पश्चात् उनके लिखे सभी नोट्स, चिट्ठियां उनके घर में पाए गए।

किताब में है भविष्‍यवाणी का जिक्र:- साराह ड्राई की पुस्तक ‘द न्‍यूटन पेपर्स: द स्‍ट्रेंज एंड ट्रू ऑडायसिस ऑफ आइसैक न्‍यूटंस मैन्‍युस्क्रिप्‍ट्स’ में उनकी भविष्‍यवाणी का जिक्र विस्‍तार से है। इस पुस्तक में उन्‍होंने लिखा है कि न्‍यूटन ने अपनी जिंदगी में लगभग 10,000 नोट्स और चिट्ठियां लिखी। साराह ने एक इंटरव्‍यू के चलते बताया था कि जब इन नोट्स और चिट्ठियों को सन् 1800 के आखिर में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी लाया गया तो ये बहुत अस्‍त-व्‍यस्‍त थे। इन्‍हें सही तरीके से लगाने में 16 वर्ष लग गए थे। सन् 1936 उनके नोट्स एवं लेटर्स की नीलामी हुई थी। इन्‍हें इंग्लैंड के अर्थशास्त्री जॉन मेयनार्ड कीन्स ने खरीद लिया। तत्पश्चात, इन सभी नोट्स को जेरूशलम के एक प्रोफेसर ने ‘सीक्रेट्स ऑफ न्यूटन’ नाम से एक पुस्तक के रूप में पब्लिश किया था। ये पुस्तक जेरूशलम की यूनिवर्सिटी में आज भी रखी है।

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