उत्तरप्रदेश: इन दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनता दल यूनाईटेड के लिए उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए ब्रांड प्रचारक बने हुए हैं। मुख्यमंत्री नीतीश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से अपने चुनावी अभियान की शुरूआत तो कर दी लेकिन शायद यह काशीपति श्री विश्वनाथ को रास नहीं आई अब नीतीशराज को लोग जंगलराज कहने लगे हैं। सीएम नीतीश कुमार की स्थिति ऐसी हो रही है जैसे विश्वविजय के दौरान नेपोलियन की हो रही थी। उन्होंने उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के ही साथ आगामी समय के लिए दिल्ली में होने वाले राजनीतिक समर का शंखनाद तो कर दिया लेकिन लगता है यहां पर नीतीश ने कुछ जल्दबाजी कर दी।
पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को घोड़े की सवारी करने का अवसर देकर उन्होंने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने वाला कदम उठाया है कहीं ऐसा न हो कि अपना राजपाट तेजस्वी को देकर नीतीश पीएम इन वेटिंग के नाम से देशाटन करने चल दें और फिर वे वेटिंग में ही रह जाऐं। बिहार के हालात भी कुछ इसी तरह का संकेत कर रहे हैं। लोगों में सरकार के प्रति असंतोष है। बिहार विधानसभा में भाजपा खेमे को मुख्य प्रतिस्पर्धी के तौर पर लेने के चलते केंद्र से राज्य को सहयोग की उम्मीद कम ही है।
ऐसे में सीएम नीतीश को जो भी करना है महागठबंधन के सहयोग और अपने रिसोर्सेस से करना है मगर राज्य में अपराधों का ग्राफ बढ़ रहा है और विपक्ष तो जैसे मौके की तलाश में है। नीतीश पर हर ओर से आरोपों की बौछार होने लगी है मगर वे अपना सारा काम अपने सिपहसालारों को सौंपकर उत्तरप्रदेश में दम लगाने में लगे हैं। भले ही उत्तरप्रदेश में उनका तीर निशाने पर लगे न लगे लेकिन बिहार में लालू अपने लालटेन की बत्ती जलाए हुए हैं।
भई बिहार में गोलियों की बौछार हो रही है और साख खराब हो रही है नीतीशे कुमार की। वाह भई लालू, किसी ने खूब कहा है जब तक समोसे में रहेगा आलू बिहार में रहेगा लालू। मगर यह क्या। नीतीश को यूपी के लिए निशाना लगाने की बात कहकर लालू ने अपने बेटे और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी के लिए सत्ता के गलियारे के रास्ते लालटेन से रोशन कर दिए हैं।
मगर नीतीश भी कम नहीं हैं दिल्ली वाला उनका दिलेर दोस्त केजरीवाल फिलहाल उनके ही साथ है। हालांकि यह भी कहना गलत नहीं है कि पीएम इन वेटिंग में नीतीश का नाम लेते - लेते केजरी खुद की सेटिंग न जमा लें और फिर से लोकसभा के लिए आप में दम न भर दें।
'लव गडकरी'