हिजाब विरोध आंदोलन के आगे झुकी इस्लामी सरकार, नैतिक पुलिस ख़त्म, अब बुर्का कानून की बारी
हिजाब विरोध आंदोलन के आगे झुकी इस्लामी सरकार, नैतिक पुलिस ख़त्म, अब बुर्का कानून की बारी
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तेहरान: ईरान में महसा अमिनी (Mahsa Amini) की निर्मम हत्या के बाद उठे हिजाब विरोधी आंदोलन ने आखिर इस्लामी सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया है। अपनी क्रूरता के लिए कुख्यात ईरान की नैतिक पुलिस (Morality Police) को समाप्त कर दिया है। अब, ईरान की इस्लामिक सरकार हिजाब पहनने की अनिवार्यता को खत्म करने पर विचार कर रही है। मोरालिटी पुलिस को खत्म करने को लेकर अटॉर्नी जनरल मोहम्मद जफर मोंटाज़ेरी ने बताया है कि, 'नैतिकता पुलिस का न्यायपालिका से कोई वास्ता नहीं है।' अटॉर्नी जनरल यह जवाब उस समय दिया, जब उनसे इस विभाग को बंद करने को लेकर उनसे सवाल पुछा गया।

बता दें कि वर्ष 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने हिजाब कल्चर को बढ़ावा देने के लिए नैतिक पुलिस की नीव रखी थी। इसे गश्त-ए-इरशाद के नाम से जाना जाता था। ईरान की यह नैतिक पुलिस उन महिलाओं की निगरानी करती थी, जो हिजाब या इस्लामी कपड़े नहीं पहनती थी। हालांकि, ईरान की नैतिक पुलिस अपनी क्रूरता के लिए भी कुख्यात रही है। इसी नैतिक पुलिस ने हिजाब में से बाल दिख जाने पर महसा अमिनी को हिरासत में लिया था और इतनी बुरी तरह पीटा था कि, वह कोमा में चली गई थी। जिसके कुछ दिनों बाद महसा की मौत हो गई थी।  इसके बाद ईरान में हिजाब विरोधी आंदोलन भड़क उठे थे और मुस्लिम महिलाएं सड़कों पर अपने हिजाब जलाने लगीं थी। 

हालाँकि, केवल नैतिक पुलिस को ही खत्म कर देने से ईरान की महिलाएँ मानने के लिए राजी नहीं हैं। वे हिजाब और बुर्के की सख्ती से भी आजादी चाहती हैं। इसको लेकर उनका प्रदर्शन निरंतर जारी है। ईरान की मुस्लिम महिलाओं को पूरे विश्व से मिल रहे समर्थन के दबाव के बाद ईरान सरकार हिजाब की अनिवार्यता पर विचार कर रही है। ईरान के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद जफ़र मोंटेज़ेरी ने इस संबंध में कहा है कि हिजाब और बुर्के की अनिवार्यता को खत्म करने के लिए कानून में किसी परिवर्तन की आवश्यकता है या नहीं, इसको ध्यान में रखते हुए संसद और न्यायपालिका कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक-दो हफ्ते बाद इसके नतीजे देखने को मिलेंगे।

बता दें कि सन 1979 में मौलना खुमेनाई की अगुवाई में ईरान में इस्लामी क्रांति हुई थी और इस क्रांति ने राजशाही को उखाड़ फेंका था। इसके चार वर्ष के बाद यानी 1983 में महिलाओं के लिए बुर्का और हिजाब अनिवार्य कर दिया गया था, साथ ही लोगों पर कट्टर इस्लामी कानून लगातार थोपे जाने लगे थे।  

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