अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस - पूरब से होता एक नई सुबह का आगाज़
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस - पूरब से होता एक नई सुबह का आगाज़
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इन दिनों समूचा विश्व भारत की ओर उम्मीद लगाए हुए है। लगातार गिरती अर्थव्यवस्थाओं, नौकरियों में कटौती, आर्थिक तंगी, महंगाई, बेरोजगारी और भावनात्मक अलगाव जैसी परेशानियों से जूझ रहे विश्व को इन दिनों भारतीय दर्शन और वेदांत से आस लगी हुई है। अब यूरोप में निवास करने वाला कोई भी गोरा नमस्ते कहने से गुरेज नहीं रखता। विकास की अंधी दौड़ में हांफते - हांफते पश्चिम थक गया है और अब वह जीवन में एक ठहराव चाहता है। एक बदलाव चाहता है। जब भारत ने पश्चिम का अंधानुकरण कर पाश्चात्य देशों की कार्यशैली को अपनाया तो यहां भी धीरे - धीरे ऐसे ही हालात बनने लगे। दिन रात काम करने के बाद भी बाॅस का खुश न होना, काम की अधिकता के चलते अपनी पत्नी और बच्चों से बढ़ती दूरियों से परिवारों का टूटना और काम के सिलसिले में अपने माता - पिता से दूर रहने के कारण बच्चों को दादा - दादी और नाना - नानी की संगत न मिल पाने से यहां भी सामाजिक पैमाने बदल रहे हैं।

लोग थोड़ा कुछ पाने के ऐवज में बहुत कुछ खोते जा रहे हैं। ऐसे में योग और ध्यान का प्रस्फुटन उनके जीवन में नई रोशनी लेकर आया है। पूरब से पश्चिम तक वैश्विक अर्थव्यवस्था के चलन बढ़ते औद्योगिकरण के चलते लोगों का रहन - सहन, खान - पान सभी कुछ बदलता जा रहा है। ऐसे में उनके जीवन पर तनाव हावी हो रहा है। लोग असमय डायबिटीज़, मोटापे, ब्लडप्रेशर और अन्य कितनी ही बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। इन सभी का समाधान योग में नज़र आता है। इन दिनों समूचे विश्व में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को लेकर जमकर तैयारियां की जा रही हैं, लोगों को योग करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। 21 जून को सूरज की किरणें धरती पर पडते ही सुबह 7.30 बजे से लोग सामूहिकरूप से योग करते नज़र आऐंगे। इससे विश्व में स्वास्थ्य के प्रति चेतना का जागरण होना स्वाभाविक है।

योगासन और प्राणायाम के साथ चित्त को स्थिर किया जाना और मानवीय शरीर को उर्जावान बनाते हुए संतुलित रखना ही योग है। योग के माध्यम से आत्मा और शरीर के बीच सांमजस्य बनाते हुए इसके तारों को परमात्मा से जोडने का प्रयास किया जाता है। इससे व्यक्ति के शरीर में सकारात्मक उर्जा का विकास होता है और नकारात्मक उर्जा कम होती है। ऐसे में व्यक्ति जीवन के प्रति आशावादी सोच लेकर अपना जीवन जीता है। कहा जाता है कि स्वस्थ्य तन में ही स्वथ्य मन का विकास होता है। ऐसे में बुद्धि और चित्त को स्थिर करने के लिए लोगों को अपने शारीरीक विकारों को दूर करने की जरूरत है। इस तरह की जरूरत योग से ही पूरी हो सकती है।

दूसरी ओर योग शारीरीक स्वास्थ्य के साथ आध्यात्मिक चेतना का विकास करता है। यह आध्यात्मिक चेतना धर्म विशेष के दायरे से हटकर उस परम पिता परेमेश्वर की सत्ता का परिचय देती है जो मूल स्वरूप में प्रकाशपुंज के तौर पर सवत्र फैला हुआ है। अपने पुंज से वह योग करने वाले में ऐसा तेज भर देता है जिससे योगी का औरा भी चमक उठता है। जी हां, उसका शारीरीक आभामंडल तक योग शक्ति से निखर जाता है। योग के माध्यम से कुंडलिनी जागरण और मणिपुर, स्वाधिष्टान आदि सप्तचक्रों पर ध्यान का केंद्रण व्यक्ति को अलौकिक अनुभूति करवाता है। इसी अनुभूति के माध्यम से वह सभी के साथ मिलकर रहने की प्रेरणा प्राप्त करता है और फिर न तो परिवार बिखरते हैं और न ही बाॅस को खुश करने की चिंता सताती है।

योग के गणित से सबकुछ हल्का होकर उपर की ओर उठने लगता है। इसके साथ ही व्यक्ति का व्यक्तित्व भी उंचाईयों को छूता नज़र आता है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के माध्यम से भारत फिर से विश्व को एक दर्शन देने के लिए तैयार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योग के इस प्रयोग से देशों को जोड़ने का काम किया है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के माध्यम से जीवन जीने के इस प्रेरणात्मक योग सूत्र का जब समूचे विश्व में प्रयोग होगा तो भारत द्वारा दिए गए वसुधैवकुटुंबकम की संकल्पना की शुरूआत होती नज़र आएगी।

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