अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: इन महिलाओं को कभी नहीं भूल सकते हम
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: इन महिलाओं को कभी नहीं भूल सकते हम
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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: अगर महिलाएं ना होती तो क्या होता। इस दुनिया की कल्पना बिना महिलाओं के सम्भव ही नहीं है। महिलाएं माँ, बहन, गुरु, पत्नी, बेटी, दादी किसी भी रूप में हमारे सामने होती हैं और हमेशा हमारा सहयोग करती हैं। कभी-कभी तो ऐसा लगता है अगर महिलाएं ना होती तो शायद ही यह दुनिया होती। इस दुनिया का वजूद बिना महिलाओं के कुछ नहीं है। महिलाओं से ही यह दुनिया है। महिला हर रूप में खूबसूरत हैं और उन्होंने अपने काम से हमेशा सम्मान पाया है। आज हर क्षेत्र में महिलाएं आगे हैं फिर वह घर में रोटी बनाना हो, बर्तन धोना हो या फिर पुलिस बनकर मुजरिमों को पकड़ना हो, डॉक्टर बनकर किसी मरीज को बचाना हो। आज महिलाओं का नाम हर क्षेत्र में आगे है। अब आज 8 मार्च है यानी 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस'। आज हम आपको उन महिलाओं से मिलवाने जा रहे हैं जिनका इतिहास गौरवान्वित करने वाला है।

दुर्गाबाई देशमुख - केवल 14 साल की उम्र में दुर्गाबाई देशमुख ने ऐसा भाषण दिया था कि आम जनता ही नहीं बल्कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तक हैरान रह गए थे। दुर्गाबाई देशमुख भारत की स्वतंत्रता सेनानी थीं और वह स्वतंत्र भारत के पहले वित्तमंत्री चिंतामणराव देशमुख की धर्मपत्नी भी थी। उन्होंने अपने काम से सभी को हैरान किया था। बहुत कम लोग जानते हैं कि दुर्गाबाई देशमुख ने नमक सत्याग्रह में मशहूर नेता टी. प्रकाशम के साथ अपने कदम बढ़ाये थे और तो और इस दौरान उन्हें 1 साल तक जेल में भी रहना पड़ा था। एक साल तक जेल में रहने के बाद भी दुर्गाबाई देशमुख ने अपने जज्बे को कम नहीं होने दिया और बाहर आने के बाद वह वापस आंदोलन में शामिल हो गईं। महिलाओं के हक के लिए भी दुर्गाबाई देशमुख ने सक्रियता दिखाई और वह लड़ती रहीं। दुर्गाबाई देशमुख को यूनेस्को पुरस्कार भी दिया गया था।

सरोजिनी नायडू - इनको तो आप बहुत अच्छे से जानते होंगे। एक लेखिका और स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू को भारत की कोकिला भी कहा जाता है। उन्होंने एक सफल कवियत्री के रूप में अपनी बेहतरीन पहचान बनाई और आज उनकी कविताओं को खूब पसंद किया जाता है। आप सभी ने आज तक उनकी कई कवितायेँ पढ़ी, सुनी होंगी। सरोजिनी नायडू राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित थी, और इसी वजह से उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी के सहयोग में अपना हाथ बढ़ाया था। भारत की स्वतंत्रता के लिए कई आंदोलन हुए और उनमे भाग लेने के लिए सरोजिनी नायडू सबसे आगे रहीं। समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ सरोजिनी नायडू ने हमेशा आवाज उठाई। उन्होंने भारत में रहने वाली सभी महिलाओं को जाग्रत किया और जुल्म ना सहने के लिए प्रेरित किया। केवल इतना ही नहीं वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन की प्रथम भारतीय महिला अध्यक्ष तक बनी थीं।

रजिया सुल्तान - इन्हे भी आप जानते ही होंगे। रजिया सुल्तान इल्तुतमिश की पुत्री थीं और वह मुस्लिम समाज की पहली महिला शासिका भी थी जिन्होंने अपने काम से सभी को हैरान किया था। रजिया ही वह महिला थीं जिन्होंने पर्दा प्रथा को छोड़ दिया था और पुरुषों की तरह खुले मुंह राजदरबार में जाती थीं। उनके पिता की मृत्यु हो गई तो उन्हें ही दिल्ली का सुल्तान बनाया गया था। रजिया बचपन से ही नीति और शासन विद्या में परांगत थी, इसी के कारण उन्होंने अपने शासन के दौरान जन कल्याण से जुड़े कई कार्य किये। रजिया ने अपने काम से लोगों के दिलों में जगह बनाई। इन सभी के बीच उन्हें अपने प्रेमी याकुत के साथ अपने संबंधों के चलते तुर्की शासकों का विद्रोह झेलना पड़ा और यही उनकी मौत की भी वजह बना।

विजयलक्ष्मी पंडित - श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना साहसभरा योगदान दिया। उन्हें साल 1930 के असहयोग आंदोलन में भाग लेने के चलते जेल जाना पड़ा। जेल में उन्होंने 1 साल बिताये। उसके बाद साल 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह मे भी वह जेल गईं और उस दौरान वह 4 महीने तक नैनी जेल में रही। जेल से निकलने के बाद उन्होंने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रियता दिखाई और उसी दौरान उन्हें बंदी बना लिया गया। उन्हें 9 महीने तक जेल में रहना पड़ा लेकिन बीच में उनका स्वास्थ्य खराब हो गया और वह जेल से छूट गईं। जेल से छुटते ही वह अकाल पीडितों की सेवा में लग गईं। वह अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में भी अपना परचम लहरा गईं। बहुत कम लोग जानते हैं कि वह संयुक्त राष्ट्र संघ में अकेली स्त्री प्रतिनिधि थी। उन्होंने अपने काम से सभी को हैरान किया। उनके अनेक वीरताभरे कामों के चलते लोग उन्हें आज भी याद करते हैं।

आनंदीबाई जोशी - भारत की पहली महिला डॉक्टर थीं आनंदीबाई जोशी। उस समय में कम उम्र में शादी हो जाती थी। उस दौरान ही मात्र 9 साल की उम्र में आनंदीबाई की शादी हो गई। उसके बाद जब वह 14 साल की हुईं तो उन्होंने अपने पहले बच्चे को जन्म दिया लेकिन बच्चे के जन्म के 10 दिन बाद ही उसकी मौत हो गई। उसकी मौत का सदमा आनंदीबाई सह नहीं पाईं और काफी समय तक सदमे में रहीं। उसी बीच उन्होंने यह ठान लिया कि वह डॉक्टर बनेंगी क्योंकि उस दौरान उनके आस-पास कोई डॉक्टर नहीं था जो उनके बच्चे को बचा सके। इसी के चलते उन्होंने डॉक्टर बनने का फैसला लिया। लोगों को बीमारियों से बचाने के लिए आनंदीबाई डॉक्टर तो बन गईं लेकिन अधिक समय तक वह यह सेवा नहीं दे पाईं। उनकी मौत 22 साल की उम्र में हो गई।

भीखाजी कामा - भीखाजी कामा वही महिला थीं जिन्होंने प्लेग रोगियों की सेवा करते-करते बलिदान दे दिया था। भीखाजी कामा ने जर्मनी के स्टटगार्ट नगर में सातवीं अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस के दौरान भारतीय झंडा लहराया था। वह बहुत ही धनी परिवार में जन्मी थीं लेकिन फिर भी वह अपनी सभी सुख-सुविधाओं को छोड़कर भारत को आजाद करवाने की लड़ाई में लगी रहीं। उन्हें भारतीय राष्ट्रीयता की महान पुजारिन के नाम से भी जाना जाता है। भारत को आजादी दिलवाने के लिए इन्होने ही कई लोगों को एकजुट किया। सेवा की भावना भीखाजी में कूट-कूट कर भरी हुई थी और इसी के कारण प्लेग रोगियों की सेवा करते हुए उनका निधन 13 अगस्त 1936 को हो गया।

ऐसी ही और भी कई महिलाएं हैं जिनमे से किसी ने भारत को आजादी दिलवाने में अपना योगदान दिया। किसी ने महिलाओं के हक़ के लिए लड़ाई की, तो किसी ने दूसरों को बचाने के लिए मृत्यु को गले लगा लिया। आज अंतरर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हम ऐसी महिलाओं को सलाम करते हैं।

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