अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: अदम्य साहस और सहनशीलता की परिचायक भारतीय नारी
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: अदम्य साहस और सहनशीलता की परिचायक भारतीय नारी
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निसंदेह नारी साक्षात आदिशक्ति का ही प्रतिबिम्ब है। अपरिमेय सहनशक्ति व धैर्य जैसे गुणों ने नारी को पुरुषों पर वरीयता प्रदान की है। इन्हीं गुणों के आधार पर नारी आज इतनी मजबूत हो गई है कि वो  किसी के लिए भी आदर्श प्रस्तुत करने में सक्षम हैं। ऐसा ही एक उदाहरण एसिड हमले से पीड़ित लखनऊ की नसरीन हैं जिन्होनें ह्रदय विदारक त्रासदियां सहीं, लेकिन अपने जज्बे और जीवन की कठिनाइयों से लड़ने की अपनी अदम्य जिजीविषा से न केवल वे जीती बल्कि आज हम सभी के लिए प्रेरणा भी बनीं।

नसरीन के जीवन में संघर्ष बाल्यकाल से ही आरम्भ हो गया था। उन्हें जन्म देने वाले माता-पिता उन्हें छोड़ कर चले गए। फिर एक दंपत्ति ने उन्हें गोद लिया। लेकिन सौतेली माँ से नसरीन को कभी भी माँ के प्रेम की अनुभूति नहीं हुई। सौतेली माँ नसरीन को पसंद नहीं करती थीं इसलिए उसने नसरीन की शादी दूर तय कर दी। यह भी ध्यानपूर्वक नहीं देखा और जाँचा कि लड़का कैसा है और उसका परिवार कैसा है। शादी के कुछ दिनों बाद ही नसरीन को उसके पति और ससुराल वालों ने परेशान करना शुरू कर दिया। नसरीन ने सहनशीलता का परिचय देते हुए परिस्थितियों को सँभालने का प्रयत्न किया और दो बच्चियों को जन्म दिया। 

लगभग दस वर्षों तक अपने पति और ससुराल वालों का अत्याचार सहने के बाद नसरीन ने तलाक लेने की अर्जी दाखिल की। नसरीन के पति से यह बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने अपनी दोनों बच्चियों के सामने ही तेज़ाब (एसिड) भरी बोतल से नसरीन के चेहरे पर हमला कर दिया। नसरीन कमर तक झुलस गई। फिर कहानी शुरू हुई एक ऐसे संघर्ष की जो बेहद कठिन था, एक सामान्य महिला की ऐसी कठोर परीक्षा शायद ईश्वर ने हम सभी को जीवटता और प्रेरणा प्रदान करने के लिए ही ली हो।

एसिड अटैक से जूझ कर नसरीन जब अपनी सौतेली माँ के घर पहुंची तो उसने नसरीन को घर में जगह देने से इंकार कर दिया। कुछ रिश्तेदारों ने नसरीन को पनाह देना चाही तो उन्हें भी नसरीन की माँ ने वहां से निकलवा दिया। घर के सामने एक ताई रहा करती थी जिन्होनें तरस खाकर नसरीन को पनाह दी लेकिन सौतेली माँ तो जैसे उसकी दुश्मन ही बन चुकी थी। ताई ने भी नसरीन को घर से निकाल दिया। अंततः नसरीन को एक खँडहर में शरण लेनी पड़ी। 

एसिड हमले में हुए नुकसान के परिणामस्वरूप लोग नसरीन को देख कर डर जाते थे। एसिड से जलने के बाद उनके शरीर में मवाद पड़ गया था जिससे उनके शरीर से तेज दुर्गन्ध आती थी। अस्पताल वालों ने भी उन्हें भर्ती करने से मना कर दिया और यह तर्क दिया कि वे पूरी नहीं जली हैं और अस्पताल वाले सिर्फ उन्हें ही भर्ती करते हैं जो पूरा जल गया हो।

खंडहर में नसरीन के पास बिस्तर नहीं था, उन्हें जमीन पर ही कुछ फटे-पुराने गद्दे डाल कर रहना पड़ा। लेकिन यहीं उनके दुर्भाग्य का अंत नहीं हुआ था। खँडहर में चीटियों के बड़े-बड़े गुच्छे नसरीन के घावों को और गहरा बनाने के लिए तैयार थे। तरस खाकर ताई ने वहां एक छोटा पलंग रखवाया जिसमें नसरीन के पैर बाहर लटकते थे। किन्तु चीटियों ने वहां भी पीछा नहीं छोड़ा। नसरीन ने इन चुनौतियों को स्वीकार करते हुए अदम्य साहस और सहनशीलता की बदौलत लड़ते रहने का संकल्प लिया।

गली के वे लोग जो नसरीन के पिता से परिचित थे, वे नसरीन की पट्टियां करवाते थे जो कि पांच सौ रुपये से शुरू होती थीं। तेज़ाब के दुष्प्रभावों की वजह से नसरीन की आँखें बंद नहीं हो पाती थीं, इसलिए जब कोई खाना देने आता था तो उससे ही वे आँखें बंद करवाती थीं।

इस दरम्यान नसरीन के आठ ऑपरेशन हुए। आठों ऑपरेशन के लिए नसरीन को पहले पैसों का इंतजाम करना पड़ा। फिर अस्पताल में बिस्तर ढूँढा और वहां भर्ती हुईं। अंतिम ऑपरेशन होने वाला था। तब नसरीन से डाक्टरों ने एक कागज़ पर हस्ताक्षर करने को कहा कि तुम्हें कुछ भी हो गया तो वे जिम्मेदार नहीं। नसरीन ने डॉक्टर से कहा कि मैं मुस्लिम हूँ। बस इतना उपकार करियेगा कि मैं मर जाऊं तो मुझे दफना दीजियेगा। नसरीन को बस इसी बात का दुःख था कि आठों ऑपरेशन के दौरान उनके लिए कोई दुआ माँगने वाला नहीं था। नसरीन ने मौत को बहुत करीब से देखा है। उन्होंने यह महसूस किया है कि किसी जिन्दा इंसान को कोई कैसे खा सकता है।

नसरीन के पति को दो महीने बाद ही कोर्ट से जमानत मिल गई। उसने किसी अन्य महिला से शादी भी कर ली। यहाँ सबसे बड़ा सवाल यह है कि नसरीन ने जो त्रासदियां झेलीं उसके लिए कौन कसूरवार है? क्या सिर्फ उसका पति कसूरवार है? नहीं। उसके पति के साथ ही वे सभी लोग भी बराबर दोषी है जिन्होंने इतने बुरे समय में नसरीन को खँडहर में रहने को मजबूर किया। क्या मानवता सिर्फ किताबी शब्द रह गया है? क्या संवेदनाएं केवल कागजों पर ही सिमट कर रह गई हैं? अगर नहीं, तो फिर क्यों नसरीन को इतनी ह्रदय विदारक त्रासदियां झेलनी पड़ीं?

बहरहाल नसरीन ने अपने हौंसलों और अडिग सिद्धांतों के आधार पर एक बेहद कठिन लड़ाई लड़ी और जीत हांसिल की।

आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हम सभी पूर्ण आत्मीयता से उन्हें शुभकामनाएं प्रेषित करते हैं। उनकी और उनके जैसी कई महिलाओं के साहस की लड़ाई से आने वाली कई पीढ़ियां निश्चित रूप से प्रेरणा प्राप्त करेंगी।

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