फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की एक अहम बैठक फ्रांस में होने वाली है. इस बैठक में पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में बनाए रखने, बाहर निकालने या फिर उसको ब्लैकलिस्ट करने को लेकर निर्णय लिया जाने वाला है. इस बैठक में पाकिस्तान ने बीते तीन माह के दौरान आतंकवाद को हो रही फंडिंग रोकने के लिए क्या कदम उठाए हैं उसको देखते हुए फैसला होगा.
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भारत इस बैठक में पाकिस्तान का असर चेहरा सबके सामने लाना चाहता है. इसलिए भारत की कोशिश पाक को ब्लैकलिस्ट कराने की होगी, वहीं पाकिस्तान का जोर खुद को ब्लैकलिस्ट से बचाने के लिए होगा. लेकिन, समाचार एजेंसी रॉयटर के मुताबिक पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट कराने के भारत के मंसूबे पर चार देश पानी फेर सकते हैं. इनमें तुर्की, मलेशिया, सऊदी अरब और चीन का नाम शामिल है. आपको यहां पर ये भी बता दें कि एफएटीएफ ने ईरान और उत्तर कोरिया को काली सूची में डाला हुआ है, जिसकी वजह से ये देश आर्थिक संकट को झेल रहे हैं.
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आपकी जानकारी के लिए इनमें से तुर्की मलेशिया और चीन वो देश हैं जिन्होंने कश्मीर के मुद्दे पर भी पाकिस्तान का साथ दिया है. सऊदी अरब ने इस मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ तो नहीं दिया है लेकिन इस मंच पर वो पाकिस्तान का साथ देता रहा है. इसकी वजह सबसे बड़ी सऊदी अरब का पाकिस्तान में हुआ अरबों डॉलर का निवेश है. पाकिस्तान के कालीसूची में डाले जाने के बाद सऊदी अरब का ये निवेश बेकार हो जाएगा और इसकी वापसी की उम्मीद भी काफी कुछ खत्म हो जाएगी. इसके साथ ही वहां पर निवेश के सारे रास्ते बंद हो जाएंगे. ऐसे में पाकिस्तान के साथ सऊदी अरब भी आर्थिकतौर पर नुकसान झेलने को मजबूर होगा. लिहाजा इस मंच पर पाकिस्तान का साथ देना सऊदी अरब के लिए जरूरत से ज्यादा मजबूरी बन चुका है.
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