हिंदू धर्म में मरणोपरांत या मृत आत्मा के लिए कुछ सालों बाद की जाने वाली प्रक्रिया को श्राद्ध पक्ष कहा जाता है। साल में एक बार श्राद्ध पक्ष आते हैं और 16 दिनों तक चलने के कारण इन्हें 16 श्राद्ध भी कहा जाता है। आइए जानते है श्राद्ध पक्ष से जुड़ी कुछ ध्यान रखने योग्य और कुछ ज़रूरी बातें।
- श्राद्ध पक्ष को 16 श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है, जो कि भाद्रपद माह की पूर्णिमा से प्रारंभ होते हैं और इनका समापन 16 दिनों के बाद आश्विन माह की अमावस के साथ हो जाता है।
- इस बात का विशेष ध्यान रहें कि जिनकी मृत्यु हुई है, उन्हें उनकी मृत्यु के तीसरे या पांचवें वर्ष में पितृ में मिलाया जाता है। बता दें कि जिस तिथि को मृत्यु होती है, उसी तिथि को यह कार्य सम्पन्न होता है, चाहे मृत्यु माह के किसी भी पक्ष शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष में हुई हो।
- एक से अधिक बेटे होने पर यदि सभी बेटे एक साथ रहते हो तो एक साथ, वहीं पृथक-पृथक रहते हो तो पृथक-पृथक उन्हें अपने पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। इस कार्य को बड़े या छोटे के हिसाब से विभाजित न करें। सभी को इस कार्य को करना चाहिए ।
- यदि किसी का बेटा नहीं है, तो इस स्थिति में श्राद्ध बेटी का बेटा कर सकता है।
- श्राद्ध के बनाए भोजन के लिए पीतल के ही बर्तन का उपयोग करना चाहिए। स्टील के बर्तन को स्थान नहीं देना चाहिए।
- श्राद्ध के भोजन में कई सब्जियों का इस्तेमाल नहीं होता है। इतना यही नहीं भोजन ग्रहण करने वाले ब्राह्मण से यह भी नहीं पूछना चाहिए कि भोजन कैसा बना है।
श्राद्ध की शुरुआत कैसे हुई ?
श्राद्ध की परंपरा महाभारत काल से चली आ रही है। एक बार महातपस्वी अत्रि ने ऋषि नेमि को श्राद्ध का उपदेश दिया था। इसके बाद निमि ऋषि द्वारा इसकी शुरुआत हुई थी। धीरे-धीरे सभी ऋषि-मुनियों ने इसे शुरू कर दिया।
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