अगर इनकी बात मान लेते तो वकील बन जाते विवेकानंद
अगर इनकी बात मान लेते तो वकील बन जाते विवेकानंद
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आज हम आपको बताने जा रहे हैं स्वामी विवेकानंद जी के जीवन से जुड़ा एक रोचक संस्मरण जो आपके लिए बहुत ख़ास हो सकता है. आइए जानते हैं.

संस्मरण- एकांत को दृष्टिगत रखते हुए नरेंद्र (विवेकानंद के बचपन का नाम) अपने नाना के घर पर अकेले रहकर पढ़ाई करते थे. एक शाम एक व्यक्ति आया और उसने नरेंद्र से कहा, 'तत्काल घर चलो. तुम्हारे पिता का देहावसान हो गया है.' नरेंद्र घर आते हैं. पिता का पार्थिव शरीर कमरे में रखा है. मां और छोटे-छोटे भाई-बहन शोकमग्न हैं. इस दृश्य को नरेंद्र ने देखा. अगले दिन पिता का विधिवत अंतिम संस्कार किया. नरेंद्र के पिताजी कलकत्ता के प्रसिद्ध वकीलों में से एक थे. उन्होंने धन भी यथेष्ट कमाया था, परंतु अधिकतर भाग परोपकार में लगा दिया और भविष्य के लिए कुछ भी संचय नहीं किया था. मां भुवनेश्वरी देवी पर परिवार संभालने की जिम्मेदारी थी. परिवार विपन्नता के दौर से गुजर रहा था. कभी-कभी छोटे भाई बहनों के लिए भोजन की व्यवस्था जुटना भी मुश्किल था.

बालक नरेंद्र गुप्त रूप से इसका पता लगा लेते थे और कई बार मां से कहते थे, 'मुझे आज एक मित्र के यहां भोजन करने जाना है.' इस प्रकार विपन्नता में कई दिन बीत रहे थे. रिश्तेदार बड़े क्रूर होते हैं. उन्होंने नरेंद्र के पैतृक मकान पर कोर्ट में दावा कर दिया. नरेंद्र ने केस की स्वयं पैरवी की और इस प्रकार के तर्क दिए कि वे केस जीत गए. विरोधी पक्ष के वकील ने इन्हें रोकना चाहा और कहा, 'भद्र पुरुष तुम्हारे लिए वकालात उचित क्षेत्र रहेगा', परंतु नरेंद्र ने उनकी बात नहीं सुनी और कोर्ट से दौड़ते हुए अपनी मां के पास गए और कहा, 'मां अपना घर रह गया है.'

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