जानकारी जाम मस्जिद के बारे में
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जामा मस्जिद को सम्राट शाहजहां द्वारा बनवाया गया था। इस मस्जिद का निर्माण 1650 में शुरू किया गया था जो 1656 में पूरा हुआ। ये मस्जिद चावड़ी बाज़ार रोड पर स्थित है। इस विशाल मस्जिद में 25,000 श्रद्धालु एक साथ प्रार्थना कर सकते हैं।

जामा मस्जिद की विशेषताएँ

(1) जामा मस्जिद का निर्माण लाल सेंड स्टोन और सफेद संगमरमर की समानांतर खड़ी पट्टियों पर किया गया है। सफेद संगमरमर के बने तीन गुम्बदों में काले रंग की पट्टियों के साथ शिल्पकारी की गई है।
(2) यह पूरी संरचना लगभग पाँच फुट ऊंचे स्थान पर है ताकि इसका भव्य प्रवेश द्वार आस पास के सभी इलाकों से दिखाई दे सके। सीढ़ियों की चौड़ाई उत्तर और दक्षिण में काफी अधिक है। चौड़ी सीढ़ियां और मेहराबदार प्रवेश द्वार इस लोकप्रिय मस्जिद की विशेषताएं हैं।
(3) जामा मस्जिद का पूर्वी द्वार केवल शुक्रवार को ही खुलता है। इस द्वार के बारे में कहा जाता है कि सुल्तान इसी द्वार का प्रयोग करते थे।
(4) पश्चिमी दिशा में मुख्य प्रार्थना कक्ष में ऊंचे ऊंचे मेहराब सजाए गए हैं जो 260 खम्भों पर है और इनके साथ लगभग 15 संगमरमर के गुम्बद विभिन्न ऊंचाइयों पर है।
(5) प्रार्थना करने वाले लोग यहां अधिकांश दिनों पर आते हैं किन्तु शुक्रवार तथा अन्य पवित्र दिनों पर संख्या बढ़ जाती है।
(6) यह कहा जाता है कि बादशाह शाहजहां ने जामा मस्जिद का निर्माण 10 करोड़ रु. की लागत से कराया था।  
(7) इस मस्जिद को आगरा में स्थित मोती मस्जिद की एक अनुकृति कहा जा सकता हैं।
(8) जामा मस्जिद का प्रार्थना गृह बहुत ही सुंदर है। इसमें ग्यारह मेहराब हैं जिसमें बीच वाला मेहराब अन्य से कुछ बड़ा है। इसके ऊपर बने गुंबद को सफ़ेद और काले संगमरमर से सजाया गया है जो निज़ामुद्दीन दरगाह की याद दिलाते हैं।

जामा मस्जिद का इतिहास

प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की लड़ाई में अंग्रेज़ ‘लाल किला’ पर फतह करने के लिए सभी तरह की नीतियां अपना रहे थे। जिस समय निकलसन के नेतृत्व में अंग्रेज़ फौज काबुली गेट की ओर बढ़ने का प्रयास कर रही थी उसी समय कर्नल कैंपबेल के नेतृत्व में अंग्रेज़ी फौज का एक दस्ता जामा मस्जिद की ओर बढ़ने का प्रयास कर रहा था। तंग गलियों में बने मकानों, खिड़कियों और चौबारों पर शाही सेना द्वारा की जा रही गोलाबारी का जवाब देते हुए अंग्रेज़ जामा मस्जिद तक जा पहुंचे। लेकिन वह ज्यादा देर तक नहीं टिक सके। जामा मस्जिद पर लगी तोपों से इतनी भारी गोलाबारी की गई कि अंग्रेजों को जान के लाले पड़ गए। वह जान बचाकर भागने पर मजबूर हो गए। जामा मस्जिद के पास जब अंग्रेजों की सेना पहुंची तो जामा मस्जिद से निकल कर लोगों ने हमला कर दिया। जामा मस्जिद से निकल कर अंग्रेजों की गोलियों का मुकाबला लोगों ने तलवारों से किया।

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