कटाक्ष : बढ़ते 'बजट' और घटती 'उम्मीदों' पर हावी राजनीति
कटाक्ष : बढ़ते 'बजट' और घटती 'उम्मीदों' पर हावी राजनीति
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हाल में भारत सरकार द्वारा आम बजट पेश कर दिया है, जिसमे उन्होंने अपनी उम्मीदों पर पूरी तरह खरा उतरने का प्रयास किया है. आर्थिक प्रगतिदर, सर्वेक्षण के बाद ही सरकार द्वारा यह बजट पेश किया गया है जिसमे आम लोगो के साथ-साथ बिज़नसमैन, साहूकार, डेली वर्कर्स और किसानों सबके के लिए सरकार ने एक नया एजेंडा दिया है. वित्तमंत्री अरुण जेटली का यह बजट कुछ लोगो के लिए उम्मीदों भरा रहा, कुछ के लिए सुकून भरा, तो कुछ के लिए यह सिर्फ हवा ही रहा. और यह हवा निचे तक भी नही आयी और ऊपर से ही उड़ गयी. उन्हें तो समझ में भी नही आया कि इतना हो हल्ला किस बात का है. आखिर देश में ऐसा हुआ क्या है????

हम आज आपको यह नही बता रहे है कि बजट में क्या दिया गया है या क्या नही, किन्तु एक बात तो साफ है कि जब जब बजट पेश हुआ है तब तब इस पर राजनीती हावी जरूर रही है. ऐसे में चाहे किसी की भी सरकार हो वो अपने बजट का गुणगान करते नही थकते है. दूसरी और विपक्ष वाले इस पर इतना हल्ला करते है कि उनके हल्ले से बजट की यह आवाज लोगो तक पहुँच ही नही पाती है. और वो चाहते भी यही है कि यह "बजट" अगर बजट में ही सिमट जाये तो ठीक रहेगा.

इसके अलावा कुछ और राजनैतिक पार्टिया होती है, जो सिर्फ यह बोलने के लिए खड़ी रहती है, कि इस बजट में कुछ नही हुआ. किन्तु कोई भी सरकार बजट को उसकी अनुकूलता के हिसाब से ही पेश करती है, जिसमे वह पूरी तरीके से खरी नही उतर पाती है. इसका मुख्य कारण है, बढ़ते बजट के साथ घटती उम्मीदें!! और इन सब पर राजनीती का हावी होना यह दर्शाता है कि या तो सरकार द्वारा कुछ किया ही नही गया है, या फिर सरकार को कुछ करने नही दिया जा रहा है.

देश का आर्थिक विकास, बजट पर निर्भर नही रहता है बल्कि यह सिर्फ दो भागों पर निर्भर करता है. यह दो भाग इस प्रकार है.

1. महंगाई - हर बार की तरह सरकार ने बजट में  इस बार भी रेलवे, टैक्स, स्वास्थ्य और डिजिटल इंडिया के साथ किसानों और ग्रमीण जीवन पर ध्यान देते हुए उसके अनुरूप ही एक बड़ा पैमाना पेश किया है, किन्तु कई बातें ऐसी भी है, जिसमे सरकार इस बजट को और अच्छा बना सकती थी. जिसमे महंगाई बहुत बड़ा मुद्दा बना हुआ है, और यह आम से खास तक सभी लोगो की दिनचर्या से जुड़ा हुआ है. जब तक महंगाई कम नहीं होती कोई भी बजट किसी के भी मुंह की लगाम नही बन सकता है. ऐसे में सरकार को चाहिए कि महंगाई को किसी तरह से कम ना सही, किन्तु सामान्य किया जाये. जिससे कुछ हद तक बजट एक सही दिशा में परिलक्षित होगा. देश में आज आसमान छूती महंगाई के सामने अगर इससे बड़ा बजट भी लाया जाये तो यह "ऊंट के मुंह में जीरा" साबित होगा. इसलिए महंगाई पर अंकुश लगाना ही सबसे बड़ा बजट हो सकता है.

2. राजनीति- देश में राजनीति को लेकर कभी भी कोई भी दल एकमत नही रहा है. जिसके कारण देश में बजट को लेकर समन्वय नही बन पाया है. ऐसे में सबसे ज्यादा नुकसान आम लोगो का हुआ है. हाल में बजट के बाद से ही राजनितिक गलियारों में प्रहारों का दौर शुरू हो गया है. इसमें कुछ लोगो ने बजट का सर्वेक्षण किये बिना या उसे सुने बिना ही इस पर बड़े बड़े निष्कर्ष दे दिए. जो कि गलत है. देश के आर्थिक विकास में आज से नही बल्कि कई दशको से राजनीति हावी हुई है. जिसका सीधा सा उदाहरण लोकसभा सत्र और विधानसभा सत्र के दौरान भी देखा जा सकता है. ऐसे में बजट पेश करना राजनितिक सियासत को गर्मी देना जैसा काम भी होता है.

क्या करे- कोई भी सरकार या राजनैतिक पार्टी देश को आर्थिक विकास में आगे नही ले जा सकती है, जब तक उसकी जमीनी हकीकत नही बदल जाती है. ऐसे में हर बार सिर्फ सरकार को या बजट को दोष देना गलत साबित होता है. इसके लिए सबसे पहला उपाय यह है कि जमीनी हकीकत को जानकर ही  उसके अनुरूप बदलाव होना चाहिए. बजट हमेशा सर्वस्व नही होता है, अतः इसके अलावा भी कई ऐसे मुद्दे होते है, जो विकास दर में भागीदार होते है, उन पर मुख्य रूप से जोर देना चाहिए. देश में हर बार जब बजट पेश होता है तो उसमे पिछले बजट से कुछ ज्यादा ही किया जाता है, किन्तु समय के साथ जरूरते व उम्मीदें भी बढ़ रही है, ऐसे में बजट सिर्फ बजट ना होकर आम लोगो की उम्मीद भी होना चाहिए. जिसे देश को मजबूती मिल सकेगी. 

"बलराम सिंह राजपूत"

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