कोरोना: इटली को बहुत महंगी पड़ी थी ये गलती, अब उसे करने से बच रहे भारतीय अस्पताल
कोरोना: इटली को बहुत महंगी पड़ी थी ये गलती, अब उसे करने से बच रहे भारतीय अस्पताल
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नई दिल्ली: यदि कोरोना जैसी भयावह महामारी के विकराल रूप धारण करने का खतरा दिखाई दे, तो क्या अस्पतालों में प्रत्येक स्टाफ को एकसाथ तैनात किया जाना चाहिए? इटली ने तो यही किया। किन्तु, इस रणनीति में एक बड़ी खामी यह है कि यदि किसी एक स्वास्थ्यकर्मी को कोरोना वायरस का संक्रमण हुआ तो फिर बाकी हॉस्पिटल स्टाफ को भी क्वारेंटाइन में भेजना होगा, क्योंकि अस्पताल का प्रत्येक स्टाफ प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर एक-दूसरे के संपर्क में आता ही है।

ऐसे में अस्पताल में स्टाफ की भारी कमी हो जाएगी और पूरा हॉस्पिटल ही बेकार पड़ जाएगा। इटली में यही हुआ। इटली की इसी चूक से सबक लेकर देश के शीर्ष सरकारी अस्पतालों ने रोटेशन फॉर्म्युला अपना लिया जिसके तहत डॉक्टरों, नर्सों सहित सभी हॉस्पिटल स्टाफ को तीन भागों में विभाजित कर दिया गया है। ए ग्रुप एक हफ्ते तक काम करता है और दो हफ्ते तक स्टैंड बाय मोड में चला जाता है। इसी प्रकार बी और सी ग्रुप भी करते हैं। यह रणनीति अपनाने वालों में दिल्ली, जोधपुर और भोपाल के एम्स, दिल्ली के सफदरजंग और लोक नायक हॉस्पिटल भी शामिल हैं।

एक अधिकारी ने बताया कि इस तरीके से यदि किसी एक समूह के साथ संक्रमण का खतरा पैदा भी हो तो दो ग्रुप ड्यूटी के लिए तैयार रहते हैं। दिल्ली एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि, 'यह फॉर्म्युला अस्पतालों में सोशल डिस्टैंसिंग सुनिश्चित करता है। इससे तैयारी का हमारा लेवल बढ़ाता है और पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (PPE) जैसे महत्वपूर्ण संसाधनों को सुरक्षित बनाता है।'

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