भारत सम्मानपूर्ण बर्ताव चाहता है
भारत सम्मानपूर्ण बर्ताव चाहता है
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लंदन : ब्रिटेन को यह समझना चाहिए कि भारत को उसकी जितनी जरूरत है, उससे कहीं ज्यादा जरूरत ब्रिटेन को उसकी है। यह बात ब्रिटेन के एक अग्रणी समाचार पत्र ने अपने संपादकीय में कही है। समाचार-पत्र ने कहा कि ब्रिटेन को यह काम स्पष्टवादिता व ईमानदारी से करना चाहिए, क्योंकि "भारत भाषण सुनने या संरक्षण पाने का इच्छुक नहीं है। वह अपने साथ सम्मानपूर्ण बर्ताव चाहता है।"

समाचार पत्र 'इंडिपेंडेंट' ने शुक्रवार को 'नरेंद्र मोदी की यात्रा ब्रिटेन के लिए संवेदनशील मुद्दे उठाने का एक अवसर' नाम से एक संपादकीय प्रकाशित किया। समाचार पत्र ने लिखा, "मोदी के तीन दिवसीय ब्रिटेन दौरे की सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि यह हो रहा है। ब्रिटेन ने एक दशक से अधिक समय तक गुजरात राज्य के इस तत्कालीन मुख्यमंत्री का उन आरोपों के चलते बहिष्कार किया कि वह 2002 में हजारों मुस्लिमों के जनसंहार को रोकने में असफल रहे या इस चीज के लिए उन्होंने लोगों को उकसाया था।"

अखबार ने लिखा है कि ब्रिटेन ने अक्टूबर 2012 में मोदी के साथ फिर से संवाद का फैसला लिया। संपादकीय में लिखा गया, "यह सही कदम था। मोदी ने मई 2014 में जबर्दस्त रूप से अपनी जीत दर्ज कराई।" ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन भारत को एक व्यापारिक एवं रणनीतिक साझेदार के रूप में देखते हैं। वह तीन बार भारत दौरा कर चुके हैं। इसके बाद ब्रिटेन ने मोदी की जवाबी यात्रा की इच्छा जताई। संपादकीय में लिखा गया, "लेकिन, ब्रिटेन को समझना चाहिए कि भारत को ब्रिटेन की जितनी जरूरत है, उससे कहीं ज्यादा जरूरत ब्रिटेन को भारत की है।"

संपादकीय में कहा गया है, "सच तो यह है कि भारत के साथ व्यापार करना कभी आसान नहीं रहा। मोदी ने इस हफ्ते विदेशी निवेश के लिए कई सुधार किए हैं लेकिन घरेलू राजनैतिक मजबूरियां ऐसे उदारीकरण को रोकेंगी जिनकी उम्मीद पश्चिमी देश लगाए हुए हैं। कम से कम ये सुधार बहुत जल्दी तो नहीं ही होने जा रहे हैं।" संपादकीय में कहा गया है कि आसान नहीं होने के बावजूद भारत से व्यापार हमेशा खास रहा है। देश में एक ऐसा मध्य वर्ग बढ़ रहा है जिसे अच्छे विश्वविद्यालय से लेकर डिजाइनर कपड़े तक चाहिए।

अखबार ने लिखा है कि भारत की अर्थव्यवस्था के लिए ब्रिटेन की भूमिका खास हो सकती है, यह बात कैमरन को मोदी को बतानी होगी। लेकिन, ब्रिटेन को मानवाधिकारों के मुद्दों को भी उठाना चाहिए। खासकर गुजरात दंगे में मारे गए तीन ब्रिटिश नागरिकों के मामले की जांच के बारे में पूछना चाहिए। अखबार ने लिखा है लेकिन यह सभी बातें साफ दिल से पूछी जानी चाहिए। भारत अब लेक्चर नहीं सुनना चाहता। वह सम्मानपूर्ण व्यवहार चाहता है।

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