पाक की नापाक हरकतों से क्या भारत लेगा सबक!
पाक की नापाक हरकतों से क्या भारत लेगा सबक!
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सर्द मौसम की रात कुछ लोग अपने प्रतिष्ठानों के बाहर खड़े होकर बतिया रहे थे तो कुछ अपने घरों की ओर लौट रहे थे। इतने में ही रेलवे स्टेशन पर कुछ अनाउंस हुआ इस अनाउंस के साथ ही देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से कुछ लोग धड़धड़ाती आधुनिक बंदूकों के साथ दौड़ते हुए निकले। इस दौरान जो भी बंदूकों की रेंज में आया उसके खून से सीएसटी का परिसर लाल हो गया। 

लगभग ऐसी ही सिचुऐशन पंजाब के गुरदासपुर में जुलाई 2015 में सोमवार तड़के सामने आई। कार से निकलते हुए कुछलोग आधुनिक बंदूकों को धड़धड़ाते हुए यात्री बस की ओर पहुंचे। यात्री बस के बाद आतंकी क्षेत्र के पुलिस थाने में दाखिल हो गए और इसके बाद शुरू हो गया सुरक्षा बलों से मुठभेड़ का दौर। 

असल में भारत वर्षों से आतंकी गतिविधियों का सामना करता रहा है। हर बार दुश्मन देश को अपनी सीमा से खदेड़ने की बात होती है और हर बार दुश्मन भारत को ही आतंकी देश बता देता है। भारत हर बार कहता है कि उसकी धरती पर पाकिस्तान समर्थित आतंक अशांति फैला रहा है। मगर हर बार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसके सबूतों को अपर्याप्त बताकर नकार दिया जाता है। विश्व जगत से आतंक के खिलाफ मिलकर लड़ने की मांग करने वाला भारत आतंकवाद से बहुत पीडि़त है। भारत की सीमाओं पर हमेशा पड़ोसियों की नज़रें टिकी रहती हैं। हर बात पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक वार्ता की बात चलती है और सारे प्रयास सिमटकर रह जाते हैं। 

भारत की ओर से लगातार वार्ता कर आतंक को कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन हर बार पाकिस्तान अपनी चालों से भारत पर ही मिथ्या आरोप मढ़ देता है। इतिहास साक्षी है कि भारत और पाकिस्तान के बीच हुई हर वार्ता के बाद युद्ध के हालात बने हैं। इस बार भी रूस के दोहा में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच चर्चा तो शुरू हुई लेकिन पाकिस्तान ने कुछ ही दिन में मुंबई हमले में पर्याप्त सबूतों के न होने की बात कहकर इस वार्ता प्रक्रिया को बेनतीजा कर दिया। इसके बाद लगातार भारत की सीमा में पाकिस्तानी रेंजर्स गोलीबारी करते रहे। पाकिस्तान ने ईद पर दी जाने वाली सौहार्द की मिठाई तक ठुकरा दी और तो और अब पाकिस्तान के नापाक कदम आतंकियों के रूप में भारत के पंजाब में पड़ने लगे हैं। 

वह पाकिस्तान जो अमेरिकी हथियारों की खेप पर निर्भर रहा करता था अब चीन की मदद पर भारत को आंख दिखा रहा है। भारत से सटी पाकिस्तानी सीमा पर चीन के माध्मय से किया जाने वाला निर्माण कार्य और चीन पनडुब्बी समेत अन्य हथियारों की खरीदी से पाकिस्तान खुद को काफी सशक्त मान रहा है लेकिन जिस तरह से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस्लामिक आतंकवाद का विरोध हो रहा है उससे यही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आने वाले दिन पाकिस्तान के लिए मुश्किलों भरे हो सकते हैं। या तो पाकिस्तान को आईएसआईएस और तालिबानी आतंकियों को अंगीकार करना होगा या फिर इनका विरोध करते हुए विश्व बिरादरी का साथ देना होगा। हालांकि फिलहाल तो पाकिस्तान अपना दोहरा रवैया छोड़ना नहीं चाहता मगर जिस तरह से आईएसआईएस विश्व के लिए एक बड़ा खतरा बन रहा है और यह तालिबान के रास्ते भारतीय उपमहाद्वीप की ओर बढ़ रहा है उससे तो यही लगता है कि पाकिस्तान को आतंक का दामन छोड़ना होगा। 

यदि ऐसा नहीं होता है तो तालिबान अधिकृत पाकिस्तान की तरह पूरे पाकिस्तान पर आतंकियों का कब्जा होगा। हां मगर भारत में आतंक फैलाने के मसले पर पाकिस्तान का रवैया कुछ समझ से परे है। एक ओर तो पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ भारत को कार्रवाई का आश्वासन देता है वहीं पाकिस्तानी सीमा की ओर से लगातार घुसपैठ और गोलीबारी कर आतंक का समर्थन भी करता है। इन बातों से पाकिस्तान की मंशा ठीक नहीं लगती। हालांकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ स्वयं ही अंदरूनी तौर पर यह मानते हैं कि पाकिस्तान कश्मीर मसले पर भारत से कभी भी नहीं जीत सकता। राजनीतिक रूप से और सामरिक रूप से पाकिस्तान को इस मसले पर हार का सामना ही करना होगा मगर इसके बाद भाी आतंक को भारत की धरती की ओर धकेलने की बात समझ  से परे है। 

दरअसल कहा जाता है कि पाकिस्तान के राजनीतिक हालात वहां की सेना द्वारा नियंत्रित किए जाते हैं। उल्लेखनीय है कि नवाज शरीफ के पूर्व के कार्यकाल के दौरान पाकिस्तानी सेना ने तख्तापलट के प्रयास तेज कर दिए थे जिसके बाद परवेज मुशर्रफ को पाकिस्तान आर्मी की कमान सौंपनी पड़ी थी। कालांतर में पाकिस्तान आर्मी के प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने थे। ऐसे में भारत के साथ पाकिस्तान के सौहार्दपूर्ण रिश्तों की बात कैसे की जा सकती है।

हालांकि लंबे अर्से से आतंकी गतिविधियों पर केवल बयानबाजी करना और अपनी सरहद से आतंक को खदेड़ना अब बीते समय की बात होती जा रही है। अब तो जरूरत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन पाकर सीमा पार घुसकर आतंक को नेस्तनाबूद करने की है। हालांकि राजनीतिक रूप से यह कुछ मुश्किल है लेकिन जिस तरह से आतंक अपने पैर पसार रहा है उसे रोकने के लिए इसके अलावा दूसरा कोई विकल्प नज़र नहीं आता। 

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