'भारत सिर्फ बाबर-औरंगज़ेब-हुमायूँ की कहानी नहीं..', इतिहासकारों से ऐसा क्यों बोले सीएम सरमा ?
'भारत सिर्फ बाबर-औरंगज़ेब-हुमायूँ की कहानी नहीं..', इतिहासकारों से ऐसा क्यों बोले सीएम सरमा ?
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गुवाहाटी: असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने आज शुक्रवार (25 नवंबर) को वीर लचित बरफुकन की 400वीं जयंती पर उनकी वीरता का जिक्र किया। इस दौरान सीएम सरमा ने इतिहासकारों को याद दिलाया कि 'भारत केवल औरंगजेब, बाबर, जहांगीर या हुमायूं की कहानी नहीं है।' सरमा ने आगे कहा कि यह लचित बरफुकन की बहादुरी ही थी, जिसके चलते असम मुगल सम्राट औरंगजेब का विरोध करने में कामयाब रहा।

रिपोर्ट के मुताबिक, सीएम सरमा ने आगे कहा कि, 'इतिहासकारों से मेरा विनम्र निवेदन है, भारत सिर्फ औरंगजेब, बाबर, जहांगीर या हुमायूं की कहानी नहीं है। भारत लचित बरफुकन, छत्रपति शिवाजी, गुरु गोबिंद सिंह, दुर्गादास राठौर जैसे वीरों का है। हमें नई रोशनी में देखने का प्रयास करना चाहिए। यह विश्व गुरु बनने के हमारे सपने को पूरा करेगा।' सीएम सरमा ने कहा है कि पीएम मोदी हमेशा हमें हमारे इतिहास, गुमनाम नायकों को प्रकाश में लाने के लिए प्रेरित करते हैं। उन्होंने कहा है कि, 'लचित बरफुकन की गौरवपूर्ण गाथा को देश के समक्ष लाने का यह हमारा विनम्र प्रयत्न है। हालांकि, सिर्फ सरकार की ही कोशिशें पर्याप्त नहीं हैं। लोगों और इतिहासकारों की तरफ से भी इस हेतु प्रयास होने चाहिए।'

कौन थे लचित बरफुकन ?

बता दें कि, लचित बरफुकन असम के पूर्ववर्ती अहोम साम्राज्य के वीर सेनापति थे। सरायघाट के 1671 के जंग में उन्ही के नेतृत्व में अहोम सेना ने मुग़लों को धूल चटा दी थी। इस युद्ध में लचित ने कम सैनिक होते हुए भी औरंगजेब की अगुवाई वाली मुगल सेना को परास्त कर दिया गया था। इस जीत की याद में असम में 24 नवंबर को लचित दिवस मनाया जाता है। सरायघाट की लड़ाई गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी के तटों पर लड़ी गई थी। लचित बरफुकन ने 1671 में लड़ी गई सरायघाट की जंग में असमिया सैनिकों को प्रेरित किया, जिसकी वजह से मुगलों को शर्मनाक और अपमानजनक शिकस्त का सामना करना पड़ा। लचित बरफुकन और उनकी सेना की तरफ से लड़ी गई यह जंग इतिहास में प्रतिरोध की सबसे प्रेरणादायक सैन्य उपलब्धियों में से एक है।

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