भारत माँ का सपूत जिसने विदेशी सरज़मीं से अंग्रेजी हुकूमत को ललकारा
भारत माँ का सपूत जिसने विदेशी सरज़मीं से अंग्रेजी हुकूमत को ललकारा
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हवाओ मे लहराते इस तिरंगे मे संघर्ष के बाद त्याग छिपा है। इस तिरंगे मे लंबी गुलामी के बाद हिंदुस्तान की आज़ादी का ऐलान छिपा है। वो तारीख थी 15 अगस्त और साल था 1947 जब दिल्ली मे लहराते तिरंगे को देखकर पूरा हिंदुस्तान खुशी से झूम उठा था।

एक हफ्ते तक इस आज़ादी का एहसास करने के लिए पूरा हिंदुस्तान सड्को पर उमड़ आया था। लेकिन हिंदुस्तान को हासिल हुई इस आज़ादी के पीछे कई मतवाले क्रांतिकारियों का का बलिदान छुपा हुआ था। ऐसे ही अमर सेनानियो ने आज़ादी से पहले हिंदुस्तान को आज़ादी दिलाई थी। दिल्ली मे आज़ादी से पहले समुंदर के बीच अँग्रेजी सत्ता को उखाड़ भारत माता के वीर सपूतो ने देश का झण्डा ऊंचा किया था। आज़ादी की यह महागाथा लिखी गई थी दिल्ली से सैकड़ों किलोमीटर दूर उस अंडमाण्ड निकोबार मे। और अँग्रेजी हुकूमत को करारी चोट दी थी अमर सेनानी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने।

यह गाथा उस दौर की है जब अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार से लड़ने और आज़ाद हवा मे साँस लेने की हर देशवासी की हसरत थी। देश मे आज़ादी के अंश जगाने के लिए देश के मतवाले घरो से निकलने लगे। एक ऐसा आंदोलन जिसमे गांधी जी के नेतृत्व से देश भर मे अँग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन तेज़ी से होने लगा। तो भारत माँ का एक सपूत अंग्रेजी हुकूमत को विदेशी सरज़मीं से ललकार रहा था। इस आंदोलन के आगे चल रहे थे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, और उनके पीछे चल रही थी आज़ाद हिन्द फौज की सेना।

हालात बदल गए, दुनिया के समीकरण बदल गए और जापान जैसा शक्तिशाली देश नेताजी के साथ जा खड़ा हुआ। अंग्रेज़ो को नेताजी और जापान से पहली चोट मिली रंगून मे। नेता जी का सपना था जापान के साथ आगे बढ़ते हुए अंग्रेजी हुकूमत को सीधी टक्कर देना। साल 1942 जापान और आज़ाद हिन्द फौज ने अंडमान निकोबार पर हमला कर दिया और इस संघर्ष मे अँग्रेजी टुकड़ी ने आज़ाद हिन्द फौज के सामने आत्मसमर्पण करने मे जरा भी शर्म महसूस नही की। अंडमाण्ड से अँग्रेजी हुकूमत उखड़ चुकी थी और अंडमाण्ड की कमान नेता जी के हाथ मे थी।

आज भी तस्वीरों मे उन दिनो की यादें जिंदा है जब नेताजी ने हिंदुस्तान की सरज़मीं पर देश का पहला झण्डा लहराया और आजादी की पहली हुंकार भरी थी। आजादी अभी बहुत दूर थी लेकिन अंडमाण्ड मे झण्डा लहराना उस ख्वाब का पहला हिस्सा था, जिसे नेताजी ने देखा था। नेताजी चाहते थे की आजाद हिन्द् फौज की ताकत बढ़ाए और एक बार फिर हिंदुस्तान की तरफ बढ़े। लेकिन इसी बीच हुआ वो हादसा जिसने सबकुछ बदल कर रख दिया।

16 अगस्त 1945 जापान के एक विमान मे नेताजी ने उड़ान भरी। नेताजी का मकसद था सोवियत नेताओ से मिलना और भारत की आज़ादी के लिए उनसे मदद माँगना। लेकिन दावा किया जाता है की उड़ान भरने के कुछ ही देर मे विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और इस दुर्घटना मे नेताजी का देहांत हो गया। नेताजी के देहांत के बाद आज़ाद हिन्द फौज कमजोर पड़ गई। हालांकि कुछ लोग आज भी मानते है की विमान दुर्घटना मे नेताजी की मौत नही हुई थी, उस दुर्घटना के बाद भी नेताजी जिंदा थे।

कुछ लोग नेताजी की मौत को साजिशों का अंजाम भी मानते है। इन दावो की सच्चाई जानने के लिए कई कमेटियाँ तक बनाई लेकिन कोई भी कमेटी इन दावो से जुड़े सबूत नही ढूंढ पाई। नेताजी ने जो ख्वाब देखा था वह उनकी आंखो के सामने पूरा नही हो सका। लेकिन अंडमाण्ड मे जो झण्डा नेताजी ने 1942 मे लहराया था वह तिरंगा बन कर 5 साल बाद लहराया। नेताजी का अधूरा ख्वाब 1947 मे पूरा हुआ। अँग्रेजी हुकूमत का सूर्यास्त हुआ और हिंदुस्तान की आजादी का नया सूरज मुस्कुरा उठा।

अगर इतिहास 1947 याद है तो साथियो याद रखिएगा 1942 की उस तारीख को जब नेताजी ने आजादी की पहली दीवार खड़ी की थी। आज भी अंडमाण्ड मे नेताजी की यादे जिंदा है। नेताजी की म्रत्यु कब हुई ? क्या प्लेन दुर्घटना के बाद भी नेताजी जिंदा थे ? क्या सुभाष चन्द्र बोस के खिलाफ साजिश रची गई थी ? ये ऐसे सवाल है जिनके जवाब आज तक नही मिले। लेकिन इन सवालो से कंही बड़ा है ये आज़ाद हिंदुस्तान जिस सपने का कभी नेताजी ने देखा था। "संदीप मीणा"

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