प्रजातंत्र की भूख निगल रही है स्वतंत्रता का स्वप्न
प्रजातंत्र की भूख निगल रही है स्वतंत्रता का स्वप्न
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स्वतन्त्रता दिवस के मौके पर सम्पूर्ण देशवासियों को शुभकामनाए। बात है सन 1857 की जब प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम यज्ञ का आरंभ किया गया। दयानन्द सरस्वती और मंगल पांडे ने इस यज्ञ को प्रथम आहुति दी । देखते ही देखते इस यज्ञ की ज्वाला चरो और फेल गई। झाँसी की रानी, नाना राव, तात्या टोपे जैसे महान योद्धाओ ने स्वतन्त्रता के इस यज्ञ को अपने रक्त से सींच कर आहुति दी। दूसरी और सरफरोसी की तमन्ना लिए रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक़, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव जैसे कई क्रांतिकारी देश के लिए शहीद हो गए। स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार का उद्घोष तिलक ने किया। सुभाष चन्द्र बोस ने तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का मंत्र दिया। वही अहिंसा और असहयोग का आस्त्र लेकर महात्मा गांधी और लोह पुरुष सरदार पटेल ने गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए अपने प्रयास तेज़ कर दिए।

90 सालो की लंबी संघर्ष यात्रा के बाद भारत मे 15 अगस्त 1947 को स्वतन्त्रता का सुर्यौदय हुआ। 15 अगस्त को हमे स्वतः आजादी नही मिली। एक लंबी संघर्ष यात्रा मे हजारो, लाखो लोगो ने मातृभूमि को अपने लहू से सींचा। लेकिन आज भी मन मे एक सवाल उठता है की क्या आज भी हम स्वतंत्र है ? स्वतन्त्रता के इस दौर मे ऐसे लोगो की संख्या बढ़ गई है जो धर्म समाज के नामे पर देश मे नफरत फैलाते। किसी एक की घटना को पूरे समुदाय पर थोप दिया जाता है। हिंदुस्तान के लोगो को तय करना होगा की नफरत फैलाना है या मिटाना। गुलामी की जंजीरों से जकड़े भारत ने 90 साल की लड़ाई भरे संघर्ष के बाद स्वतन्त्रता के सपने को पूरा किया।

आज भारत राजनीतिक वजूद प्राप्त कर चुका है लेकिन आजादी के इस युग मे भी राजनीतिकार धर्म ओर मज़हब के नाम पर मातृभूमि मे नफरत का बीज बो रहे है। किन्तु 27 जुलाई 2015 को भारत ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के रूप मे एक अनमोल रत्न खो दिया। उस दिन अनुभव हो गया की धर्म ओर मज़हब की अंधी के बीच कर्मो का वजूद हमेशा कायम रहता है। डॉ. कलाम ने यह साबित कर दिया की मैं उस देश का वासी हु जहा धर्म नही मज़हब पुजा जाता है। डॉ. कलाम रूपी रत्न की चमक मे हमे उस मंजिल तक पाहुचना है जिसका सपना कलाम ने देखा था। डॉ. कलाम का सपना था की हिंदुस्तान नालेज सुपरपावर (ज्ञान शक्तिपुंज) के रूप मे दुनिया की पहली कतार मे शामिल हो। हमे उस मंजिल की और बढ़ना होगा। यही कारण है की आज डॉ. कलाम को जनता से अथाह प्यार मिला। देश के इन अपवादों का साथ देने में चौथा स्तम्भ भी कोई कसार नही छोड़ रहा है।

जब कलम रुपी रत्न दुनिया से अलविदा कह चुके तो प्रजातंत्र का यह चौथा स्तम्भ टीआरपी के चक्कर में 657 लोगो के खूनी आतंकी याकूब मेमन को सुर्ख़ियो में लाकर सुपरस्टार बनाने में लग गया। क्या दुनिया को इस तरह के चौथे स्तम्भ की आवश्यकता है जो टीआरपी की भूख में महान लोगो का समर्पण ही भूल जाए। ज़रूरत है उस बदलाव की जिसका स्वप्न महान व्यक्तियों ने खुली आँखों से देखा था ।

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