बेहद अनूठी है रक्षाबंधन की ये परम्पराएं, कहीं उम्रभर की दोस्ती तो कहीं साढ़े 3 माह चलता है त्यौहार
बेहद अनूठी है रक्षाबंधन की ये परम्पराएं, कहीं उम्रभर की दोस्ती तो कहीं साढ़े 3 माह चलता है त्यौहार
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हमारा देश भारत विविधताओं से परिपूर्ण है। भारत में हर क्षेत्र में, हर सम्प्रदाय में अलग-अलग रीति-रिवाज और परम्पराएं प्रचलित है। ऐसी ही कुछ विविध परंपरा हमारे देश में रक्षाबंधन के पवित्र त्यौहार से भी जुड़ी हुई है। आइए जानते है इनके बारे में।

- एमपी का सैलाना आदिवासी क्षेत्र है। राखी का त्यौहर यहां काफी हर्ष के साथ संपन्न होता है। यहां पर यह त्यौहार एक नहीं बल्कि पूरे साढ़े तीन माह का होता है। रक्षाबंधन के दिन से लेकर यहां पर यह त्यौहार कार्तिक सुदी चौदस तक जारी रहता है। यदि किसी कारणवश बहनें अपने भाइयों को रक्षा सूत्र नहीं बांध पाती है, तो वे आगामी साढ़े तीन माह में कभी भी रक्षा सूत्र बांध सकती है। इसके लिए वे स्वतंत्र रहती है। 

- राखी से जुड़ी एक अनूठी परम्परा छत्तीसगढ़ में भी बेहद प्रचलित है। राखी से संबंधित भोजली पर्व यहां हर किसी को काफी पसंद आता है। श्रावण माह की नवमी तिथि के दिन टोकरियों में मिट्टी डालकर गेंहू, जौ, मूंग, उड़द आदि के बीज बोते हैं और महज सप्ताहभर में ही भोजली बड़ी हो जाती है और सावन की पूर्णिमा यानी कि रक्षाबंधन के त्यौहार तक इसमें 5 से 6 इंच तक के पौधे आ जाते हैं। राखी के अगले दिन छोटी-छोटी बच्चियां भोजली को लेकर पूरे गांव में भ्रमण करती है और फिर अंत में इसकी आरती उतारकर इसे नदी में प्रवाहित किया जाता है।  

इस दिन आजीवन ख़ास मित्र बच्चियां बनाती है। इस दिन छोटी बच्चियां अपनी सहेलियों के कानों में भोजली की बाली लगाती है और फिर वे उन्हें उम्र भर के लिए दोस्त बना लेती है। वे अपनी दोस्त को फिर आजीवन ‘गींया’ ही कहती है। कभी भी सहेलियों को नाम से नहीं पुकारा जाता है। 

 

 

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