नोट-बदली के इस दौर में अफवाहों एवं कुप्रचार का जोर
नोट-बदली के इस दौर में अफवाहों एवं कुप्रचार का जोर
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सरकार ने बड़े नोटों को बदल देने का जो ऐतिहासिक काम किया है, उससे फ़िलहाल पूरा देश उम्मीदों के साथ ही आशंकाओं व उहापोह के दौर से भी गुजर रहा है. मीडिया में इसे नोट-बंदी के गलत नाम से पुकारा जा रहा है; पर यहाँ इसे "नोट-बदली" (के बेहतर नाम से) ही लिखा गया है. कुल करेंसी के 86% को पुरे देश में बदलने की बड़ी कवायद के कारण यह एक 'संक्रमण काल' की तरह का दौर है. ऐसे में विघ्न-संतोषियों व विपक्षी दलों को अफवाहे फ़ैलाने व सरकार के विरुद्ध कुप्रचार करने का बहुत अनुकूल माहौल मिल गया है. इसलिए पिछले 42 दिनों से तरह-तरह की अफवाहे फैलाई जाती रही हैं और आम भोले-भाले लोगों को भ्रमित करके इस कदम को ही नहीं सरकार के हर कदम को बदनाम करने की कई तरह की कोशिश हो रही है. सोशल मीडिया का तो इस काम लें जमकर दुरुपयोग हो रहा है.

ऐसे अनेक उदहारण यहाँ दिए जा सकते है. एक न्यूज़ चैनल के कार्यक्रम 'वायरल झूठ' पर तो रोज ही एक नयी ऐसी बात का खंडन किया जा रहा है. 'दो हजार के नोट में इलेक्ट्रॉनिक चिप है', '100 रुपये का नोट भी बंद हो जायेगा' और 'सरकार आपके पैसे से बड़े कर्जदारों के कर्जे माफ़ कर रही है' ऐसे ही झूठ के तीन उदहारण हैं. इन उदाहरणों के बाद यहाँ हम एक ऐसे उदाहरण का उल्लेख कर रहे हैं; जिसे अभी तक तो मीडिया में खास जगह नहीं मिली हैं; पर जो बहुत खतरनाक असर वाला कुप्रचार बन सकता हैं.

सरकार हमारी अर्थ-व्यवस्था में अधिक पारदर्शिता लाने के लिए नकदी के बजाय डिजिटल विनिमय के तरीकों को अधिक बढ़ावा देना चाहती हैं. इस बात को 'लेस-केश की व्यवस्था' कहा जाना चाहिये; किन्तु इसे लापरवाही से 'केशलेस इकॉनमी' कहा जाने लगा हैं. यह गलत नाम दिए जाने के साथ ही आम लोगों में यहाँ तक भ्रम फैलाया जा रहा हैं कि अब छोटे नोट जैसे 1, 2, 5, 10, 20, 50 एवं 100 के नोट भी लोगों के पास नहीं रहेंगे या कम रहेंगे; इसलिए हर छोटा-मोटा लेनदेन भी कार्ड या PayTM जैसे ई-वैलेट से ही करना पड़ेंगे. कुप्रचार यह हो रहा हैं कि सरकार ई-वैलेट कम्पनियो को फायदा पहुँचाने के लिये लोगों को डिजिटल पेमेंट के लिये मजबूर करना चाहती हैं. 'डिजिटल पेमेंट' तो असल में बहुत विस्तृत अवधारणा हैं; कुप्रचार करने वाले उसमें से भी इ-वैलेट को और उनमें से भी PayTM कंपनी को ही सबसे ज्यादा निशाना बना रहे हैं.

असल में सरकार या रिजर्व बैंक द्वारा ऐसा कोई भी संकेत नहीं हैं कि छोटे नोटों का प्रचलन भी कम किया जायेगा; हाँ वित्तमंत्री ने बड़े नोटों यानि 500 व 2000 के नोटों के कम छापे जाने की सम्भावना जरूर जताई हैं. जो कि उचित ही हैं जब बड़े नोट प्रचलन में कम होंगे तो बड़े भुगतानों में डिजिटल तरीकों के अधिक उपयोग की संभावना बढ़ेगी. या इसी बात को उलटकर भी कह सकते हैं कि जब अधिक डिजिटल भुगतान होने लगेंगे तो बड़े नोटों की आवश्यकता ही कम पड़ेगी. इस स्थिति में संभव है कि छोटे नोटों को प्रचलन में बढ़ा दिया जाये, उन्हें कम करने की बात कहीं नहीं हैं. इसलिए जो लोग यह कह रहे है कि सब्जी, साबुन, आदि छोटे सौदे लेने में या चाय-नाश्ता करने में भी आपको PayTM ही करना पड़ेगा, वे सरासर अफवाह फैला रहे हैं. सरकार डिजिटल लेनदेन को इनाम आदि के द्वारा प्रोत्साहित कर रही हैं; इसका मतलब ही यही हैं कि वह समझाईश, विज्ञापन व इनाम आदि के द्वारा जनता को स्व-विवेक से या राजी-मर्जी से लेस केश की ओर प्रेरित कर रही हैं. आप फिर भी नकद में ही काम करना चाहे तो अपनी वैधानिक/ सफ़ेद नकदी से कितना भी छोटा या कितना भी बड़ा लेनदेन कर सकते हैं. इसमें जबरदस्ती या मजबूर करने वाली बात कहीं से कही तक नहीं हैं.

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह हैं कि डिजिटल विनिमय तो बहुत से तरीकों से हो सकता हैं; आपको जो भी सुविधाजनक लगे या जिसे आप चाहे, स्वतंत्रता से सोच-समझ कर चुन सकते हैं. इसका सबसे आसान व सर्वाधिक प्रयोग में आने वाला तरीका है, अपने बैंको के कार्ड्स का (डेबिट, क्रेडिट, केश, ट्रेवल कार्ड, आदि का स्वाइप मशीन पर) प्रयोग. अन्य 10 तरीको के संक्षिप्त नाम है: आधार इनेबल्ड पेमेंट सिस्टम (AEPS), USSD, UPI, प्रीपेड कार्ड्स, पॉइंट ऑफ़ सेल मशीन, इन्टरनेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, माइक्रो एटीएम, बैंकिंग ऍप्स और ई-वेलेट्स. अब इनमें से ई-वैलेट्स का जो तरीका है उसमें से सबसे ज्यादा व्यक्ति अपने ही बैंक के ई-वैलेट प्रयोग करेंगे, यही सम्भावना है. बैंको के अलावा ई-वैलेट चलाने वाली अन्य 6 निजी कंपनियों में से मात्र एक कंपनी है - PayTM. भविष्य में और भी कंपनियां इनके कम्पटीशन में उतर सकती है. लेकिन अभी सबसे अधिक जोऱ-शोर से प्रचार करने के कारण इसी कंपनी को, सरकार विरोधी कुप्रचार करने वाले डिजिटल पेमेंट की सर्वेसर्वा बता रहे है और कह रहे हैं कि सरकार इस कंपनी को लाभ देने के लिए लेस-केश या डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा दे रही है. लेकिन असल में ऐसा बिलकुल भी नहीं है. न तो सरकार की इनामी योजनाओं में न किसी भी प्रचार सामग्री में इस कंपनी का नाम है. यदि कहीं नाम आया भी होगा तो मात्र एक उदहारण के रूप में. इसलिए यह कहना कि मोदी-टीम इस कंपनी का प्रचार कर रही है; बिलकुल बेबुनियाद बात है. हाँ, यदि इस कंपनी ने मोदीजी के फोटो एवं 'लेस-केश के समर्थन वाले भाषणों' का उपयोग अपने प्रचार में किया है; तो इसके लिए सरकार को दोष देना तो अनुचित है.

कुछ लोग तो इसी कुप्रचार के सिलसिले को आगे बढाकर यहाँ तक ले गए है कि इस कंपनी को चीन की अलीबाबा कंपनी के मालिक जैक मा ने अपने कंट्रोल में ले लिया है; या यह एक चीनी कंपनी है. जबकि असल में इस कंपनी में अलीबाबा के केवल 25% शेयर है, और अन्य 75% शेयर भारतीयों के है. इसका मुख्यालय नॉएडा में है और इसके संचालक या CEO विजयशेखर शर्मा हैं. इसे चीनी कंपनी बताने के झूठ के बाद ये कुप्रचार करने वाले आगे कहानी गढ़ते है कि यह कंपनी भारत के व्यापारियों की अति प्राचीन व अति विशाल सप्लाय चैन को तोड़ देगी , और फिर अपनी लॉजिस्टिक चैन स्थापित कर लेगी, और फिर चीनी सामान से भारतीय बाजारों को पाट देंगे, और इस तरह भारत को गुलाम बना लेंगे. आपने शेखचिल्ली की कहानी सुनी होगी. शेखचिल्ली सकारात्मक या खुशनुमा सपनों में खोये रहने के लिए मजाक का एक पात्र था. अब ऐसे जो शेखचिल्ली है वे नकारात्मक या डरावने सपने बुनने वाले अलग किस्म के शेखचिल्ली हैं. इनकी शंका-कुशंकाओं में कोई आधार नहीं है, उसके एक चरण से दूसरे चरण में कोई आपसी रेशनल सम्बन्ध नहीं है इसलिए यह सोच संतुलित व व्यावहारिक नहीं है. पर ऐसे लोग भी ज्ञानियों जैसी भाषा का प्रयोग करके आम लोगों को डराने व भड़काने में सफल हो सकते हैं. जबकि हमारा देश प्रजातान्त्रिक मूल्यों के साथ संघर्ष करते हुए, ईमानदारी के महत्व वाली व्यवस्था की ओर बढ़ रहा है, ऐसे लोग हमारी इस यात्रा को पटरी से उतार भी सकते हैं. इसलिए ऐसे अफवाह-बाजो और नकारात्मक शेखचिल्लियों से सावधान रहना जरुरी है .  

* हरिप्रकाश 'विसंत'

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