पुरुष अस्पताल में ऑपरेशन करके निकाल दिए महिलाओ के गर्भाशय
पुरुष अस्पताल में ऑपरेशन करके निकाल दिए महिलाओ के गर्भाशय
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बरेली : ऑपरेशन करके महिलाओं के गर्भाशय निकालना कोई नई बात नहीं है लेकिन बरेली के जिला अस्पताल में एक साल में ऐसे ऑपरेशनों की संख्या अचानक दोगुनी से ज्यादा होने पर यह असामान्य बात लगी। जिस तरह से महिलाओ की संख्या बढ़ रही है उससे कही न कही कोई अंदेशा होने की आशंका बढ़ जाती है अब तक हुई पड़ताल में जो सबसे चौंकाने वाली बात है वो ये कि ऑपरेशन कराने वाली महिलाओं में से 25 ऐसी हैं जिनकी उम्र 30 साल से कम है। इनमें कई मामले लखीमपुर खीरी जिले के हैं। खीरी में भी ऐसे ऑपरेशन होते हैं और आमतौर पर वहां के लोगों के लिए लखनऊ ज्यादा करीब है, फिर ये मामले बरेली क्यों पहुंचे, यह सवाल भी उठा। इसका जवाब यह मिला कि ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर साहब पहले से ही ऑपरेशन करने के लिए खीरी में तैनात रहे हैं। वर्ष 2014-15 में बरेली जिला अस्पताल में कुल 654 ऑपरेशन हुए।

सामान्य तौर पर कम उम्र में गर्भाशय निकालने के मामले इक्का-दुक्का ही होते हैं। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर आमतौर उम्र पक्की होने के बाद ही ऐसे ऑपरेशन करने की सलाह देती हैं। इस तरह के आपरेशन के लिए लखीमपुर खीरी से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर आकर उन्होंने यहां ऑपरेशन कराया। वह भी खीरी से स्थानांतरित होकर आए एक डॉक्टर के हाथों। संदेह जताया जा रहा है कि कहीं किसी खास वजह से तो इन कम उम्र महिलाओं के गर्भाशय नहीं निकाले गए। यह तो साफ है कि गर्भाशय ट्रांसप्लांट नहीं होते तो फिर युवतियों को इस तरह क्यों ऑपरेट किया गया कि वह भविष्य में मां न बन सकें। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी भी मान रहे हैं कि महिलाओं के ऑपरेशन से पहले महिला डॉक्टर की संस्तुति नहीं ली गई।

हालांकि अब मामला सामने आने के बाद संस्तुति जरूरी कर दी गई है। बरेली मंडल के अपर निदेशक (स्वास्थ्य) ने जिला अस्पताल से पूरे साल में हुए ऐसे आपरेशन का ब्योरा तलब किया था, तो पुरुष जिला अस्पताल में ऐसे ऑपरेशन की संख्या 654 बताई गई। जबकि रूटीन में यह संख्या पहले सालाना करीब ढाई से 325 के बीच ही रहती थी। रिपोर्ट मिलने के बाद एडी हेल्थ को इस बात पर आपत्ति की 654 केस में से एक में भी जिला महिला अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ से की राय क्यों नहीं ली गई। अपर निदेशक (स्वास्थ्य) डॉ. सुबोध शर्मा ने मंगलवार को कहा कि अंधाधुंध ऐसे ऑपरेशन पर लगाम लगाने के लिए नई व्यवस्था लागू की है।

आदेश दिया है कि अब से महिला अस्पताल के विशेषज्ञ चिकित्सकों की राय या संस्तुति के बाद ही जिला पुरुष अस्पताल में महिलाओं के गर्भाशय के आपरेशन किए जाएं। साथ ही ऐसे ऑपरेशन के वक्त स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ भी उपस्थित रहेंगी। जिला महिला अस्पताल में गर्भाशय निकालने के आपरेशन की संख्या छह महीने में दो-तीन ही रहती है। अस्पताल से जुड़े सूत्रों ने बताया कि महिला अस्पताल में कई केस गर्भाशय निकालने के लिए आए थे लेकिन दूसरे कारणों से उन्हें मना कर दिया गया।

उन्हीं महिलाओं का पुरुष अस्पताल में आसानी से ऑपरेशन हो गया। सर्जरी से जुड़े चिकित्सकों ने अपने आपरेशन की संख्या बढ़ाने के लिए ये आपरेशन किए। जिला महिला अस्पताल की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. शशि का कहना है कि अगर 25 से 30 साल की महिला ज्यादा गंभीर होती है, तभी उसका गर्भाशय निकाला जाता है। कैंसर के मामले में ऐसा होता है। डॉ. शशि बताती हैं कि गर्भाशय निकालने के बाद कम उम्र की महिलाओं में कई हारमोनल बदलाव आते हैं। अगर गर्भाशय के साथ अंडकोष न निकाला जाए तो हारमोंस में बदलाव ज्यादा नहीं होते। कुछ महिलाओं की डिप्रेशन की शिकायत होती है। गर्भाशय महिलाओं का एक जरूरी भाग है, उसके निकलने पर कम उम्र की महिलाओं को दिक्कत ज्यादा होती है।

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