राज्यसभा में पहले संबोधन में ही न्यायपालिका पर भड़के उपराष्ट्रपति, उठाया NJAC का मुद्दा
राज्यसभा में पहले संबोधन में ही न्यायपालिका पर भड़के उपराष्ट्रपति, उठाया NJAC का मुद्दा
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नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के राज्यसभा में पहले संबोधन के बाद न्यायमूर्तियों की नियुक्ति को लेकर सरकार बनाम सर्वोच्च न्यायालय का झगड़ा फिर एक बार सुर्खियों में आ गया है। राज्यसभा में बतौर सभापति अपने पहले संबोधन में उपराष्ट्रपति धनखड़ ने राष्ट्रीय न्यायिक आयोग कानून (NJAC) का उल्लेख किया। संसद के दोनों सदनों द्वारा सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया था। इससे पहले शीर्ष अदालत ने बिल को वर्ष 2015 में खारिज कर दिया था। 

धनखड़ ने इसे संसदीय संप्रभुता का गंभीर समझौता और लोगों के जनादेश की अवहेलना करार दिया है। उन्होंने कहा कि, 'यह चिंताजनक है कि 'लोकतांत्रिक ताने-बाने के लिए इतना महत्वपूर्ण, इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर, अब सात वर्षों से ज्यादा समय से संसद में कोई ध्यान नहीं दिया गया है। यह सदन, लोकसभा के साथ मिलकर, लोगों के अध्यादेश के संरक्षक होने के नाते, इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए बाध्य हैं, और मुझे विश्वास है कि यह ऐसा करेगा।'

 2015 में पारित NJAC बिल ने सरकार को न्यायिक नियुक्तियों में एक भूमिका दी, जो दो दशकों तक कॉलेजियम प्रणाली के जरिए शीर्ष अदालत का अधिकार क्षेत्र था। कानून को कोर्ट में चुनौती दी गई थी। याचिकाओं के साथ यह दलील दिया गया था कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौता करेगा। इसके बाद, एक संवैधानिक पीठ ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा लगाए गए 1975-77 के आपातकाल की तरफ इशारा करते हुए कानून को निरस्त कर दिया।

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