भवन निर्माण के समय इन बातों का ध्यान अतिआवश्यक है
भवन निर्माण के समय इन बातों का ध्यान अतिआवश्यक है
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मानव सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, अत: सुख शांतिपूर्वक रहने के लिए आवास में वास्तु की जरूरत होती है। नए घर के निर्माण के लिए भूमि चयन, भूमि परीक्षा, भूखंडों का आकार-प्रकार, भवन निर्माण विधि एवं पंच तत्वों पर आधारित कमरों का निर्माण इत्यादि बातों के बारे में जानकारी आवश्यक है। 
 
जन्म कुंडली में चौथे भाव पर शुभ ग्रहों के अभाव व भावेश के बलाबल के आधार पर मकान सुख के बारे में जानकारी प्राप्त होती है तथा चौथे भाव भावेश अथवा इन पर दृष्टि डालने वाले ग्रहों अथवा चौथे भाव भावेश का स्वामी जिस नक्षत्र पर हो, उस नक्षत्र स्वामी की दशा-अंतर्दशा से मकान का सुख प्राप्त होता है। मकान का सुख व शांतिपूर्वक रहने के लिए निम्र बातों की जानकारी आवश्यक है। 

मंत्र
ओम नो वैश्वानर वास्तु रुपाय भूपति एवं मे देहि काल स्वाहा।

 
भूखंड का आकार आयताकार, वर्गाकार, चतुष्कोण अथवा गोलाकार शुभ होता है। भूमि परीक्षण के क्रम में भूखंड के मध्य में भूस्वामी अपने एक हाथ से लंबा-चौड़ा व गहरा गड्डा खोदकर उसे उसी मिट्टी से भरने पर मिट्टी कम हो जाने से अशुभ लेकिन सम या मिट्टी शेष रहने में उत्तम जानें। दोष-निवारण के लिए उस गड्ढे में अन्य जगह से शुद्ध मिटी लाकर भर दें। खुदाई करने पर चूडिय़ां, ऐनक, सर्प, बिच्छू, अंडा, पुराना कोई वस्त्र या रूई निकले तो अशुभ जानें। निवारण के लिए उपरोक्त मंत्र को कागज में लिख कर सात बार पढ़कर पूर्व दिशा में जमीन में गाड़ दें।
 
अन्य विशेष बातें

जगह की ढलान उत्तर अथवा पूर्व दिशा में हो तथा मकान के चारों ओर घेराव की दीवार में पश्चिम दक्षिण दिशा की दीवार मोटी व ऊंची होनी चाहिए।
 
मोरी अथवा नाली के पानी की निकासी उत्तर या पूर्व दिशा में हो।
 
मुख्य दरवाजा उत्तर अथवा पूर्व दिशा में पूरी लंबाई के नौ भाग करके 7वें भाग में अथवा दाईं ओर से 5वां भाग व बाईं ओर से 3 भाग छोड़कर शेष चौथे भाग में हो।
 
कुआं, बोरिंग, हैंडपम्प, पानी का रख-रखाव, पूजा, मनोरंजन स्थल, जन स्थल, कोषागार, स्वागत कक्ष उत्तर/पूर्व ईशान्य में हो।
 
रसोई घर, रेडियो, टी.वी., हीटर, जैनरेटर, विद्युत के मुख्य उपकरण, स्विच बोर्ड, फ्रिज, आग्रेय दक्षिण पूर्व कोण में हों।
 
शयन कक्ष, शौचालय, शस्त्रागार, भारी, वजनी सामान, अलमारी, फर्नीचर, सोफा सैट दक्षिण पश्चिम दिशा में हों।
 
भोजनकक्ष, अध्ययन कक्ष, पश्चिम में हों।
 
धनागार, पशुस्थल, नौकरों का निवास स्थान, साइकिल, कार वाहन का स्थान, वायव्य अर्थात उत्तर, पश्चिम कोण में हो।
 
भंडार गृह उत्तर दिशा में हो।
 
छत पर टैंकों दक्षिण-पश्चिम दिशा (नैऋत्य कोण) में हो लेकिन सैप्टिक टैंक, भूमिगत नाली अथवा गड्ढा न हो।
 
सीढ़ी दक्षिण दिशा में हो तथा चढ़ाव के समय मुख उत्तर या दक्षिण दिशा में हो।
घर के उत्तर/पूर्व में बड़े पेड़ न होकर दक्षिण/पश्चिम में हों।
 
गृह का विस्तार चारों ओर से करें।
 
मुख्य द्वार से बाहर निकलते समय दाहिनी ओर घड़ी के कांटे की दिशा में खुलना चाहिए। 
 
कमरों के बीच का भाग खुला हो।
 
घर में तिजोरी, द्रव्य संग्रह पूर्व अथवा उत्तरमुखी होना चाहिए और व्यापारिक संस्थानों में कैश काऊंडर का उत्तर की ओर मुंह हो।
 
हाल में टैलीफोन उत्तर दिशा में रखें।
 
पूजा स्थान में महाभारत के रथ, फोटो, प्राणी पक्षी के चित्र अथवा वास्तु पुरुष की प्रतिमा न रखें। 
 
मकान में दोष
आपके जन्म कुंडली के लग्रेश व चतुर्थेश बलवान होकर शुभभाव में हों तथा लग्र, लग्रेश चतुर्थेय पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तथा पाप व निर्बल ग्रहों की युति दृष्टि अथवा कोई प्रभाव न हो तो वास्तु संबंधी उपरोक्त कोई भी नियमों का पालन करने की जरूरत नहीं है। मकान में सुख-शांति बनी रहेगी। 

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