
ढाका: बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा हिंदुओं के खिलाफ हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व वाली आवामी लीग सरकार का तख्तापलट होने के बाद से अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमले और अत्याचार बढ़ गए हैं। हिंदू समुदाय पर हत्या, बलात्कार, और मंदिरों पर हमले जैसी घटनाएँ अब आम हो गई हैं। इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा फैलाए गए आतंक के बीच 26 वर्षीय हिंदू छात्र अर्नब कुमार सरकार की गोली मारकर हत्या कर दी गई।
खुलना विश्वविद्यालय में MBA के छात्र अर्नब शुक्रवार रात खुलना शहर के तेंतुलतला चौराहे पर स्थित एक चाय की दुकान पर चाय पी रहे थे, जब मोटरसाइकिल पर सवार हमलावरों ने उनके सिर में गोली मार दी। पुलिस और स्थानीय सूत्रों के अनुसार, हमलावर 10-12 लोगों का समूह था, जो घटना के बाद फरार हो गया। अर्नब को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। पुलिस ने इसे आतंकी हमला करार दिया है और जांच शुरू कर दी है।
यह कोई अलग घटना नहीं है। हाल के दिनों में बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएँ बढ़ी हैं। 5 जनवरी को फरीदपुर में एक हिंदू पत्रकार और उसके परिवार पर हमला हुआ, जिसमें महिलाओं को गंभीर चोटें आईं। इसी तरह, चटगाँव के पटेंगा काठगढ़ में एक हिंदू युवक प्रांत तालुकदार को अगवा कर इस्लामी भीड़ ने प्रताड़ित किया। आरोप था कि उसने ईशनिंदा की थी। दिसंबर 2024 में नरैल जिले में 52 वर्षीय हिंदू महिला बसना मलिक का गैंगरेप किया गया, जिसके बाद उन्होंने आत्महत्या कर ली। इसके अलावा, 130 हिंदू घरों और 20 मंदिरों को आग के हवाले करने जैसी घटनाएँ भी हुईं।
इन घटनाओं पर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार, जो अब मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में है, कोई कदम उठाने के बजाय इसे धार्मिक हिंसा मानने से ही इनकार कर रही है। वहीं, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन और 57 इस्लामी देशों का मौन इस हिंसा पर और सवाल खड़े करता है। फिलिस्तीन पर चर्चा करने के लिए कई बार बैठकें करने वाले इन इस्लामी देशों ने बांग्लादेश के हिंदुओं की दुर्दशा पर चुप्पी साध रखी है। यह चुप्पी दर्शाती है कि क्या इन देशों में मानवता और सह-अस्तित्व के लिए कोई जगह नहीं है? दुनिया भर में मानवाधिकारों का झंडा उठाने वाले संगठन भी हिंदू, सिख और बौद्ध समुदायों के खिलाफ हो रही इन घटनाओं पर खामोश हैं।
बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे इस तरह के अत्याचार न केवल मानवता को शर्मसार कर रहे हैं, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर रहे हैं कि क्या धार्मिक सहिष्णुता और मानवाधिकार केवल चुनिंदा मुद्दों के लिए ही प्रासंगिक हैं? जब तक अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस हिंसा पर ध्यान नहीं देगा, तब तक हिंदुओं के खिलाफ यह अत्याचार जारी रहेगा।