विजयादशमी उल्लास और खुशियों का पर्व। मगर क्या आपने सोचा है इसे विजया दशमी क्यों कहा जाता है। शायद आपके पास एक साधारण जवाब हो बुराई पर अच्छाई की जीत के उल्लास में यह पर्व मनाया जाता है मगर यह पर्व शक्तिजागरण होने के बाद उसकी आराधना और विजय की मंगल कामना का भी है। इन दिनों हर ओर रावण दहन का आयोजन होता है। लोग बड़े उत्साहित होते हैं लेकिन फिर भी देश में तमाम तरह की बुराईयां देख रहे हैं। यदि रावण बुराई का प्रतीक है तो फिर समाज में इतना वैमनस्य क्यों फैला है।
यह बुराई केवल स्त्री हरण से जुड़ी नहीं है। जिस तरह से एक व्यक्ति केवल इसलिए मार दिया जाता है क्योंकि वह मांस लेकर जा रहा था। कुछ लोग एक दलित को जिंदा जला देते हैं। बलात्कार के मामले बढ़ते जा रहे हैं। देश में शराबखोरी और ड्रग्स की लत से युवा घिरे हुए हैं। वे युवा जिन्हें 21 वीं सदी में भारत को सिरमौर बनाने की जिम्मेदारी उठाने वाला कहा जाता है वे ड्रग्स की लत से घिरे हैं।
हमने रावण को मारकर दशहरे के अंधकार में उत्साह का उजाला तो फैला दिया लेकिन क्या हम इन बुराईयों को दूर कर पाऐ हैं। दशहरा उत्सव अपने उद्देश्य से भटक गया है। अब दशहरे पर केवल शोर होता है और कुछ घंटों का उत्साह मगर लोग आज भी उन बुराईयों के बीच जीते हैं। इस पर्व पर लोगों से संकल्प करवाने वाले और अपनी कोई भी एक बुराई छोड़ने की अपील करने वाले भी इस पर्व के अंधकार में खो जाते हैं।
रावण का पुतला सभी को उत्साहित करता है लेकिन बुराईयों से घिरे मानव को इन बुराईयों से मुक्ति नहीं मिल पाती है। धन पाने की चाहत में व्यक्ति लगा रहता है और बुराईयों के जाल में उलझ जाता है। इस पर्व में भी रावण के पुतले के दहन के साथ ही समाज उसकी बुराईयों को देखता है मगर उसकी अच्छाईयों को भूल जाता है और आत्मसात भी नहीं करता। ऐसे में समाज में वैमनस्य और अराजक स्थिति फैल जाती है।