महावीर जयंती : इतने कष्ट सहने के बाद भगवान महावीर बने तीर्थंकर
महावीर जयंती : इतने कष्ट सहने के बाद भगवान महावीर बने तीर्थंकर
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भारत में वैशाली के उपनगर कुंडलपुर के राजा सिद्धार्थ के घर 599 ईसा पूर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की 13वीं तिथि को भगवान महावीर का जन्म हुआ था. बचपन में महावीर का नाम वर्धमान रखा गया था क्योकि इनके जन्म के बाद से ही राजा सिद्धार्थ के राज्य में अभिवृद्धि होने लगी थी. इस दिन को जैन धर्म के लोग महावीर जयंती के नाम से मनाते हैं. इस वर्ष महावीर जयंती 29 मार्च को हैं. भगवान महावीर जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर थे.

भगवान महावीर ने अपने जीवन में हमेशा ही जीवों को अहिंसा और अपरिग्रह का संदेश दिया हैं. महावीर के विचारों के अनुसार जीवों की रक्षा कर लेना मात्र अहिंसा नहीं है, किसी भी प्राणी को तकलीफ नहीं पहुंचाना मात्र अहिंसा नहीं है, बल्कि यदि किसी को हमारी मदद की आवश्यकता है और हम उसकी मदद करने में सक्षम हैं फिर भी हम उसकी सहायता न करें तो यह हिंसा माना है.

बचपन में महावीर का नाम वर्धमान था. महावीर शाही परिवार से ताल्लुक रखते थे बावजूद इसके उन्होंने राजमहलों का शाही सुख त्यागकर तपोमय साधना का रास्ता चुन लिया. साढ़े बारह वर्षो तक महावीर ने साधना-जीवन कष्टों में गुजारा हैं. महावीर ने बहुत कठोर तप किया जिससे उन्होंने अपनी सभी इच्छाओं और विकारो पर काबू पा लिया. और इसलिए उन्हें महावीर कहकर पुकारा जाने लगा.

महावीर ने चार तीर्थो की स्थापना की हैं और ये चार तीर्थ हैं- साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका. इसलिए महावीर तीर्थंकर के नाम से भी जाने जाते हैं. महावीर जयंती के दिन सभी जैन मंदिरो में मूर्तियों का अभिषेक किया जाता हैं और इसके बाद उस मूर्ति को रथ पर बैठाकर बड़े ही जोरो-शोरो से जुलुस निकाला जाता हैं.

 

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