"खेलों और खिलाड़ियों का औध्योगिकरण”
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बचपन मे हमे बार-बार जीवन मे खेलों का महत्व के बारे मे बड़ी गहराई से पड़ाया जाता था और कहा जाता था कि खेलने-कूदने से हमारा शरीर स्वस्थ रहता है और हम बीमार नहीं होते है। और वास्तव मे उस जमाने मे यानि 20-30 साल पहले खेलों का जीवन मे बड़ा ही महत्व था और इसीलिए खेलों को शिक्षा मे शामिल किया गया और विध्यार्थियों ने भी इसका भली-भांति अध्ययन किया और खेलों को जीवन मे उतारा। मगर आज के मौजूदा दौर मे खेलों कि परिभाषा ही बदल गई है, खेलों का इस कद्र औध्योगिकरण हो गया है कि खेलने वाले भी और खिलाने वाले भी दोनों का बस एक ही उद्देश्य “अपना सपना मनी-मनी”। आए दिन खेलों मे घोटाले-घपले हो रहे है, खेलों का महत्व बस कालाबाजारी के लिए बड़ गया है।

क्रिकेट मे फिक्सिंग मे लिप्त श्रीसंत, अजीत चंदिला और अंकित चवान जैसे खिलाड़ियों ने देश को और क्रिकेट को बहुत शर्मोशार किया है। हाल ही मे अंतर्राष्ट्रीय फूटबाल संस्था FIFA पर भी घोटालों को लेकर प्रश्न चिन्ह लगा है। एसे जाने कितने खेल होंगे जिनके बारे मे अभी कहा नहीं जा सकता कि उनमे क्या हो रहा है। अब भारतीय खेल कबड्डी का भी औध्योगिकरण हो रहा है, जो कि आगे चलकर नए घोटालों को जन्म देगा। इन सबसे ज्यादा मायूस करने वाली बात तो यह है कि हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी होने के बावजूद इस खेल को कोई तवज्जो नहीं दी जा रही है।

ना सरकार जागरूक है और ना ही जनता, यह खेल बस नाम मात्र का राष्ट्रीय खेल बन कर रह गया है। आज देश दुनिया मे अधिकतर लोग क्रिकेट मे सट्टे के दिवाने हो गए है और कहते है कि खेल को बड़ावा दे रहे है। अगर ऐसे ही खेलों का औध्योगिकरण होता रहा तो खेल प्रेमियों का खेलों से विश्वास उठ जाएगा और खेलों के नाम पर हर तरफ बस सट्टों और सटोरियों की खेती होगी।

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