देव प्रबोधिनी एकादशी की महत्ता
देव प्रबोधिनी एकादशी की महत्ता
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हिन्दू धर्म में व्रत-पूजा का बहुत महत्व है. वर्ष भर पूजा पाठ के दौर चलते रहते हैं. इनमे एकादशी भी है. वर्ष में 24 एकादशी मनाई जाती है. विभिन्न नामों से पहचानी वाली एकादशी में जहां देव शयनी एकादशी को भगवान विष्णु और अन्य देवता चार माह के लिए क्षीर सागर में सोने चले जाते हैं. इसलिए इन चार माहों में मांगलिक कार्य करना वर्जित रहता है. वहीँ दीपावली बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को देव जागते हैं, इसलिए इसे देव उठनी ग्यारस अथवा देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है. इस एकादशी को पापों से मुक्त करने वाली एकादशी माना गया है. इस दिन तुलसी विवाह भी होता है. इस दिन से विवाह आदि के कार्य शुरू हो जाते हैं.

उल्लेखनीय है कि हिन्दू धर्म में हर एकादशी का अपना महत्व है. लेकिन देव प्रबोधिनी एकादशी का पुराणों में विशेष महत्व बताया है. इस दिन व्रत रखने से तीर्थ दर्शन, गंगा स्नान के अलावा अश्वमेघ यज्ञ और सौ राजसूययज्ञ के पुण्य की भी प्राप्ति होती है. इस व्रत के बारे में स्वयं ब्रम्हा जी ने नारदजी से कहा था कि जन्मों के साथ पापों से मुक्ति और सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. यही नहीं इस एकादशी की व्रत कथा के श्रवण से सौ गायों के दान के समतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है. इसलिए अधिकांश हिन्दू धर्मावलम्बी यह एकादशी का व्रत रखते हैं. इस वर्ष यह एकादशी 31 अक्टूबर मंगलवार को मनाई जाएगी.

इस एकादशी का पुण्य लाभ लेने के लिए इस दिन सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान कर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए. वैसे इस दिन नदी में स्नान करने का विशेष महत्व है. आज ही के दिन तुलसी जी का विधि विधान के साथ विष्णु जी के रूप में शालिग्राम जी से उनका विवाह किया जाता है. इस दिन कन्या दान कर भी पुण्य लाभ अर्जित किया जा सकता है. इसीलिए इस देव प्रबोधिनी एकादशी का महत्व पुराणों में भी वर्णित किया गया है.

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