यदि आप भी करने जा रहे है माँ कालरात्रि के लिए व्रत तो इन मन्त्रों का करें जाप
यदि आप भी करने जा रहे है माँ कालरात्रि के लिए व्रत तो इन मन्त्रों का करें जाप
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कालरात्रि माँ की कथा हिंदू धर्म में एक बहुत महत्वपूर्ण कथा है। इस कथा के अनुसार, एक समय पर भगवान विष्णु और देवी शक्ति ने बातचीत की। देवी शक्ति ने भगवान विष्णु से कहा कि जब उन्होंने दुनिया को बनाया था, तो उन्होंने भक्तों के लिए कोई स्पेशल दिन नहीं बनाया था।

भगवान विष्णु ने उत्तर दिया कि भक्तों के लिए स्पेशल दिन बनाने की जरूरत नहीं है क्योंकि उनके लिए हर दिन उनका पूजन करना चाहिए। इस पर देवी शक्ति ने भगवान विष्णु को चुनौती दी कि अगर ऐसा होता है, तो भक्तों की शक्ति दिखाने के लिए वह अपने एक स्वरूप में अधिक शक्तिशाली होंगी और इस दिन के लिए उन्हें कालरात्रि के नाम से जाना जाएगा।

उसी रात, देवी शक्ति ने अपने एक स्वरूप में दुनिया को आक्रमण करने वाली असुरासुरी सेना का सम्हार किया। यह दिन कालरात्रि के रूप में जाना जाता है।

कालरात्रि माँ की पूजा अनेक हिंदू घरों में मनाई जाती है। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण पूजा है जो निश्चित रूप से हिंदू धर्म में संभवतः सबसे बड़ी पूजा में से एक है। यह पूजा अमावस्या तिथि को मनाई जाती है जो माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को पड़ती है। इस दिन लोग माँ कालरात्रि की पूजा करते हैं ताकि उन्हें शक्ति और सुख मिल सके।

यहां कुछ सामान्य विधियां दी गई हैं जो कालरात्रि माँ की पूजा के दौरान अनुसरण की जा सकती हैं:

पूजा स्थल तैयार करें: पूजा स्थल को साफ सुथरा रखें और उसे गुलाबी वस्तुओं या सूखी घास के ढेर से सजाएँ। पूजा स्थल में दीपक, कुंड, अगरबत्ती, पानी की कलश, सुगंध, फूल आदि रखें।

पूजा की सामग्री इकट्ठा करें: पूजा के लिए जरूरी सामग्री जैसे लंगोट, कुंकुम, हल्दी, गंगाजल, मिठाई, फूल, फल, पूजा से सम्बंधित मंत्रों की पुस्तक आदि इकट्ठी करें।

कालरात्रि माँ का व्रत हिन्दू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह व्रत चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन यानी महाशुभ नवमी को मनाया जाता है। इस दिन माँ दुर्गा का नौवें स्वरूप, कालरात्रि के रूप में पूजा जाता है।

व्रत की तैयारी:

इस व्रत के दिन अन्न खाने से बचना चाहिए।
धूम्रपान और शराब पीने से परहेज करना चाहिए।
शुद्ध और साफ ध्यान करना चाहिए।

व्रत का विधान:

कालरात्रि माँ का पूजन करने के लिए सामग्री जैसे कि फूल, दीपक, नौटंकी, माला, गंगाजल और प्रसाद की चीजें इकट्ठी की जानी चाहिए।
स्नान करने के बाद पूजा का विधान करना चाहिए।
मंत्र जप करते हुए माँ को नौटंकी और दीपक के साथ पूजना चाहिए।
व्रत के दौरान भोजन के लिए सबुदाने का पानी, दूध, फल और सागो वड़े खाये जा सकते हैं।
रात्रि में माँ को जगाकर भी पूजा की जाती है।

कालरात्रि माँ के व्रत धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है। इस व्रत को मां दुर्गा की उपासना के रूप में मनाया जाता है। यह व्रत नवरात्रि के नौ दिनों के दूसरे दिन, यानी अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन भक्तों को कालरात्रि माँ का व्रत रखना चाहिए, जो भयंकर और उग्र रूप धारण करती हैं।

कालरात्रि माँ के व्रत के लिए धर्मशास्त्रों में विशेष विधि बताई गई है। इस व्रत में भक्तों को नौ दुर्गा के रूपों के उपासना करनी चाहिए। इन रूपों में कुछ अमंगल अवस्थाओं के साथ आते हैं, जैसे कि काली, दुर्गा, चामुंडा और भैरवी।

भक्तों को इस व्रत के दौरान सभी प्रकार के खाद्य पदार्थों से वंचित रहना चाहिए। उन्हें नियमित रूप से मन्त्रों का जप करना चाहिए और भक्तों को भयानक रूप धारण करने वाली कालरात्रि माँ के लिए भोग चढ़ाना चाहिए।

ॐ ह्रीं कालिकायै नमः॥
(Om Hreem Kalikayai Namah)

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

अथ नवपद्म प्रार्थना -
सुखं रक्षतु देवी सर्वदा चिन्ताशोकनाशिनी।
प्रेमप्रसाददायिनी विश्वविजयिनी दुर्गे॥

 

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