कुछ ऐसा रहा साक्षी मालिक का ओलंपिक तक पहुँचने का सफर
कुछ ऐसा रहा साक्षी मालिक का ओलंपिक तक पहुँचने का सफर
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कहते हैं कि यदि मन में जज्बा और खुद पर भरोसा हो तो कोई भी मंजिल पाना मुश्किल नहीं है। ऐसा ही कुछ इरादा रखकर आज इस मुकाम पर पहुँची है ओलिंपिक मेडलिस्ट साक्षी मलिक...

दरसल रेसलर महावीर फोगाट और उनकी बेटी गीता फोगाट की लाइफ पर बनी फिल्म 'दंगल' हाल ही में रिलीज हुई है, जिसमें गीता के बचपन की मुश्किलों और उनकी मेहनत के बारे में बताया गया है। लेकिन शायद ही किसी को पता हो की उनसे कहीं ज्यादा मेहनत और स्ट्रगल साक्षी मलिक ने अपनी ज़िन्दगी में देखा है.

आइये हम आपको बताते है साक्षी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य-

-साक्षी का जन्म ३ सितंबर 1992 को हरियाणा के रोहतक जिले में मोखरा गांव में हुआ था।

-साक्षी के जन्म के बाद ही इनके पिता की दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन में बतौर कंडक्टर लग गई थी।

-वही कुछ दिनों बाद इनकी माँ सुदेश मालिक की भी नौकरी रोहतक में आंगनबाड़ी सुपरवाइजर के तौर पर लग गई।

-लेकिन इन सबके बाद भी साक्षी का शुरुवाती बचपन गाँव में और बहुत सारे आभाव में बीता।

दादा से मिली रेसलिंग की प्रेरणा-

-दरसल साक्षी को रेसलिंग की प्रेरणा अपने दादा बदलूराम से मिली जो अपने इलाके के जाने-माने पहलवान थे और आसपास के गाँव में उनका बड़ा नाम था।

-आस-पास के लोगो में अपने दादा के लिए रेसलिंग को लेकर जो इज़्ज़त और सम्मान था उससे साक्षी काफी प्रभावित हुई और रेसलिंग में जाने का मन बनाया।

-लेकिन जब साक्षी ने अपने माता-पिता के सामने रेसलिंग में जाते की इच्छा ज़ाहिर की तो माता-पिता ये सुनकर काफी हैरान रह गए और इसके लिए मना कर दिया।

साक्षी की ज़िद से डर गई थी माँ-

-दरसल साक्षी की माँ और दादा ने साक्षी के रेसलिंग में जाने का काफी विरोध किया क्योंकि उनका मानना था की पहलवानो के पास दीमक काफी काम होता है।

-वही दादा को डर था की ये लड़की कुश्ती में जाकर कही अपने हाथ-पेअर न तुड़वा बैठे।

-लेकिन साक्षी अपनी ज़िद पर अड़ी रही जिनके आगे इनकी माँ और दादा को झुकना पड़ा।

-घर वालो की परमिशन मिलने के बाद से ही साक्षी ने महज 12 साल की उम्र से रेसलिंग की ट्रेनिंग लेना शुरू कर दिया।

-साक्षी ट्रेनिंग के लिए रोहतक के छोटूराम स्टेडियम के एक अखाड़े में जाया करती थी।

-इनकी कुश्ती के शुरुवाती कोच ईश्वर सिंह दहिया थे।

साक्षी को लोगो की उपेक्छायें भी झेलनी पड़ी-

- इस दौरान साक्षी और उनके कोच को लोगों की विरोध का सामना भी करना पड़ा।

- कई लोगों ने साक्षी का ये कहकर मजाक भी उड़ाया कि रेसलिंग महिलाओं का खेल नहीं है।

-खेल के दौरान सबसे बड़ी समस्या ये आई की आखिर साक्षी का मुकाबला किससे करवाया जाये क्योंकि उस समय लडकिया पहलवानी में नहीं थी।

-लेकिन इस समस्या को देखते हुए साक्षी ने लड़को के साथ कुश्ती खेलने की हामी भर दी।

-समय के साथ-साथ साक्षी ने लड़को के साथ कुश्ती खेल ही नहीं बल्कि जीता भी।

कुछ ऐसी है साक्षी की पर्सनल लाइफ-

-माँ के मुताबिक साक्षी बचपन में बेहद चुलबुली, नटखट, शरारती हुआ करती थी और दादी चंद्रावली की लाडली थीं।

- साक्षी की माँ बताती है कि पहलवान बनने के बाद साक्षी बहुत चुप-चुप रहती है। और काफी गंभीर भी हो गई।

-अब हर काम गंभीरता से करती है, पहले ऐसी नहीं थी।

-माँ कहती है इसे काम करने का बहुत शौक है और अभी भी घर आती है तो घर के सारे काम करती है।

आइये जानते है साक्षी के ओलम्पिक तक पहुँचने का सफर-

-रेसलिंग में साक्षी को पहली कामयाबी साल 2010 में मिली। जब जूनियर वर्ल्ड चैम्पियनशिप में 58 किलो वर्ग में उन्होंने ब्रोंज मेडल जीता।

-इसके बाद साक्षी को अगली बड़ी सफलता साल 2014 में डेव क्रुल्ट्स टूर्नामेंट में मिली, जब उन्होंने 60 किलो कैटेगरी में गोल्ड मेडल जीता।

- इसी साल ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में साक्षी ने 58 किलोग्राम वर्ग में सिल्वर मेडल हासिल किया।

- 2015 में दोहा में हुई एशयिन चैम्पियनशिप में साक्षी ने 60 किलोग्राम कैटेगरी में हिस्सा लेते हुए ब्रोंज मेडल जीता।

- एक साल बाद रियो में हुए ओलिंपिक गेम्स में साक्षी ने 58 किलोग्राम वर्ग में भारत के लिए ब्रोन्ज मेडल जीता।

- वे ओलिंपिक में रेसलिंग में भारत के लिए कोई मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बनीं।

प्रैक्टिस के बिना नहीं गुज़रता साक्षी दिन-

-साक्षी रोजाना 8 -9 घंटे प्रेक्टिस करती है।

- रियो ओलिंपिक तैयारी के दौरान लगभग सालभर रोहतक के साई (स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया) होस्टल में रही थीं।

- उन्हें वेट मेन्टेन करने के लिए बेहद कड़ा डाइट चार्ट फॉलो करना पड़ता था। कड़ी प्रैक्टिस के बावजूद वे पढ़ाई में अच्छे मार्क्स ला चुकी हैं।

- रेसलिंग की वजह से उनके कमरे में गोल्ड, सिल्वर व ब्रोन्ज मेडल का ढेर लगा है।

सत्यब्रत को चुना जीवनसाथी के रूप में-

साक्षी ने सत्यव्रत कादियान को अपने जीवनसाथी के रूप में चुना है, साक्षी और सत्यब्रत की मुलाकात अखाड़े में ही हुई थी, तभी से इनका प्यार परवान चढ़ा और फिर दोनों ने साथ जीने-मारने की कसमें खाई, और इन दोनों के परिवार की रज़ामंदी से इनका रिश्ता तय हो चुका है, सत्यब्रत अर्जुन पुरस्कार हासिल कर चुके है, सत्यब्रत का कहना है की वो साक्षी के अच्छे दोस्त भी है और कदम-कदम पर इनका हौसला बढ़ाते रहते है।

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