गोरखपुर शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित एक अनोखा मंदिर है, जहां हर सोमवार को भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। इस मंदिर के अंदर मौजूद शिवलिंग पर एक खास बात है—उस पर कलमा लिखा हुआ है। इस मंदिर का इतिहास मुग़ल काल से जुड़ा हुआ है और आज भी श्रद्धालु यहां जल चढ़ाने के लिए लंबी कतार में लगते हैं।
स्वयंभू शिवलिंग और उसकी मान्यता
गोरखपुर के सरया तिवारी गांव में स्थित इस मंदिर को झारखंडी शिव भी कहा जाता है। लोगों की मान्यता है कि यह शिवलिंग 100 साल से भी पुराना है। मंदिर के पुजारी और भक्तों का कहना है कि यहां आकर जो भी व्यक्ति अपनी मनोकामना करता है, उसकी मनोकामना पूरी होती है।
मुग़ल आक्रमण और शिवलिंग की कहानी
मंदिर के शिवलिंग के बारे में एक पुरानी मान्यता है कि जब मोहम्मद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया, तो उसने देश के सभी मंदिरों को लूटने और नष्ट करने का प्रयास किया। वह इस शिवलिंग को भी उखाड़ना चाहता था। लेकिन उसकी सेना जब बार-बार कोशिशों के बावजूद शिवलिंग को उखाड़ने में असफल रही, तो उसने शिवलिंग पर कलमा लिखवा दिया, ताकि कोई हिंदू इसकी पूजा न कर सके।
मंदिर की छत और तालाब की कहानी
मंदिर के बारे में एक और मान्यता है कि इस मंदिर पर कई प्रयासों के बावजूद छत नहीं लगाई जा सकी। शिवलिंग आज भी खुले आसमान के नीचे ही है। मंदिर के बगल में एक तालाब भी है, जिसमें नहाने से एक कुष्ठ रोग से पीड़ित राजा ठीक हो गए थे।
सावन महीने में बढ़ती है मान्यता
सावन के महीने में इस मंदिर और शिवलिंग की मान्यता और भी बढ़ जाती है। सोमवार को तो लोग यहां पूजा करने और जल चढ़ाने के लिए आते ही हैं, लेकिन सावन के महीने में सुबह से ही लंबी लाइनें लग जाती हैं। भक्त भगवान शिव को जल चढ़ाकर आशीर्वाद प्राप्त करने की चाहत रखते हैं। कई श्रद्धालु यहां आकर शिवलिंग पर लेप लगाते हैं, फिर बेलपत्र चढ़ाकर जल अर्पित करते हैं।
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