इलेक्ट्रिक कारें करेगी आतंकी की छुट्टी, जानिए कैसे !
इलेक्ट्रिक कारें करेगी आतंकी की छुट्टी, जानिए कैसे !
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आतंकवाद वैश्विक मुद्दा आज पूरी दुनिया के लिए बन चुका है. शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरता होगा जब किसी आतंकी हमले की खबर अखबारों में नहीं छपती. यहां तक कि आतंक को पालने पोसने वाला पाकिस्तान भी आतंक से ही परेशान है. लेकिन आपको सुन कर ये अजीब लगेगा कि इलेक्ट्रिक गाड़ियां आतंकवाद पर रोकने में अगम भूमिका निभा सकती हैं. आप सोच रहे होंगे कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों का आतंकवाद से क्या लेना-देना है? आइए जानते है पूरी जानकारी विस्तार से 
 


आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इसका सबसे सटीक उत्तर है ‘तेल’. आज आतंकवाद का ठिकाना ज्यादातर उन्हीं देशों में है जहां तेल के भंडार हैं, वहीं आतंकी संगठनों को सबसे ज्यादा फंडिग मुस्लिम देशों से मिलती है, जहां तेल का प्रचुर मात्रा में है. इस्लामी आतंकवाद का सबसे खूंखार संगठन आईएसआईएस और अलकायदा भी उन्हीं देशों में पनपे, जहां की पूरी अर्थव्यवस्था तेल पर निर्भर है. कभी आईएसआईएस के पास दो अरब डॉलर यानी 13 हजार करोड़ की संपत्ति थी और ये संपत्ति उसने ऑयल फील्ड्स पर कब्जा करके जुटाई थी. उस दौरान आईएसआईएस उत्तर इराक और सीरिया में अपने कब्जे वाली रिफाइनरीज और कुओं से हर दिन तेल बेच कर एक से दो मिलियन डॉलर यानी तकरीबन 13 करोड़ रुपये तेल बेच कर कमाता था. अकेले सीरिया से ही यह संगठन रोजाना 44 हजार बैरल और इराक से चार हजार बैरल कच्चा तेल निकालता था.
 

सा​​थ ही दुनिया के टॉप तेल उत्पादक राष्ट्रों की बात करें, तो सऊदी अरब का तेल उत्पादन 9.9 मिलियन तेल बैरल प्रतिदिन है, जो रोजाना दुनिया में उत्पादित तेल बैरल की कुल संख्या का 12.65 फीसदी है. वहीं ईरान रोजाना तकरीबन 4.23 मिलियन बैरल तेल उत्पादन करता है, जो दैनिक तेल उत्पादन का 4.77 फीसदी है. वहीं इराक से रोजाना 3.4 मिलियन बैरल तेल निकालता है, जो दैनिक तेल उत्पादन का 3.75 फीसदी है. इसके अलावा संयुक्त अरब अमीरात रोजाना तकरीबन 3.09 मिलिन बैरल तेल का उत्पादन करता है, इसमें सात अमीरात आते हैं, जो विश्व की दैनिक जरूरत का 3.32 फीसदी तेल का उत्पादन करते हैं. ये सभी देश ओपेक यानी तेल निर्यातक देशों के संगठन का हिस्सा हैं, जो मध्य-पूर्व एशिया की राजनीति में बड़ा दखल रखते हैं. ओपेक में 14 देश शामिल हैं, हालांकि पहले कतर भी इसका हिस्सा होता था, लेकिन 2018 में उसने इस संगठऩ से हाथ खींच लिया. 2019 आंकड़ों के मुताबिक इन सभी राष्ट्रों के पास दुनिया की कुल जरूरत का 79.4 फीसदी तेल का भंडार है. दुनिया के तमाम राष्ट्र अपनी दैनिक तेल की जरूरतों के लिये इन राष्ट्रों पर निर्भर हैं.
 

यूएस एनर्जी इंफॉरमेशन की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2018 में इन सभी ओपेक देशों की तेल के कुल निर्यात से कमाई 71,800 करोड़ डॉलर रही। जिसमें सबसे ज्यादा कमाई 16,700 करोड़ डॉलर अकेले सऊदी अरब ने की. वहीं 2017 के आंकड़ों के मुताबिक तेल के निर्यात से होने वाली प्रति व्यक्ति आय के मामले में कुवैत, कतर, सउदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात हैं. इनमें कुवैक और कतर की कमाई का औसत 11 हजार डॉलर प्रति व्यक्ति है, जबकि सउदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की कमाई औसतन 5 हजार डॉलर प्रति व्यक्ति है.इन राष्ट्रों में रहने वाले नागरिकों से प्रति व्यक्ति उनकी आमदनी का सालाना आय का 2.5 फीसदी जकात ‘दान’ लिया जाता है, जिसे चैरिटी और दूसरे कामों में खर्च किया जाता है. ये पैसा जरूरतमंदों के अलावा धार्मिक गतिविधियों के लिये काम करने वाले संगठऩों को भी जाता है, जहां से ये पैसा दूसरे तरीकों से आतंकी संगठनों के पास पहुंच जाता है. ऑम्स फॉर जेहाद यानी जिहाद के लिये चेतावनी नाम शीषर्क किताब के सह-लेखक रॉबर्ट ओ कोलिंस ने अपनी किताब में लिखा है कि ऐसी दस हजार से ज्यादा ऐसी संस्थाएं हैं, जिनमें से 100 से ज्यादा संस्थाएं आतंकियों को फंडिंग करती हैं, वहीं कुछ इस्लाम को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों मस्जिद और मदरसे बनाने पर खर्च करती हैं, लेकिन ये पैसा घूम-फिर कर हवाला और अन्य माध्यमों से जेहादियों के पास ही आ जाता है. इनमें से कई संगठनों को समय-समय पर बैन किया जाता रहा है, लेकिन अपने संपर्कों के बलबूते ये फिर नए नामों से जिंदा हो जाते हैं और इसी काम में जुटी रहते हैं.
 

टेरेरिस्ट फाइनेंसिंग रिक्रूटमेंट एंड अटैक्स नाम से अक्टूबर 2018 में एक शोधपत्र छपा था, इसकी लेखिका निकोला लिमोडियो ने खुलासा किया था कि खासतौर पर पाकिस्तान में ईद के मौके पर सबसे ज्यादा जकात की राशि एकत्र होती है. प्रत्येक व्यक्ति को ईद के आसपास अंतरराष्ट्रीय बाजार में 600 ग्राम चांदी की कीमत के बराबर जकात राशि देनी होती है. जब चांदी के भाव ऊपर चढ़े होते हैं, तो इन संगठनों को जबरदस्त चंदा मिलता है.गैर-सरकारी डाटा के मुताबिक अकेले भारत जैसे देश से ही रमजान के दौरान जकात का चंदा 30 हजार करोड़ रुपये से लेकर 40 हजार करोड़ रुपयों तक हो सकता है. हालांकि भारत में इसे लेकर अभी तक कोई अध्ययन नहीं हुआ है, क्योंकि यह सारा दान नकद ही होता है और न ही इसमे किसी प्रकार का कोई एग्रीमेंट किया जाता है. माना जाता है कि यह सारा काला धन होता है. यह सारा चंदा शिक्षा, नौकरी और धर्म के नाम पर लिया जाता है। जकात के नाम पर इतना धन एकत्र होता है, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि देश की सबसे अमीर बृहनमुंबई महानगर पालिका का सालाना बजट 37 हजार करोड़ रुपये है.     
 

ग्लोबल ह्यूमैनिटेरियन असिस्टेंस की एक रिपोर्ट के मुताबिक इंडोनेशिया, मलेशिया, कतर, सऊदी अरब और यमन में जहां दुनिया की 17 फीसदी मुस्लिम आबादी रहती है, वहां से हर साल 570 करोड़ डॉलर की राशि जकात के जरिये एकत्र होती है. वहीं तुर्की जकात की राशि देने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है, जो खासतौर पर सीरिया और सोमालिया को जाता है. 2015 में तुर्की के अंताल्या शहर में हुई जी-20 शिखर सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन ने दावा किया था कि तकरीबन 40 देश आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठनों को फंडिंग करते हैं. वहीं उन्होंने यह भी कहा था कि जी-20 में शामिल कुछ देश भी आतंकवाद को मदद पहुंचा रहे हैं. हालांकि ऐसा नहीं है कि केवल मुस्लिम देश ही आतंकियों को फंडिंग करने के लिये जिम्मेदार हैं. ब्रिटेन, अमेरिका जैसे देशों के नागरिक भी इन्हें फंडिंग देते हैं। ब्रिटेन की सरकारी खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक उनके नागरिकों ने इस्लामी चरमपंथी संस्थानों को हजारों पाउंड की राशि चंदे के तौर पर दी है.
 

दुनिया की सबसे बड़ी इलेक्ट्रिक कारें बनाने वाली कंपनी टेस्ला मोटर्स के बिजनेस डेवलपमेंट हेड डायरमुड ओकॉनेल ने एक लेख में कहा था कि जलवायु परिवर्तन वास्तव में सबसे बड़ी चिंता नहीं थी. इसमें कुछ बिजनेस नहीं छुपा हुआ है. वह कहते हैं कि हमें यह समझने की जरूरत है जितनी जल्दी हम तेल से खुद को अलग कर लेंगे, उतनी ही तेजी से हम अपने परिवहन का विद्युतिकरण कर देंगे, उसके साथ ही हम धार्मिक और नागरिक युद्धों से भी खुद को अलग कर लेंगे. उनका कहना है कि हम उन देशों को पैसा क्यों दें, जो हमें पसंद नहीं करते हैं. हमें तरीके खोजने होंगे कि कैसे उन आतंकी संगठनों के हाथों से अपना पैसा वापस लें. वहीं जैसे ही तेल से निर्भरता कम होगी, और इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा मिलेगा, इससे तेल की अर्थव्यवस्था के जरिये आतंकवाद को आर्थिक मदद करने वाले राष्ट्रों की आय में तेजी से गिरावट होगी. ऐसे में इलेक्ट्रिक कारें मानवता की मदद के लिये तेजी से उभरी हैं. हालांकि इलेक्ट्रिक कारों को बढ़ावा देने के लिए प्रदूषण एक अहम मुद्दा हो सकता है, लेकिन आतंकवाद उससे कहीं ज्यादा बड़ा मुद्दा है.
 

प्राप्त जानकारी के अनुसार  चीन, अमेरिका, नार्वे समेत कई ऐसे देश हैं, जहां इलेक्ट्रिक कारें बहुत प्रसिद्ध हो रही हैं और बिक्री में लगातार इजाफा हो रहा है. 2018 के आंकड़ों के मुताबिक नार्वे में 49.14 फीसदी, आइसलैंड में 19.14 फीसदी, स्वीडन में 8 फीसदी, नीडरलैंड में 6.69 फीसदी, फिनलैंड में 4.74 फीसदी, चीन में 4.44 फीसदी, पुतर्गाल में 3.44 फीसदी, स्विटजरलैंड में 3.18 फीसदी, ब्रिटेन में 2.53 फीसदी, कनाडा में 2.22 फीसदी, फ्रांस में 2.10 फीसदी, अमेरिका में 2.09 फीसदी, द. कोरिया में 2.05 फीसदी और जर्मनी में 1.97 फीसदी इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री हुई. वहीं भारत में मई 2019 में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री 7.5 लाख यूनिट से ऊपर पहुंच गई है, जबकि साल 2018 में यह आंकड़ा मात्र 56 हजार वाहनों का था- 2019 तक 1.26 लाख दोपहिया, 6.30 लाख तीपहिया और 3,600 इलेक्ट्रिक पैसेंजर व्हीकल्स की बिक्री हो चुकी है.

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