कहीं 'मुक्ति की कामना' तो कहीं 'क़यामत' का इंतज़ार, कुछ यूँ होता है हर धर्म में 'अंतिम संस्कार'
कहीं 'मुक्ति की कामना' तो कहीं 'क़यामत' का इंतज़ार, कुछ यूँ होता है हर धर्म में 'अंतिम संस्कार'
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'जिसने भी धरती पर जन्म लिया है, उसकी मौत निश्चित है।' यह तो एक अटल सत्य है, जिसे दुनिया का हर धर्म स्वीकार करता है। लेकिन प्रत्येक धर्म में मौत के बाद के जीवन को लेकर अलग-अलग धारणाएं हैं। एक धर्म में, 'मृत्यु' को जन्म-मरण के चक्र में आने वाला एक पड़ाव मात्र माना जाता है, तो दूसरे में इसके बाद क़यामत के दिन का इंतज़ार करने की मान्यता है। सरल भाषा में कहा जाए तो, मृत्यु के बाद क्या होता है, इसको लेकर सभी धर्मों की अपनी अपनी मान्यताएं हैं। इसी के कारण हर धर्म के लोगों के अंतिम संस्कार का तरीका भी अलग है। आज यह मुद्दा इसलिए सुर्ख़ियों में आया हुआ है, क्योंकि एक हिन्दू महिला ने अपने पति की सऊदी अरब में मौत होने के बाद उसका (पति का) अंतिम संस्कार मुस्लिम रीती-रिवाज से किए जाने के खिलाफ हाई कोर्ट का रुख किया है। 

क्या है मामला:- 
दरअसल, हिमाचल प्रदेश के ऊना की निवासी अंजू शर्मा ने अपने वकील सौरभ चंद के जरिए दिल्ली हाई कोर्ट याचिका दाखिल करते हुए उनके पति का शव की अस्थियों को भारत लाने के बारे में निर्देश देने की मांग की है। अंजू की तीन बेटियां हैं और उनके पति संजीव बीते 23 वर्षों से सऊदी अरब में ट्रक ड्राइवर का काम करते थे। तीन वर्षों से वह भारत नहीं आ पाए थे। 24 जनवरी को संजीव की डायबिटीज, हाईपरटेंशन और दिल का दौरा पड़ने की वजह से हो गई थी। पति की मौत की जानकारी मिलने पर अंजू ने विदेश मंत्रालय से शव को भारत लाने की मांग की है।

याचिककर्ता ने अदालत को बताया है कि सऊदी अरब के अस्पताल की तरफ से जारी किया गया मृत्यु प्रमाण पत्र अरबी भाषा में था। भारतीय वाणिज्य दूतावास के अधिकारी से अरबी का अनुवाद करने में चूक हुई और उन्होंने प्रमाणपत्र में संजीव का धर्म मुस्लिम लिख दिया। जिसके बाद सऊदी में मृतक का अंतिम संस्कार मुस्लिम रीती रिवाज के अनुसार दफनाते हुए कर दिया गया।  अब अंजू ने अपनी याचिका में कहा है कि उनके पति की अस्थियों को भारत लाया जाए, ताकि वे उनका हिंदू रिवाज़ से अंतिम संस्कार करा सकें। अब इस मुद्दे के बाद यह बात जोर पकड़ने लगी है कि आज के आधुनिक दौर में क्या अंतिम संस्कार के तरीके से कोई फर्क पड़ता है ? आज श्मशान घाट की जगह लोग इलेक्ट्रॉनिक शवदाह का इस्तेमाल कर रहे हैं। वहीं, शवों को दफ़नाने से कब्रिस्तानों में जगह कम पड़ने का मुद्दा भी गाहे-बगाहे सामने आता रहता है। ऐसे में आज हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि विश्व के सबसे ज्यादा माने जाने वाले धर्मों में अंतिम संस्कार की क्या प्रक्रिया है और उन प्रथाओं के पीछे क्या मान्यताएं हैं। 

ईसाई धर्म:- ईसाई धर्म यानी क्रिश्चियनिटी दुनिया का सबसे अधिक माना जाने वाला धर्म है। इस धर्म के अनुयायियों का मानना है कि मौत इंसान के पापों का फल है। ईसाई धर्म के अधिकतर लोग यह मानते हैं कि एडम और ईव से जो पाप हुआ था, उसी पाप की वजह से मौत दुनिया में आई है। ईसाइयों की पवित्र पुस्तक बाइबिल के अनुसार, जब कोई इंसान मर जाता है तो उसका वजूद पूरी तरह ख़त्म हो जाता है। मौत, ज़िंदगी के बिलकुल विपरीत है। मरे हुए न कुछ देख सकते हैं, न सुन सकते, ना ही सोच सकते हैं, क्योंकि उनकी चेतना नष्ट हो चुकी है। बाइबिल के अनुसार, हमारे अंदर आत्मा जैसी कोई चीज़ नहीं होती, जो हमारी मौत के बाद भी ज़िंदा रहती हो। इसलिए क्रिश्चियनिटी में RIP यानी 'रेस्ट इन पीस' कहा जाता है, जिसका मतलब होता है 'शांति से आराम करो'। दरअसल, इस धर्म के अनुयायियों का विश्वास 'जजमेंट डे' पर है। यह  ये वो दिन है जिस दिन मनुष्य को उसके अच्छे ओर बुरे कर्मो के फलस्वरूप जन्नत और दोज़ख में भेजे जाने का फैसला होगा।  इसी वजह से ईसाई धर्म में किसी की मौत होने पर उसे एक ताबूत में भरकर कब्रिस्तान में दफनाया जाता है, यह कब्रिस्तान अधिकतर गिरिजाघर के आसपास ही बने हुए होते हैं। ताकि जजमेंट डे के दिन वह मृतक शख्स फिर उठकर अपने पाप-पुण्य के अनुसार स्वर्ग या नर्क में जा सके। साथ ही मृतक की कब्र पर एक सलीब का चिन्ह (जिसपर ईसा मसीह को चढ़ाया गया था) लगा दिया जाता है। 

इस्लाम धर्म:- ये दुनिया का सबसे तेजी से फैलने वाला धर्म है, 700 ईस्वी में पैगम्बर मोहम्मद ने इस्लाम की नींव रखी थी और उन्ही की शिक्षाओं पर दुनियाभर के मुस्लमान आज भी अमल करते आ रहे हैं। ईसाई धर्म की तरह ही इस्लाम में भी जजमेंट डे को 'क़यामत के दिन' के रूप में माना जाता है। हालांकि, ईसाईयों के विपरीत इस्लाम में रूह यानी आत्मा पर यकीन किया जाता है। क़ुरान के मुताबिक, पैगम्बर ने सभी मोमिनों को खुद यह सन्देश दिया था कि, “इंसानों! तुमको मरना है और मरने के बाद जी उठना है और जी उठकर पैदा करने वाले मालिक के सामने जवाबदही करना है।” और यह क़यामत के दिन या फैसले का दिन ही होगा। मुस्लिमों की पवित्र पुस्तक क़ुरान के अनुसार, मृतक की रूह 'आलम ए बरज़ख' में उस घड़ी का इंतज़ार कर रही होती है, जिसमे उसे उसका ठिकाना दे दिया जाएगा, यानी उसके कर्मों का फैसला कर दिया जाएगा। इसी वजह से इस्लाम में मृतक की देह को नहला-धुलाकर और साफ़ कपड़े पहनाकर जमीन में दफ़न कर दिया जाता है। 

हिन्दू धर्म:- हिन्दू धर्म में अंतिम संस्कार करने का तरीका उपरोक्त दोनों धर्मों से अलग है। दरअसल, ऐसा इसलिए है क्योंकि, हिन्दू धर्म में क़यामत यानी प्रलय को लेकर तो विश्वास है। लेकिन उनका मानना यह है कि मनुष्य को उसके द्वारा किए गए अच्छे या बुरे कर्मों का फल उसके जीवन में ही मिल जाता है और अगर कुछ बच जाता है तो उसे मनुष्य अगले जन्म में भोगता है। हिन्दुओं के पवित्र ग्रन्थ गीता में श्री कृष्ण ने स्पष्ट कहा है कि 'जिस प्रकार मनुष्य, एक वस्त्र को छोड़कर दूसरे वस्त्र धारण करता है, ठीक उसी तरह आत्मा भी एक शरीर को त्यागकर दूसरा शरीर धारण करती है।' दरअसल, हिन्दू धर्म में माना जाता है कि इंसानी शरीर 5 तत्व (पृथ्वी, जल, आकाश, वायु और अग्नि) से मिलकर बना है और मरने के बाद इसे उन्ही पंचतत्वों में विलीन हो जाना चाहिए । इस कारण हिन्दुओं में शव का दाह संस्कार किया जाता है, और बची हुई अस्थियों को जल में प्रवाहित कर दिया जाता है। एक विशेष बात यह भी है कि, हिन्दु धर्म पुनर्जन्म में यकीन रखता है, उसका मानना है कि जीवात्मा को 84 लाख अलग-अलग योनियों में भटकना पड़ता है, जिसके बाद उसे मानव जीवन मिलता है, इस दौरान उसे काफी कष्ट भी सहने पड़ते हैं। जिसके कारण हिन्दू धर्म के लोग ईश्वर से इस जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं, ताकि उन्हें फिर इस मायारुपी संसार में न आना पड़े और उनकी आत्मा सदा के लिए परमात्मा में विलीन हो जाए। 

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