style="text-align: justify;">पृथ्वी की बाहरी सतह सात प्रमुख एवं कई छोटी पट्टियों में बंटी होती है। 50 से 100 किलोमीटर तक की मोटाई की ये परतें लगातार घूमती रहती हैं। इसके नीचे तरल पदार्थ लावा होता है और ये परतें (प्लेटें) इसी लावे पर तैरती रहती हैं और इनके टकराने से ऊर्जा निकलती है, जिसे भूकंप कहते हैं। नेपाल में शनिवार को जहां भूकंप आया वह इंड्स-यारलंग क्षेत्र कहलाता है जहां करीब चार करोड़ वर्ष पहले भारतीय उपमहाद्वीप यूरेशियाई प्लेट से टकराया था। इसकी वजह से हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ। यह पर्वत आज भी प्रतिवर्ष एक सेंटीमीटर ऊपर ऊंचा उठ रहा है।
काठमांडू घाटी के नीचे 300 मीटर की गहराई में काली मिट्टी है जो कि प्रागैतिहासिक झील का अवशेष है, जिसकी वजह से भूकंप की तीव्रता बढ़ी और जान-माल का व्यापक नुकसान हुआ। अध्ययनों से यह जाहिर हुआ है कि यहां मिट्टी के द्रवीकरण की वजह से बड़ा भूकंप आने का खतरा बना रहता है।
हिमालय के नीचे धरती की दो परतें हैं, जो आपस में सामंजस्य बिठाती हैं तो कंपन होता है। शनिवार को भी ऐसा ही हुआ।
विशेषज्ञों का कहना है कि भूकंप के केंद्र से जो ऊर्जा निकलती है वह किसी परमाणु बम से कम नहीं होती। यह धरती की परतों को चीरते हुए सतह तक आती है।
भारतीय उपमहाद्वीप की परतें 5.5 सेंटीमीटर की दर से उत्तर की ओर खिसक रही हैं। कई बार ये आपस में टकराती हैं। लगातार टक्कर से परतों की दबाव सहने की क्षमता खत्म होती जाती हैं। परतें टूटने के साथ उसके नीचे मौजूद ऊर्जा बाहर आने का रास्ता खोजती हैं। इस वजह से हिमालय क्षेत्र में भूकंप आता है।
भारतीय उपमहाद्वीप को भूकंप के खतरे के लिहाज से सीसमिक जोन 2,3,4,5 जोन में बांटा गया है। पांचवा जोन सबसे ज्यादा खतरे वाला माना जाता है। पश्चिमी और केंद्रीय हिमालय क्षेत्र से जुड़े कश्मीर, पूर्वोत्तर और कच्छ का रण इस क्षेत्र में आते हैं।