नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (FCI) और उसके डिविजनल मैनेजर द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) को खारिज करते हुए उन पर 50-50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि ऐसी याचिका दायर करने की सलाह देना अनुचित था और यह अदालत के समय की बर्बादी है।
यह मामला त्रिपुरा हाई कोर्ट के 19 अक्टूबर 2023 के आदेश से जुड़ा था। याचिकाकर्ताओं ने इस आदेश को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने पहले ही इस याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की, जिसे फिर से खारिज कर दिया गया। इसके बावजूद, एफसीआई ने एक नई याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की।
जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने सुनवाई के दौरान एफसीआई की इस नई याचिका पर नाराजगी जाहिर की। शुरुआत में ही बेंच ने संकेत दिया कि वे याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाएंगे। जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने टिप्पणी की, "इसे जुर्माने के साथ खारिज किया जाना चाहिए। आपने इसे दायर करने की हिम्मत कैसे की? रिकॉर्ड पर वकील कौन है? बहस करें।"
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व वकील पुरुषोत्तम शर्मा त्रिपाठी ने किया। उन्होंने तर्क दिया कि याचिका पर पुनर्विचार का प्रयास किया जा रहा है। जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने स्पष्ट किया कि पहले ही एसएलपी खारिज हो चुकी थी और हाई कोर्ट में पुनर्विचार याचिका का रास्ता भी सुप्रीम कोर्ट ने नहीं खोला था।
एफसीआई की तरफ से याचिका वापस लेने की अपील भी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी। कोर्ट ने सख्ती से कहा कि ऐसी याचिकाओं से अदालत का समय बर्बाद नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने एफसीआई और डिविजनल मैनेजर पर 50-50 हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए आदेश दिया कि यह राशि सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी में जमा कराई जाए।
यह मामला दिखाता है कि सुप्रीम कोर्ट अनावश्यक याचिकाओं के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए अदालत का समय बचाने और न्याय प्रक्रिया का सम्मान बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।