जहरीली हवा से कमज़ोर हुए फेफड़े, कैसे झेल पाएंगे 'कोरोना' का अटैक ?
जहरीली हवा से कमज़ोर हुए फेफड़े, कैसे झेल पाएंगे 'कोरोना' का अटैक ?
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यह बात तो हम सभी जानते है कि भारत में बीते कुछ माह से कोरोना का प्रसार तेजी से बढ़ता जा रहा है, और इस वायरस से पूरा देश बहुत ही बुरी तरह से प्रभावित भी हुआ है. इतना ही नहीं इस वायरस की चपेट में आने से अब तक संक्रमण का आंकड़ा भी करोड़ के पार हो चुका है, इस बात में कोई भी शक नहीं है कि महामारी के फैलने से संक्रमण के साथ मौत का आंकड़ा भी बढ़ा है. जंहा एक ओर संक्रमण का आंकड़ा बढ़ा है तो वहीं दूसरी ओर इस वायरस से अपनी जान गंवाने वाले लोगों की संख्या में और भी तेजी से बढ़ रही है. लेकिन अब यह सवाल उठाया जा रहा है कि आखिर ये वायरस इतनी तेजी से कैसे फ़ैल रहा है, वैसे तो कुछ लोगों का कहना है कि दुनिया में कोई भी कोरोना नाम का वायरस नहीं है, तो वहीँ कुछ लोगों का यह मानना है कि कोरोना है तो लेकिन इतना नहीं जितना बताया जा रहा है, साथ ही साथ कुछ समय पहले यह भी अफवाह थी कि कोरोना केवल उन्ही स्थानों पर होता है जंहा चुनाव नहीं होते. तो कभी यह सुनने को मिलता है, कि देशभर में हो रही मौतों की वजह हॉस्पिटल है, लेकिन हाल ही एक मुद्दा ऐसा सामने आया है कि जिसके बारे शायद यकीन कर पाना थोड़ा मुश्किल हो. तो चलिए आज हम इसी बात पर गौर करते है कि कोरोना वायरस किस वजह से फ़ैल रहा है...

चीन से जन्म लेने वाला कोरोना चीन में क्यों नहीं: बता दें कि वर्ष 2019 में चीन के वुहान शहर से जन्म लेने वाले कोरोना वायरस ने 2019 -20 में दुनियाभर में हाहाकार मचाया था, और इस वायरस की चपेट में आने से दुनिया भर में संक्रमण का आकंड़ा करोड़ों के पार तो हुआ ही, साथ ही कोरोना की मार से मरने वालों के आंकड़े भी भयवाह थे. लेकिन यह बात भी एक दम सच है कि उसके कुछ महीनों बाद यानी वर्ष 2019 में ही कोरोना वायरस का कहर जैसे मानों थम गया, जिसके बाद से अब तक चीन के किसी भी राज्य में कोरोना के नए केस सामने नहीं आए है, हलाकि इस बात की पुष्टि अब तक पूरी तरह से नहीं हो पाई ही कि क्या सच में भी चीन से कोरोना वायरस खत्म हो गया है या फिर वहां की सरकार को महामारी से लड़ने का कोई और रास्ता मिल गया है. 

तकनीक का अंधाधुंध इस्तेमाल: तकनीक का विकास तो कई दशक से चला आ रहा है, हर दिन कुछ न कुछ नया आविष्कार करके देश को जहां तरक्की प्रदान की जा रही है, तो वहीं इन बढ़ती तकनीकों की वजह से मानवीय जीवन ही नहीं बल्कि दुनिया भर के कई प्राणियों का जीवन भी संकट में पड़ चुका है. 90 के दशक में पहला मोबाइल फ़ोन लॉन्च किया गया था. जिसके लिए कई दूरभाष नेटवर्क टावर और केंद्र की भी स्थापना की गई. वहीं वर्ष 2000 में ऐसी खबरें आई जिसमे बताया गया था कि इन बढ़ती हुई तकनीकों के कारण पक्षियों की मौतें हो रही है और इन विकसित हो रही तकनीकों का पहला शिकार बने पक्षी की प्रजाति के गौरैया और कौए की संख्या में भारी गिरावट देखने को मिली, लेकिन कुछ समय बाद यह हुआ कि गौरैया की पूरी की पूरी प्रजाति विलुप्त हो गई. साल बलदते गए और पक्षियों की मौत का सिलसिला बढ़ता गया. जिसके कुछ समय बाद ही यानी वर्ष 2006 में बर्ड फ्लू ने भारत के 28 राज्यों में दस्तक दी है, जिसके बाद भी कई पक्षियों में इसका प्रभाव देखने को मिला. ठीक ऐसा ही कुछ मानव जाती के साथ भी हुआ है, बीते कई वर्षों में तकनिकी तौर पर दुनिया को नया रूप प्रदान करने के लिए कई ऐसी चीजों का आविष्कार किया गया जिसने पूरी तरह से मानव जीवन को तबाही के कगार पर लेकर खड़ा कर दिया है. अब यह कहा जा रहा है कि, 5 G की रेडिएशन की वजह से कोरोना अधिक तेजी से फ़ैल रहा है।  हालांकि, इस बात में कितनी सच्चाई है, इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है। 

बढ़ता प्रदूषण कमज़ोर फेफड़े : इस बात में कोई भी शक नहीं है कि ऐसा किस तकनीक के विकास की वजह से हुआ है, हाल ही में खबर आई है कि बढ़ती टेक्नोलॉजी के साथ कई नेटवर्क क्षेत्र का भी विकास हुआ है. जिसके बाद से ही भारी मात्रा में पेड़ों को नष्ट किया जा रहा है, बड़े-बड़े इंडस्ट्रियल एरिया बनाए जा रहे हैं. लेकिन इन सब के बीच कही न कही हम, और आप दोनों ही यह भूल गए की लगातार हो रही पेड़ों की कटाई मानवीय पहलू को किस हद तक प्रभावित या बर्बाद कर सकती है. देशभर में लगातार हो रही वनों की कटाई से हर दिन प्राकृतिक ऑक्सीजन का स्तर भी गिरता जा रहा है और इंडस्ट्री से निकलता धुआं हवा को लगातार जहरीला बना रहा है. अब ऐसी जहरीली हवा ले रहे फेफड़े क्या कोरोना का मुकाबला कर सकते हैं, ये भी गौर करने वाली बात है    

ऑक्सीजन की कमी और बढ़ती बीमारियों का जिम्मेदार कौन: क्या हम कभी भी इस बात पर गौर करते है कि निरंतर हो रही ऑक्सीजन की कमी और बढ़ती बीमारियों का असली जिम्मेदार कौन है, नहीं न, सही है हम हर दिन खुद की तरक्की के लिए यह भी भूल चुके है कि हमने प्रकृति को किस हद तक क्षति पहुंचाई है. कही न कही दुनियाभर में बढ़ रहे बीमारियों के सिलसिले की वजह हम इंसान ही है. पहले तो हम खुद के फायदे के लिए प्राकृतिक संसाधनों को दूषित और नष्ट करते है, और फिर जब कोई आपदा या महामारी फैलने लगती है तो इसे या तो किसी की साजिश या फिर ऊपर वाले का कहर आदि का नाम देने लगते है. यदि थोड़ी सी जागरूकता दिखाई जाए तो निरंतर हो रही वनों की कटाई के साथ तकनिकी विकास को कम किया जाए, तो काफी हद तक इन्ही तरह की कई बड़ी आपदा और महामारी को रोका जा सकता है. 

आखिर क्या कर रही सरकार: देशभर में बीते कुछ समय से जहां बीमारियों का दौर बढ़ रहा है, वहां सरकार अपनी सत्ता सँभालने में लगी हुई है, अब यह सोचने वाली बात है कि आखिर सरकार क्यों कुछ नहीं करती, केवल राजनीती की तरफ ध्यान ही देना सरकार का काम नहीं, बल्कि देशभर में लगातार बढ़ती जा रही महामारी से लड़ने का भी रास्ता निकलना है. कई बार जनता ने तो सरकार पर यह भी सवाल उठाया है कि चुनाव के दौरान कोरोना क्यों नहीं फैलता, लेकिन अब तक इस बात का कोई भी जवाब नहीं आया, बंगाल समेत 5 राज्यों में चुनाव के दौरान कोरोना तो जैसे गायब ही हो गया था, मामले आते तो थे, मौतें भी होती थीं, लेकिन ये सब मीडिया और सरकार के बयानों से गायब था. और अब तो यह भी कहा जाने लगा है कि जिस जगह होगा चुनाव, उस जगह नहीं होगा कोरोना. 

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